कनकधारा स्तोत्र पाठ करने की विधि कनकधारा पाठ करने की विधि ,कनकधारा पाठ का नाम तो आपने सुना ही होगा । असल मे आपको बतादें कि कनकधारा पाठ काफी अधिक फायदेमंद होता है। कनकधारा पाठ को माता लक्ष्मी से जोड़ कर देखा जाता है । और कनकधारा पाठ जो करते हैं उनके यहां पर धन की कमी नहीं रहती है। असल मे जिन घरों के अंदर धन की कमी होती है उनको कनकधारा का पाठ करना चाहिए । आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं और यही आपके लिए सही होगा ।और आपको पता ही है कि आज के समय के अंदर धन कितना अधिक जरूरी हो गया है। क्योंकि बिना धन के कुछ भी नहीं होता है।
यदि आपके पास धन है तो आपकी हर जगह पर पूछ होगी । और यदि आपके पास धन नहीं है तो उसके बाद आपको कोई भी नहीं पूछने वाला है आप इस बात को समझ सकते हैं। इसलिए आपके पास धन होना जरूरी होता है। इसके अलावा जो लोग कर्जें के अंदर डूब जाते हैं उनको भी कनकधारा का पाठ करना चाहिए ।
ऐसा करने से धीरे धीरे धन आने लग जाता है और उसके बाद समस्याएं दूर हो जाती हैं। और धीरे धीरे कर्ज भी उतर जाता है। आप इस बात को समझ सकते हैं।
यदि आप भी काफी अधिक मेहनत कर रहे हैं लेकिन उसके बाद भी आपको कुछ फायदा नहीं हो रहा है तो फिर आपको चाहिए कि आप कनकधारा स़्त्रोत का पाठ करें । ऐसा करने से आपके यहां पर जो धन की समस्या है वह दूर हो जाएगी । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं और यही आपके लिए सही होगा । इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।
कनकधारा पाठ करने की विधि को आपको सही तरह से करना जरूरी होता है। यदि आप इसकी विधि को सही तरह से नहीं करते हैं तो फिर आपको कोई फायदा नहीं होगा । तो किस तरह से आपको कनकधारा पाठ को करना होगा । आइए इसके बारे मे आपको बताते हैं।
दोस्तों कनकधारा स्त्रोत के फायदे के बारे मे बात करें तो आपको बतादें कि इसके कई सारे फायदे होते हैं । कुछ पाइंट के अंदर हम आपको इसके बारे मे बता रहे हैं।
अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥
कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥
कनकधारा पाठ का हिंदी अनुवाद
दोस्तों अब तक हमने कनकधारा पाठ के बारे मे जाना । अब हम इसके हिंदी अनुवाद के बारे मे बात करने वाले हैं तो आइए जानते हैं । इसके हिंदी अनुवाद के बारे मे विस्तार से जिससे कि आपको चीजें ठीक तरह से समझने को मिलेगी ।
जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय को प्राप्त कर लेती है। उसी प्रकार से से प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है।जिसके अंदर सभी तरह के एश्वर्य का निवास होता है। संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी का स्त्रोत मेरे लिए मंगल प्रदान करने वाला हो।-1
जिस प्रकार से भ्रमरी महान कमलदल पर मंडराती है उसी प्रकार से जो हरि के मुख रूपी फूल की तरफ बार बार प्रेमपूर्वक जाती है।और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या की वह मनोहर मुग्ध माला मुझे धन और संपति प्रदान करें । – 2
जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव और विलास देने मे समर्थ है। जो मधुहंता हरि को अधिकाधिक आनन्द प्रदान करने वाली है। जो नील कमल के भीतर भाग के समान मनोहर है। उन लक्ष्मी जी के अधुखुले नेत्रों की द्रष्टि मुझ पर भी अवश्य ही पड़े ।- 3
शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मी जी के नेत्र हमें एश्वर्य प्रदान करने वाले हों । उनकी पुतली तथा बरैनियां अनंग के विशभूत अधखुले किंतु अपलक नयनों से देखने वाले अनंदकंद श्री मुकुंद को अपने निकट पाकर जो तिरछी हो जाती है। . 4
जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है और उनके मन मे जो प्रेम का संचार करने वाली है। वह कमल कुंजवासिनी कमला की मटाक्षमाला मेरा कल्याण करे .. 5
जैसे मेघों म बिजली चमकती है। उसी प्रकार कैटभशत्रु श्री विष्णु के काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है। जिसने अपने भावों से भृगुवंश केा आनंदित किया है। जो समस्त लोकों को पैदा करने वाली है। उस भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करने वाली हो .6
समुद्र कन्या कमल की वह मंद, अलस मंथर और अर्धोन्मीलित द्रष्टि जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के ह्रदय मे प्रथम बार स्थान प्राप्त हुआ था । यह मुझ पर पड़े .8
भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटकाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से मुझे दीन रूपी चातक पर धनरूपी वर्षा करे । . 8
विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिसकी दया दृष्टि प्रभाव से स्वर्ग पद को सहजता से ही प्राप्त कर लेता है। पदमासना पदमा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कांतिमयी द्रष्टि मुझे फल प्रदान करे .9
जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता के रूप मे विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल मे शाकम्भरी के रूप मे विराज मान होती है। और त्रिभुवन के एक मात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रेयसी श्री लक्ष्मी जी को नमस्कार करते हैं .. 10
हे मात शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप मे मैं आपको प्रणाम करता हूं । रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप मे मैं आपको नमस्कार करता हूं । कमल पर निवास करने वाली शक्ति रूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपी पुरूषोतम को नमस्कार है। – 11
कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्री देवी को नमस्कार है। और चंद्रमा व सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की विल्लभा को नमस्कार है। . 12
कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां आपके चरणों मे किए जाने वाले प्रणाम संपति प्रदान करने वाले हैं और इंद्रियों को आनन्द देने वाले हैं। और सम्राज्य देने मे समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उधत हैं। वे सदा ही मुझे सहारा दें । . 13
जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और संपतियों का विस्तार करती है। श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी को मैं मन वाणी और शरीर से भजन करता हूं सदा के लिए । 14
भगवती हरिप्रिया तुम कमल वान मे निचास करने वाली हो । तुम्हारे हाथों मे नील कमल है। तुम अत्यंत उज्जवल वस्त्र और गंध और माला से सजित हो । तुम्हार झांकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुभप का एश्वर्य प्रदान करने वाली हो । मुझ पर प्रसन्न हो जाओ . 15
दिग्गजों द्धारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गए आकाश गंगा के निर्मल और मनोहरम जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक होता है सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर विष्णु की ग्रहिणीश्रीरसागर की पुत्री उन जगजन्नी लक्ष्मी को मैं प्रात काल प्रणाम करता हूं । 16
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