22+ कर्ण के पर्यायवाची शब्दो की लिस्ट, List of 22+ synonyms for Karna
दोस्तो इस लेख मे हम सूर्यपुत्र कर्ण का पर्यायवाची शब्द suryaputra karn ka paryayvachi shabd या कर्ण का समानार्थी शब्द karn ka samanarthi shabd के बारे मे जानेगे । साथ ही कर्ण के बारे मे ऐसी रोचक जानकरी के बारे मे बात करेगे जो पहले किसी को पता नही थी । साथ ही कर्ण से जुडी जानकारी इस लेख मे है तो लेख को आराम से देखे ।
सूर्यपुत्र कर्ण का पर्यायवाची शब्द या कर्ण का समानार्थी शब्द {suryaputra karn ka paryayvachi shabd / karn ka samanarthi shabd}
शब्द {shabd} | पर्यायवाची शब्द / समानार्थी शब्द {paryayvachi shabd / samanarthi shabd} |
सूर्यपुत्र कर्ण | वासुसेन, राघेय, कौंत्य कर्ण, श्राद्धदेव, रश्मिरथी, वमुषेण, अर्कनन्दन, विजयधारी, कीनाश, सूर्यसुत, राधे कर्ण, चाम्पेश, सूतपुत्र, सूर्यपूत्र, दण्डधर, दिग्विजयी कर्ण, दानवीर कर्ण, अंगराज कर्ण, वैकर्तना, सूर्यपुत्र कर्ण, मृत्युंजय कर्ण, वृषाली और सुप्रिया पति । |
Suryaputra Karna in hindi | Ragheya, Kauntya Karna, Shraddhadev, Vamushena, Arkanandan, Vijaydhari, Kinash, Suryasut, Radhe Karna, Champesh, Sutaputra, Suryaputra, Dandadhar, Digvijay Karna, Danveer Karna, Angraja Karna, Vaikartana, Suryaputra Karna, Mrityunjay Karna, Vrishali and Supriya pati. |
Suryaputra Karna in english | Ragheya, Kauntya Karna, Shraddhadev, Vamushena, Arkanandan, Vijaydhari, Kinash, Suryasut, Radhe Karna, Champesh, Sutaputra, Suryaputra, Dandadhar, Digvijay Karna, Danveer Karna, Angraja Karna, Vaikartana, Suryaputra Karna, Mrityunjay Karna, Vrishali and Supriya Husband. |
22+ कर्ण के पर्यायवाची शब्दो की लिस्ट, List of 22+ synonyms for Karna
1. वासुसेन – Vasusen
2. राघेय – Ragheya
3. कौंत्य कर्ण – Kauntya Karna
4. श्राद्धदेव – Shradhdev
5. रश्मिरथी – Rashmirathi
6. वमुषेण – Vamushen
7. अर्कनन्दन – Arkanandana
8. विजयधारी – Vijayadhari
9. कीनाश – Kinash
10. सूर्यसुत – Suryasut
11. राधे कर्ण – Radhe Karna
12. चाम्पेश – Champesh
13. सूतपुत्र – Sutaputra
14. सूर्यपूत्र – Suryaputra
15. दण्डधर – Dandadhar
16. दिग्विजयी कर्ण – Digvijayi Karna
17. दानवीर कर्ण – Danaveer Karna
18. अंगराज कर्ण – Angaraj Karna
19. वैकर्तना – Vaikartana
20. सूर्यपुत्र कर्ण – Suryaputra Karna
21. मृत्युंजय कर्ण – Mrityunjaya Karna
22. वृषाली – Vrishali
23. सुप्रिया पति – Supriya Pati
सूर्यपूत्र कर्ण या कर्ण का हिंदी मे अर्थ // Meaning of Suryaputra Karna or Karna in Hindi –
महाभारत में बहुत से सर्वश्रेष्ठ धनुधिरी थे जिनमे से ही एक कर्ण था । इस कर्ण शब्द के अनेक अर्थ होते है जैसे –
- सूर्य का पूत्र यानि सूर्यपूत्र कर्ण ।
- महाभारत के समय मे सबसे बडा दानवीर यानि दानवीर कर्ण ।
- जिसने अपना रक्त बहा कर अपने कुंडल और दिव्य कवच को शरीर से उतार दिया हो ।
- दानवीर होने के कारण से जिन्हें अंगराज कर्ण कहा गया ।
- पिता सूर्यदेव व माता कुंती और अध्यात्मिक पिता महाराज पान्डु का पुत्र ।
- पालन पौषण करने के कारण जिन्हे देवी राधा का पुत्र कहा गया ।
- शनिदेव और यमराज जिसके भाई है ।
- जिनका विवाह वृषाली और सुप्रिया के साथ हुआ यानि वृषाली और सुप्रिया पति ।
- जिन्हे रश्मिरथी कहा जाता है क्योकी वे प्रकाश के रथ पर सवार रहते है ।
- जिसने अपना गुरू परशुराम को माना ।
- जो स्वयं अंग देश के राजा थे ।
सूर्यपूत्र कर्ण का पर्यायवाची शब्द का वाक्य में प्रयोग, Use of the synonym of Suryaputra Karna in a sentence
- महाभारत में जब परशुराम ने एक ऐसे योद्धा को देखा जो स्वयं श्रेष्ठ योद्धा था जिन्हे कर्ण कहा जाता है ।
- जब राजा सुरेखा दिन की पहली किरण के साथ दान पून्य करने लग जाते है तो यह देख कर प्रजा कहती है यह तो स्वयं कर्ण ही है ।
- जब कुलदिप ने अपने भाई से सारी जायदाद माग ली तो वह देने को तैयार हो गया मगर तब उसकी पत्नी कहने लगी की आपको सूर्यपूत्र कर्ण बनने की कोई जरूरत नही है ।
- गाव के लोगो को मुसीबत मे देख कर राहुल ने अपना सारा धन दान मे दे दिया तब लोग कहने लगे की यह तो दानवीर बन कर कर्ण के बाराबर चला गया ।
- महेश जैसा योद्धा इस दुनिया में केवल एक ही हुआ था वह महान सूर्यपूत्र कर्ण था ।
कर्ण के बारे मे रोचक तथ्य // Interesting facts about Karna
- दानवीर कर्ण – कर्ण सूर्य की पहली किरण के साथ ही धन दोलत दान करने मे लग जाते थे । जब महाभारत का यूद्ध हो रहा था तब भी वे हमेशा की तरह दान करते आ रहे थे । कर्ण के पास कवच कुण्डल था जिसके कारण से वे किसी से भी नही हारते थे । मगर युद्ध मे अर्जुन को कर्ण को हराना था और बताया जाता है की इंद्र अर्जुन के पिता थे ।
तब इंद्र ने ही अर्जुन को युद्ध मे विजय प्राप्त करने के लिए कर्ण का कवच कुण्डलन दान मे मागा । मगर उस समय इंद्र ने अपना रूप बदल रखा था । फिर भी कर्ण इंद्र को पहचान गए और फिर भी उन्होने अपना कवच कुण्डल इंद्र को दान मे दे दिया । इस दान के समय मे कर्ण को बहुत पिडा सहनी पडी । मगर इस दान के बाद मे कर्ण महादानवीर बन गए और आज तक उनके जैसा दानवीर कोई नही हुआ ।
- कर्ण ने दिया दुर्योधन को सदेव साथ देने का दिया वचन – कर्ण और दुर्योधन आपस मे मित्र थे और इसी मित्रता के कारण से कर्ण ने एक बार दुर्योधन को एक ऐसा वचन दे दिया जिसके कारण से उसे महाभारत मे अपने ही भाई पाण्डवो से युद्ध करना पडा था ।
क्योकी वचन मे कर्ण ने कहा की मैं तुम्हारा सुख और दुखो मे साथ देता रहूंगा और अपने वचन की सदेव पालना करते थे जिसके कारण से ही उन्होने युद्ध मे दुर्योधन का साथ दिया ।
- युद्ध भूमि में योद्धा का ही बल रहता है और उस समय अगर कोई श्रेष्ठ योद्धा होता है तो वह कभी नही हारता है । ऐसा ही हमारा कर्ण था जो श्रेष्ठ योद्धाओ के रूप मे जाना जाता था ।
- कर्ण जन्म के समय गंगा नदी मे बहता हुआ अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिला था । उसके बाद मे उन्होने ही कर्ण को पालन पोषण किया ।
- जब कर्ण बालक था तो वे युद्ध कला मे बडी रूची रखते थे और बडे होने के बाद मे एक योद्धा के रूप मे निखरे ।
- सारथी पुत्र होने के कारण से कर्ण को युद्ध कला के लिए किसी ने शिक्षा नही दी बल्की वे जहां भी जाते वहां से निकाले जाते थे ।
- जब कर्ण अंगराज बन गए तो उन्होने दानवीर का रूप दिखाते हुए कहा की जो सूर्य की पहली किरण के समय मेरे से कुछ मागेगा मैं उसे खाली हाथ नही जाने दूगा । इस तरह से अंगराज के कहने के बाद मे यानि कर्ण हमेशा ही सूर्य की पहली किरण के साथ दान किया करते थे । इस तरह से उन्हे दानवीर के नाम से जाना गया ।
- कर्ण की भुजाओं मे इतना बल था की उन्होने द्रोपती के स्वयंवर के समय धनुष को उठा कर मछली की आंख मे तीर मारने को तैयार थे । यह धनुष अर्जुन और कर्ण के अलावा किसी से नही उठ पाया था ।
- आपको पता होगा की कर्ण एक सूत पूत्र थे और वे द्रोपती से प्रेम करते थे । बताया जाता है की द्रोपती भी उनसे प्रेम करती थी । मगर द्रौपदी ने कर्ण को सुत पूत्र के रूप मे देखा तो वह उन्हे पसंद नही करने लगी यही कारण है की इन दोनो का विवाह नही हुआ । वरना दोनो एक दूसरे से विवाह करना चाहते थे ।
- अपने पिता की अज्ञा पर कर्ण ने विवाह करने की हां कही थी और फिर उसके पिता ने एक सूत पूत्री से कर्ण का विवाह किया इस पुत्री का नाम वृषाली था । इसके अलावा कर्ण ने एक और विवाह किया था जिसका नाम सुप्रिया था। इस तरह से कर्ण ने कुल दो विवाह किए थे ।
- परशुराम कर्ण के गुरू थे जिससे कर्ण शिक्षा ले रहा था । मगर वे केवल ब्राह्मणो को शिक्षा देने का काम करते थे मगर कर्ण एक सूत पुत्र था इस बात के बारे मे परशुराम को पता नही था । मगर एक दिन जब बिंच्छु के काटने पर परशुराम को लगा की यह ब्राह्मण नही है बल्की यह तो क्षत्रिय है । इसी कारण से कर्ण को परशुराम ने श्राप दिया ।
- जब महाभारत का युद्ध था तो कर्ण को जो भी ज्ञान था वह सब भूल गया इसका कारण कर्ण को प्राप्त श्राप था जो परशुराम ने दिया । क्योकी श्राप के अनुसार जब कर्ण को ज्ञान की सबसे अधिक जरूरत होगी तो वह उसे भूल जाएगा ।
- आपको जान कर हैरानी होगी पर सच है की जब कर्ण को बिंच्छु काटने के लिए आया तो वह स्वयं बिंच्छु नही था बल्की वह तो इंद्रदेव थे जो कर्ण की क्षत्रिय पहचान को बाहर निकाल रहे थे ।
- जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो कर्ण का ध्यान अर्जुन से हठ गया और कर्ण अर्जुन के तीर से मारा गया । मगर इतना बलवान होने के बाद भी कर्ण आखिर मारा कैसे गया ।
दरसल इसका उत्तर यह है की कर्ण को एक श्राप मिला था जिसके अनुसार युद्ध के समय अपने शत्रु से ध्यान हठ जाएगा और वह एक गाय के बछडे की तरह मर जाएगा । इस श्राप का कारण है क्योकी उसने एक बछडे को गलती से मार दिया था तो उसे ब्राह्मण ने श्राप दे दिया ।
- आपको जान कर हैरानी होगी की कर्ण युद्ध के समय जब भी रथ मे रहते थे तो उसके रथ का पहिया धरती मे धस जाता था जिसके कारण से कर्ण ने कई रथो का उपयोग किया ।
कर्ण का जन्म कैसे हुआ // How was Karna born In hindi ?
कर्ण का जन्म एक वरदान के रूप में हुआ था क्योकी कर्ण की माता कुन्ती का जब विवाह नही हुआ था और वह अपने पिता के साथ रहती थी तो वहां पर ऋषि दुर्वासा पधारे थे । ऋषि दुर्वासा बहुत ही उच्च कोटि के ऋषि थे उनके वरदान के रूप मे ही कर्ण का जन्म हुआ ।
उस समय हुआ यह था की ऋषि दुर्वासा कुन्ती के घर मे कुल 1 वर्ष रहे थे । और इस 1 वर्ष मे कुन्ती ने ऋषि की इतनी अच्छी सेवा की जिसके कारण से ऋषि दुर्वासा प्रसन्न हो गए ।
क्योकी वे भविष्य को भी देखने की शक्ति रखते थे तो उन्होने कुन्ती का भविष्य देख लिया तब ऋषि को पता चला की कुन्ती का विवाह महाराज पान्डु से होगा । मगर समस्या यह थी की महाराजा पाण्डु माता कुन्ती को पुत्र प्राप्त नही होगा ।
यह देख कर ऋषि दुर्वासा ने माता कुन्ती को अपने पास बुलाया और उसे वरदान देते हुए कहा की तुम जिस किसी भी देव को याद करोगी वह तुम्हे पुत्र प्राप्त कराएगा । इस तरह से कहने पर माता कुन्ती को समझ मे नही आया । इतना कहने के बाद मे ऋषि दुर्वासा का जाने का समय हो चुका था तो वे वहां से चलेगए ।
यह वरदान पाने के बाद मे माता कुन्ती बार बार यही सोच रही थी की आखिर ऋषि दुर्वासा ने उन्हे यह वरदान ही क्यो दिया । मगर एक दिन माता कुन्ती को वरदान को याद करते हुए रहा नही गया और उसने सूर्य देव को याद किया । क्योकी कुन्ती को वरदान प्राप्त था तो सूर्यदेव का अंश माता कुन्ती के गर्भ मे पहुंच गया ।
मगर अभी भी कुन्ती कुवारी थी उसका विवाह नही हुआ । इसके चलते जब वह गर्भवती हो गई यह देख कर माता कुन्ती बहुत ही चितित होने लगी । मगर समय के साथ बालक का जन्म होना ही था । जिसके कारण से माता कुन्ती के गर्भ से एक तेज के रूप मे बालक का जन्म हुआ ।
यह देख कर माता कुन्ती बहुत ही बेचेन हो रही थी जिसके कारण से जन्म के बाद मे माता कुन्ती ने बच्चे को पास की नदी मे छोड दिया । यह नदी गंगा नदी थी । इस नदी मे बहते हुए बालक के रूप मे कर्ण अधिरथ की नजर मे आया तो अधिरथ ने उसे अपना बालक समझ कर पालना शुरू किया था । इस तरह से माता कुन्ती के गर्भ से सूर्यपुत्र कर्ण का जन्म हुआ था ।
अर्जुन के रथ पर हनुमान के विराजमान होने के बाद भी कर्ण ने उसे पिछे धकेल दिया Even after Hanuman was seated on Arjuna’s chariot, Karna pushed him back. –
महाभारत के युद्ध मे हनुमान जिन्हे अंगद कहा जाता है वे अर्जुन के रथ पर विराजमान थे । इसके अलावा श्री कृष्ण जैसे महाज्ञानी भी रथ पर विराजमान थे । रथ पर इतना अधिक भार था की उसे कोई भी हिला तक नही पाता था । मगर कर्ण के लिए यह कठिन था मगर नामुमकिन नही था क्योकी जब अर्जुन ने कर्ण के रथ पर वार किया तो कर्ण का रथ काफी अधिक दूरी तक पिछे गया ।
मगर अगले ही पल कर्ण ने भी अर्जुन के रथ पर वार किया । जिसके कारण से रथ कुछ दूरी तक पिछे चला गया । अब जिसका पैर महाबलवान रावण तक नही हिला पाया था उसके शरीर के भार यानि हनुमान के शरीर का संपूर्ण भार को अगर थोडा सा भी हिला दिया जाए तो यह तो कोई महालवान ही होगा ।
जो स्वयं कर्ण थे यह देख कर कृष्ण ने भी कर्ण की प्रशंसा की । मगर अर्जुन को यह अच्छा नही लगा । मगर अंत मे अर्जुन को पता चल गया की उनके रथ पर हनुमान विराजमान थे और कर्ण के रथ पिछे खिसकाने पर श्री कृष्ण ने क्यो कर्ण की प्रशंसा की थी ।
इतना बलवान होने के बाद भी कर्ण की मृत्यू क्यो हुई, Why did Karna die despite being so strong?
महाभारत मे सबसे अधिक बलवान कर्ण ही था क्योकी उन्होने महाबलशाली हनुमान के विराजमान होने वाले रथ को भी कुछ दूरी तक पिछे खिसका दिया था । इसके अलावा जहां श्री कृष्ण जैसे महा ज्ञानी और अर्जुन जैसा योद्धा होने के बाद भी कर्ण अर्जुन से हार नही पा रहा था।
तो पता चलता है की कर्ण युद्ध मे सबसे बलवान था । मगर आखिर मे उनकी मृत्यु हो गई । जिसका कारण कोई और नही बल्की कर्ण को प्राप्त कुछ श्राप और उसके कवच कुण्डल दान करने के कारण से हुआ था ।
2.श्राप मे एक ब्राह्मण ने कर्ण को श्राप दिया क्योकी कर्ण ने गलती से एक गाय के बछडे को मार दिया था । तब ब्राह्मण ने युद्ध भूमि में कर्ण की इसी तरह से मृत्यु होगी यह श्राप दिया । साथ ही कहा की युद्ध भूमि मे अपने शत्रु से ध्यान हटने के कारण से मौत होगी ।
2.इसके अलावा परशुराम ने कर्ण को जब सबसे अधिक ज्ञान की जरूरत होगी तो ज्ञान को भूलने का श्राप दिया । क्योकी कर्ण झुठ बोल कर परशुराम से शिक्षा ग्रहण कर रहा था ।
क्या कर्ण मानव के लिए उपयोगी है, Is Karna useful for humans
जी हां, दरसल आपने कर्ण के बारे में सुना होगा और आप इनके बारे में अच्छी तरह से जानते है । जब दानवीर की बात आती है तो कर्ण का नाम भी सबसे उपर होता है । क्योकी इन्हे पता था की अगर वे दान देगे तो उनकी मृत्यु पक्की है मगर फिर भी दान दिया और यही सबसे बड़ी माहनता को संकेत करता है ।
वैसे दोस्तो जब हम कर्ण के बारे में बात करते है तो काफी कुछ है जो की हम कर्ण के जीवन से सीख सकते है और इस समाज के बारे में जान सकते है । उनकी शक्तियो के बारे में सिख सकते है और उनके जीवन से अपने जीवन में क्या बदलाव करना चाहिए यह सिख सकते है । और इन्ही सब बातो के कारण से कर्ण हमारे लिए उपयोगी है ।
इस तरह से हमने इस लेख मे कर्ण के बारे मे बहुत कुछ जान लिया है । मगर लेख मे विशेष रूप से कर्ण का पर्यायवाची शब्द ही है । जो आपको पूरी तरह से समझ मे आ गया है । फिर भी अगर कोई प्रशन है तो कमेंट बॉक्स मे पूछ सकते है ।