आलोचना का विलोम शब्द, आलोचना शब्द का विपरीतार्थक शब्द है, आलोचना का उल्टा aalochnaa ka vilom shabd
शब्द (word) | विलोम (vilom) |
आलोचना | प्रशंसा |
aalochnaa | prashansaa |
Criticism | appreciation |
दोस्तों आलोचना का विलोम शब्द होता है। प्रसंशा करना । और यदि हम आलोचना के मतलब की बात करें तो इसका मतलब होता है बुराई करना । जैसे किसी ने कोई काम किया और आपने उस काम के अंदर कमियां निकालना शूरू कर दिया तो इसका मतलब यह है कि आप उस काम करने वाले की बुराई कर रहे हैं।दोस्तों आलोचना कई तरह की होती है। लेकिन आलोचना तो आलोचना ही होती है। इसके अंदर कोई भी शक नहीं है।
कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जोकि सही मे आलोचना करते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जोकि सही के अंदर आलोचना नहीं करते हैं वरन वे लोग बस बुराई करना पसंद करते हैं। और बेकार की चीजों को निकाल कर लाते है। और झूठ फैलाने का काम करते है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि कुछ खास किस्म के न्यूज चैनल जोकि विदेशी फंड पर चलते हैं
वे मोदी सरकार को पसंद नहीं करते हैं या उनकी दूसरी किस्म की विचारधारा होती है। तो यह लोग फर्जी खबरें फैलाते हैं और उसके बाद सरकार की आलोचना करते हैं। लेकिन असल मे यह सरकार की आलोचना नहीं होती है। इसको हम कह सकते हैं कि यह धुर्तता है। यदि आप धुर्तता और नीचता पर उतर आते हैं तो आप दूसरे से सही की उम्मीद कर सकते हैं। यदि आप आलोचना करते हैं तो वह सही है। आलोचना करना काफी फायदे मंद होता है। लेकिन गलतियों को गिनाने के नाम पर यदि आप खुद अपना ऐजेंडा चलाते हैं या फिर आप खुद ऐसी चीजें करते हैं जोकि आपको नहीं करनी चाहिए तो फिर किसी भी तरह का फायदा नहीं है। दोस्तों आपको इस बात को अच्छी तरह से समझना चाहिए कि एक सही आलोचना उपयोगी होती है लेकिन यदि आलोचना को बस नीचता का नाम देदिया जाता है तो वह बस किसी को नीचा दिखाने के लिए होती है।
जो काम इस उदेश्य के लिए किया जाता है वह आमतौर पर किसी तर्क और तथ्य से संबंध नहीं रखता है। यह आमतौर पर बस बदनाम करने के लिए होता है। यह बात सच है कि हर चीज के अंदर कुछ कमियां होती हैं। और उन कमियों को सामने लाना भी काफी जरूरी होता है। यदि आप उन कमियों को सामने नहीं लाएंगे तो उनके अंदर सुधार संभव नहीं होगा तो आप समझ सकते हैं कि कमियों को सही करना काफी जरूरी होता है। और इसके लिए आलोचना ही की जाती है। लेकिन आलोचना को ही वेही लोग कर सकते हैं जोकि सही होते हैं। जो आलोचना से अपने किसी मकसद की पूर्ति करना चाहते हैं वे सही आलोचना को नहीं कर सकते हैं।
एक तरह से देखा जाए तो आलोचना का अपना स्थान होता है। यदि आपने बचपन मे किताबें पढ़ी होगी तो उनके अंदर कई तरह से सिद्धांत चलते हैं। और एक सिद्धांत के आपको फायदे गिनाये जाते हैं तो उसके बाद आपको उसके नुकसान भी गिनाये जाते हैं या फिर कहें कि आपको उसकी आलोचना के बारे मे बताया जाता है।
इस तरह से दोस्तों आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि आलोचना भी जरूरी होती है। उसी तरीके से जिस तरीके से प्रसंशा जरूरी होती है। सही चीज के लिए प्रसंशा होनी जरूरी है और गलत चीजों के लिए आलोचना होनी जरूरी है।
दोस्तों प्रशंसा का मतलब होता है किसी की तारिफ करना ।वैसे प्रशंसा के बारे मे आपने भी काफी अच्छी तरह से सुना ही होगा और वैसे भी हर इंसान चाहता है कि दूसरे उसकी प्रशंसा करें । यह एक अलग बात है कि एक इंसान जब किसी उंचे सरकारी ओहदे पर हो जाता है तो उसके बाद उसको खुशामद करने के लिए उसकी प्रशंसा करते रहते है।। लेकिन जैसे ही वह अलग हठता है तो उसको गालियां देने लग जाते हैं। इस तरह से दोस्तों यह सिस्टम तो सदा ही चलता रहता है। वैसे प्रशंसा या तारिफ सुनना लड़कियों को खासतौर पर काफी पसंद होता है। जब लड़कियां किसी को पसंद करती हैं तो उस लड़के से यह चाहती हैं कि वह उनकी प्रशंसा करें । और तारिफ की वजह से ही तो वह काफी खुश हो जाती हैं। दोस्तों यदि हम प्रशंसा के प्रकार की बात करें तो प्रशंसा दो तरह की होती है। पहला प्रकार यह होता है कि हम किसी की जानबूझ कर प्रशंसा करते हैं। यह आमतौर पर एक तरह की खुशामद हम कह सकते हैं और दूसरा यह होता है कि हम रियल के अंदर ही किसी की प्रशंसा करते हैं। खुशामद और प्रशंसा वैसे देखा जाए तो दोनो अलग अलग होती हैं। लेकिन ,खुशामद करना भी प्रशंसा के जैसा ही होता है। आपको इस बात का पता होना चाहिए ।
लेकिन खुशामद करने का मतलब ही यही है कि आप जिस किसी की खुशामद कर रहे हैं बस आप कर रहे हैं। दिल से आप उसे कतई पसंद नहीं करते हैं। लेकिन प्रशंसा के अंदर ऐसा नहीं होता है। यदि आप किसी की प्रशंसा करते हैं तो इसका मतलब यह है कि आप दिल से उसकी प्रशंसा कर रहे हैं तो आप सच मे ही उस इंसान से प्रभावित हैं। मतलब यह है कि उस इंसान के किसी कार्य से या उसके अंदर कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जिसकी वजह से आप काफी प्रभावित हैं और आप उसकी प्रशंसा कर रहे हैं। तो दोस्तों प्रशांसा भी हमेशा ही सही इंसान की करनी चाहिए । क्योंकि यदि हम किसी गलत इंसान की प्रशंसा करते हैं तो उसके बाद यह होता है कि हम कहीं ना कहीं उसको अपना आदर्श बना लेते हैं और उसके बाद हम भी उसके नक्शे कदम पर चलने लग जाते हैं जोकि एक तरह से अच्छी बात नहीं है। खैर प्रशंसा भी इंसान के अंदर से निकलती है। आपको इस बात के बारे मे पता होना चाहिए । जैसा आपके कर्म संस्कार होते हैं आपकी उसी तरह की बुद्धि होती है। तो आप उसी तरह की चीजों की प्रसंशा करने लग जाते हैं।
इस तरह से दोस्तों यदि आप गलत राह पर चलते हैं तो आपको आसानी से ही गलत राहें पसंद आएंगी और आप अपने फिल्ड के अंदर रहने वाले इंसान की प्रशंसा करेंगे । लेकिन यदि आप सही राह पर हैं तो इसी तरह के लोगों की प्रशंसा करेंगे ।
इस तरह से दोस्तों आपने प्रशंसा के बारे मे कुछ चीजें जानी उम्मीद करते हैं कि यह सब आपको पसंद आएगा । यदि नहीं पसंद आया तो आप नीचे कमेंट करके बता सकते हैं।
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