आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे aditya hridaya stotra ke fayde के बारे मे हम आपको बताने वाले हैं। आदित्य हृदयम स्तोत्रम का नाम तो आपने सुना ही होगा । असल मे आदित्य हृदयम स्तोत्रम की मदद से आप काफी कुछ फायदा उठा सकते हैं। इस लेख के अंदर हम आपको आदित्य हृदयम स्तोत्रम के फायदे के बारे मे बताने वाले हैं। आदित्य हृदय स्तोत्रम् भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए प्रयोग मे लाया जाता है। कहा जाता है , कि यह भगवान सूर्य को अतिप्रय होता है। यदि कोई इसका पाठ करता है , तो भगवान सूर्य सुख शांति और समृद्धि प्रदान करते हैं। इस तरह से आप चीजों को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
दोस्तों यदि हम आदित्य हृदयम स्तोत्रम के फायदे के बारे मे बात करें तो आपको बतादें कि यदि आप इसका पाठ करते हैं , तो इसका पाठ करने से रोग दूर होते हैं। यदि आपको किसी तरह का कोई कष्ट है , तो फिर आप इसका पाठ कर सकते हैं। यह आपके लिए काफी अधिक फायदा प्रदान करने वाला हो सकता है। आप इस बात को समझ सकते हैं। यदि कोई अधिक बीमार चल रहा है , तो उसको इसका पाठ करना चाहिए । काफी फायदा मिलेगा । कई बार इंसान के साथ यह समस्या होती है , कि उसे काफी अधिक बीमारियां घेर लेती हैं। यदि आपके साथ भी यह समस्या हो रही है , तो फिर आप इस स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं। आपको काफी अधिक फायदा होगा ।
दोस्तों यदि हम इस स्त्रोत के फायदे के बारे मे बात करें तो आपको बतादें कि यह पापों का नाश करने वाला है।इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । असल मे इंसानी जीवन को चलाने के लिए कई तरह के पाप करने पड़ते हैं। इसके बारे मे आपको पता ही है। और और उन पापों को करना तो काफी आसान होता है। लेकिन जब बारी आती है फल भुगतने की तो फिर यह काफी कठिन हो जाता है। इसलिए इस स्त्रोत के अंदर कहा गया है , कि इसका पाठ करने से इंसान के समस्त पापों का नाश हो जाता है। यदि आप भी चाहते हैं , कि आपके पापों का फल आपको बाद मे ना मिले तो आपको हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए । यह आपके समस्त पापों का नाश करके आपको सद्धगति प्रदान करने वाला बताया गया है।
दोस्तों आपको बतादें कि यह स्त्रोत आयु को बढ़ाता है। यदि किसी को लगता है , कि उसकी अकाल मौत का योग बना हुआ है , तो इसको इस स्त्रोत का रोजाना पाठ करना चाहिए । यदि वह ऐसा करते हैं , तो काफी अधिक फायदा होगा । और उसक अकाल मौत टल जाएगी ।अकाल मौत वह होती है , जिसके अंदर कोई इंसान काफी कम उम्र के अंदर ही मर जाता है। तो उसकी मौत को रोकने का यह एक तरीका हो सकता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ के फायदे के बारे मे यदि हम बात करते हैं , तो आपको बतादें कि इसकी मदद से आपकी बुद्धि के अंदर बढ़ोतरी होती है। यह आपकी बुद्धि को बढ़ाने का काम करता है। यदि आप एक छात्र हैं , तो फिर आपको इसका पाठ करना चाहिए । ताकि आपकी बुद्धि मे बढ़ोतरी हो और आप चीजों को अच्छे से समझ सकें ।आजकल वैसे भी आप समझ सकते हैं कि एक तीव्र बुद्धि वाले इंसान की काफी अधिक वैल्यू होती है।
आपको बतादें कि भगवान सूर्य बुद्धि और ज्ञान के देवता माने जाते हैं। और यदि कोई इस स्त्रोत का पाठ करता है। तो मूर्ख इंसान भी ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। यदि आपको भी बुद्धि की दरकार है , तो इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए । यह आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद होगा ।
आजकल यह देखा जा रहा है , कि छोटे छोटे बच्चों की आंखों की रोशनी भी काफी कमजोर होती जा रही है। और उनको चश्मा लग गया है। यदि ऐसा है , तो आपको समझना होगा कि आप सही तरह से खान पान नहीं कर रहे हैं।आदित्य हृदय स्तोत्र का यदि आप नियमित रूप से पाठ करते हैं , तो आपको काफी बड़ा फायदा होगा । और आपकी आंखों की रोशनी की जो समस्या है , वह दूर हो जाएगी । आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।
यदि आपकी आंखो की रोशनी काफी कमजोर है , तो आपको इस स्त्रोत का कुछ दिनों तक पाठ करना चाहिए । उसके बाद आप देखेंगे कि आपकी आंखों की रोशनी काफी तेज हो जाएगी । बिना किसी दवा की वजह से ।
यदि पिता और पुत्र के अंदर नहीं बन रही है , तो आपको यह उपाय करना चाहिए । यह उपाय आपके लिए काफी अधिक फायदेमंद होगा । इसके लिए आपको रोजाना इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए । माना जाता है कि भगवान सूर्य को पिता ग्रह का कारक है। ऐसी स्थिति के अंदर पिता पुत्र के संबंधों के अंदर इसकी मदद से काफी अधिक सुधार आता है। आप इस बात को समझ सकते हैं। और यही आपके लिए सही होगा ।
दोस्तों यदि हम आदित्य हृदय स्तोत्र के अन्य फायदे के बारे मे बात करें तो आपको बतादें कि इसकी मदद से आपको तनाव से मुक्ति मिलती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं। आजकल तनाव काफी अधिक हो चुका है। काम का बोझ अधिक होने की वजह से हर कोई इंसान तनाव से ग्रस्ति है। ऐसी स्थिति के अंदर आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए । यह आपके मन को शांत करता है। और तनाव को कम करने का काम करता है। अधिकतर केस के अंदर तनाव मन के अंदर होने वाली उथल पुथल की वजह से ही होता है।
दोस्तों यदि हम इस स्त्रोत के अन्य फायदे के बारे मे बात करें तो आपको बतादें कि इसकी वजह से नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए ।मतलब यदि आपको किसी तरह की गलत उर्जा काफी अधिक परेशान कर रही है। तो फिर यह प्रयोग आपके लिए ही है। आप इसको कर सकते हैं। जिससे कि आपको काफी अधिक फायदा होगा ।
जब नकारात्मक उर्जा किसी के अंदर घुस जाती है , तो फिर वह उस इंसान को काफी अधिक परेशान करना शूरू कर देती है। जिससे कि बड़ी समस्या पैदा होती है।
आपको बतादें कि यदि आप इस स्त्रोत का पाठ करते हैं , तो यह आपके आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करता है। आमतौर पर जब किसी इंसान के अंदर आत्मविश्वास काफी कमजोर होता है , तो इसकी वजह से वह किसी भी काम को ढंग से कर नहीं पता है। इसलिए आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए आपको इस स्त्रोत का पाठ रोजाना करना चाहिए । जिससे कि आपको आत्मविश्वास के अंदर कुछ ही दिनों के अंदर बढ़ोतरी देखने को मिलेगी ।
वैसे भी किसी भी काम को करने के लिए आत्मविश्वास का होना काफी अधिक जरूरी होता है। यदि आपके पास आत्मविश्वास नहीं है , तो आप किसी भी काम को ढंग से नहीं कर सकते हैं। इसलिए अन्य तरीकों से भी आपको अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के बारे मे सोचना होगा ।
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ यदि आप करते हैं , तो इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होती है। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । आप इसकी मदद से अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं। यदि आपकी ऐसी कोई मनोकामना है , जोकि पूर्ण नहीं हो रही है , तो आपको इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए । ऐसा करने से आपको फायदा जरूर मिलेगा ।
यदि हम आदित्य हृदय स्त्रोत के बारे मे बात करें तो आपको बतादें कि इसकी वजह से नौकरी के अंदर तरक्की होती है। यदि आपकी नौकरी मे तरक्की नहीं हो रही है।तो आपको यह उपाय करना चाहिए । रोजाना आपको इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए । यदि आप ऐसा करते हैं , तो आपकी नौकरी मे तरक्की होने के चांस काफी अधिक बढ़ जाते हैं। इसके बारे मे आपको पता होना चाहिए । और आप इस बात को समझ सकते हैं।
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥
तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥
इस तरह से दोस्तों आप आदित्य स्त्रोत का जाप कर सकते हैं। और इसका फायदा उठा सकते हैं। यह आपको यहां पर भी मिल जाएगा । यदि आप इसकी पिडिएफ को डाउनलोड करना चाहते हैं ,तो इसके लिए आप गूगल पर सर्च कर सकते हैं। और इसकी पीडिएफ फाइल को डाउनलोड कर सकते हैं। वहां पर आपको यह आसानी से मिल जाएगी । यदि आपका कोई सवाल है , तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं। हम आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे ।
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