बचपन का विलोम शब्द या बचपन का विलोम , बचपन का बचपन क्या होता है ? Bachpan ka vilom shabd , Bachpan ka vilom shabd kya hai
शब्द | विलोम शब्द |
बचपन | बुढ़ापा |
Bachpan | Budhapa |
दोस्तों बचपन शब्द का अर्थ होता है उम्र का पहला पड़ाव । दोस्तों वैसे बचपन की यादें सबको ताजा होगी ही । हम सभी की बचपन की कुछ यादें ऐसी भी होती हैं कि उनको याद कर हंसी आने लग जाती है। और यकीन भी नहीं होता है कि हम ऐसा करते थे ।इंसान के जीवन को चार आश्रमों के अंदर बांटा गया था।
ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास यह सभी प्राचीन काल के अंदर चलते थे ।ब्रह्मचर्य आश्रम की उम्र 25 साल तक होती थी। जिसका अर्थ यह है कि इसके अंदर इंसान घर मे ही रहता था या फिर गुरूकुल के अंदर पढ़ाई करने के लिए जाता था। और वहां पर ब्रह्रमर्च का पालन 25 साल तक करता था।और 25 साल तक को हम आजकल आमतौर पर बचपन तो नहीं कहते हैं। लेकिन 15 साल तक बचपना ही होता है।
लेकिन आजकल बचपन तेजी से समाप्त होता जा रहा है।बचपन तो रहा ही नहीं है जैसे पहले ब्रहमचर्य होता था लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। ऐसा नहीं होता है। बच्चा टीवी और इंटरनेट पर यही सब देखता है तो क्या घंटा बहमचर्य रहेगा । वह 25 साल तक तो 25 गर्लफ्रेंड बना चुका होता है।
जब से भारत के अंदर विदेशी संस्कृति आई है।तब से भारत के लोग योग की बजाय भोग के अंदर अधिक विश्वास करते जा रहे हैं। इस समाज के अंदर जोकुछ भी आप गलत चीजों को देख रहे हैं वह इंसान के भोग मे अधिक रूचि होने की वजह से ही तो हो रहा है।
बचपन तो अब पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। आज एक 10 साल का लड़का शादी करने के लायक हो जाता है। कुछ महामुर्ख इसको आधुनिकता का नाम देते हैं। असल मे वे भी भोगी होते हैं । उनकी मानसिकता भी वैसी ही होती है।
अब आप देखेंगे कि जब इंसान बचपन मे ही भोगी बन जाता है तो उसके भयंकर नुकसान होते हैं। उसके लिए स्त्री और पुरूष का बस एक ही संबंध नजर आता है। उसके सिवाय उसे कुछ भी नजर नहीं आता है। वह पूरी तरह से जानवर हो जाता है।
इसी तरीके से बच्चे को बचपन मे ही पैसों के बारे मे सीखाया जाता है उसे यह बताया जाता है कि पैसा कमाना ही जीवन का मकसद है। मतलब भोग ही जीवन का मकसद है तो वह बेचारा भोग के अंदर फंस जाता है और उस चक्कर मे सारी जिदंगी गंवा देता है।
लेकिन भोग आग के अंदर घी डालने के समान होता है । जिस तरह से यदि आप आग मे घी डालेंगे तो आग कभी भी शांत नहीं होगी । उसी तरह से इंसान कितना भी भोगों को भोग ले लेकिन भोगों से वह त्रप्त नहीं हो पाएगा।
और भोगों मे लिप्त होने की वजह से वह इंसानी जीवन को ऐसे ही गंवा देगा और इसका परिणाम यह होगा कि उसकी अधो गति हो जाएगी । तो दोस्तों बचपन को भोग मे नहीं योग मे लगाना चाहिए ताकि कल्याण हो जाए । वरना तो हर जन्म मे स्कूल जाना पढ़ना नौकरी लगना शादी करना बच्चे पैदा करना और फिर मर जाना बस यही करते रहना । इसका कोई तुक नहीं है। यह बस चलता ही आ रहा है।
दोस्तों बुढ़ापा के बारे मे तो आप अच्छी तरह से जानते ही हैं।बुढ़ापा काफी कठिन होता है। जवानी का समय तो पता नहीं कैसे उछल कूद के अंदर बीत जाता है लेकिन जैसे ही बुढ़ापा आता है समय बीतना काफी कठिन हो जाता है।क्योंकि बुढ़ापे के अंदर हाड दुखने लग जाते हैं।कभी कहीं दर्द होता है कभी कहीं दर्द होता है। इसलिए बुढ़ापा सबसे कठिन होता है। और अंत समय मे तो आप चल फिर भी नहीं सकते हैं।
बुढ़ापा से हर कोई घबराता है। कुछ लोगों को अपनी सुंदरता पर घमंड होता है।खास कर उन अभिनेत्रियों को अपने अंगों को दिखाकर पैसे कमाती हैं। लेकिन जब बुढ़ापा आता है तो उनके चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं और सब कुछ लटक जाता है।
प्राचीन काल मे तो बुढ़ापा आता था तो लोग संयास ले लेते थे और घर बार त्याग देते थे । और उसके बाद भगवान के भजन मे लग जाते थे लेकिन अब समय बीत चुका है। लोग मरने तक फालतू की चीजों मे ही फंसे रहते हैं। और इसका परिणाम यह होता है कि उनकी अधोगति होती है।
बुढ़ापा आने के बाद भी कुछ पापी लोग पाप करने से नहीं चुकते हैं। वे तब तक पाप कर्म मे ही लगे रहते हैं जब तक कि उनके हाथ पैर हिलना बंद ना हो जाएं । उसके बाद जब उनके हाथ पैर हिलना बंद हो जाते हैं तो फिर उनको एहसास होता है कि वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
इस दौरान वे काफी दुखी होते हैं लेकिन कुछ हो नहीं पाता है।
बुढ़ापा कड़वा इसलिए भी होता है क्योंकि शरीर का समय होता है। जब शरीर मरने लगता है तो वह कमजोर होता चला जाता है और उसके बाद उसके उपर अनेंक रोग हमला कर देते हैं। रोग धीरे धीरे उसको अंदर से खाते जाते हैं और एक समय ऐसा आता है कि वे शरीर को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं।जिसका परिणाम यह होता है कि शरीर पूरी तरह से बरबाद हो जाता है और उसे हम मौत कहते हैं।
जब हम यह देखते हैं कि अमुक इंसान छोटी सी उम्र मे मर गया तो हम यही सोचते हैं कि उसके साथ बुरा हुआ लेकिन हकीकत यह है कि वह कई बार पैदा हुआ और मरा है। अपनी वासनाओं को पूरा करने के लिए यह कुछ गलत नहीं है। बस प्रकृति का नियम से सब कुछ चल रहा है।
बुढ़ापा से बचना कठिन है। हां वो बात अलग है कि जो इंसान पहले ही मर जाए तो क्या कहना ? लेकिन असल मे जो बुढ़ापा होता है वह इंसान को कई बार तिल तिल कर मरने को मजबूर कर देता है। ऐसी स्थिति से छूटकारा पाने के लिए इंसान यही सोचता है कि वह मर जाए तो अच्छा रहेगा ।
इसी तरह की एक बुढी महिला को मैं जानता हूं जोकि दोनों पैरों से टूटी है। लेकिन वह मर जाना चाहती है। जीवन से काफी परेशान हो चुकी है। लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है। अब क्या करें। लेकिन कोई भी फायदा नहीं हो पाता है। उसका मन जीने का नहीं है। क्योंकि वह बस एक खाट पर ही पड़ी रहती है। ना इधर उधर जा सकती है और ना ही आ सकती है लेकिन क्या करे सब नियति कर्मों का खेल है। जैसा हम करते हैं वैसा हमको भुगतना पड़ता है।
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