दोस्तो इस लेख मे हम जानेगे की बलराम का पर्यायवाची शब्द balram ka paryayvachi shabd क्या होते है साथ ही जानेगे की बलराम का समानार्थी शब्द balram ka samanarthi shabd क्या होते है । इसके साथ ही हम जानेगे की बलराम कौन था और इसका जन्म कैसे हुआ था । इसके अलावा बलराम के जीवन के बारे मे बहुत कुछ बताया गया है ।
शब्द {shabd} | पर्यायवाची शब्द / समानार्थी शब्द { paryayvachi shabd / samanarthi shabd} |
बलराम | बलदाऊ , दाऊ, बलदेव , बलभद्र, हलदेव , हलवर, हलायुध, रौहिणेय, बलभद्र , संकर्षण , नीलाम्बर, रेवतीरमण, मूलपाणिक, राम ,कामपाल , इलायुध , अच्युताग्रज , प्रलम्बध्न, मुसली, हली , तालाङ्क , सीरपाणि, कालिन्दीभेदन , बल , बलवीर तालध्वजी। |
Balaram | Baladau, Dau, Baladeva, Balabhadra, Haldev, Halvar, Halayudh, Rauhiney, Balabhadra, Sankarsana, Nilambar, Revathiraman, Moolpanik, Rama, Kampala, Ilayudh, Achyutagraj, Pralamdhana, Musli, Hali, Talanka, Sirpani, Baldhwani Balan. |
Balaram | Baladau, Dau, Baladeva, Balabhadra, Haldev, Halvar, Halayudh, Rauhiney, Balabhadra, Sankarsana, Nilambar, Revathiraman, Moolpanik, Rama, Kampala, Ilayudh, Achyutagraj, Pralamdhana, Musli, Hali, Talanka, Sirpani, Baldhwani Balan. |
1. बलदाऊ (Baladau)
2. दाऊ (Dau)
3. बलदेव (Baladev)
4. बलभद्र (Balabhadra)
5. हलदेव (Haladev)
6. हलवर (Halvar)
7. हलायुध (Halayudh)
8. रौहिणेय (Rohineya)
9. संकर्षण (Sankarshan)
10. नीलाम्बर (Neelambar)
11. रेवतीरमण (Revatiraman)
12. मूलपाणिक (Moolapanik)
13. राम (Ram)
14. कामपाल (Kamapal)
15. इलायुध (Ilayudh)
16. अच्युताग्रज (Achyutagraj)
17. प्रलम्बध्न (Pralambadhn)
18. मुसली (Musali)
19. हली (Hali)
20. तालाङ्क (Talank)
21. सीरपाणि (Sirapani)
22. कालिन्दीभेदन (Kalindibhedan)
23. बल (Bal)
24. बलवीर (Balveer)
25. तालध्वजी (Taladhvaji)
कहते है की जहां पर विष्णु अवतार लेते है वही उनका शेषनाग भी अवतार लेता है । जैसे राम विष्णु का ही अवतार माना जाता है और लक्ष्मण शेषनाग का इसी तरह से बलराम भी शेषनाग के अवतारा के रूप मे जाने जाते है । मगर इनका यह जन्म बलराम के रूप में कैसे हुआ आइए जानते है ।
भगवत पुराण मे बताया जाता है की जब विष्णु ने अपनी भग्त देवकी को पीड़ा मे देखा तो देवकी की सातवी संतान के रूप मे अपने शेषनाग को भेज दिया । उस समय शेषनाग देवकी के गर्भ मे प्रवेश कर चुके थे । मगर फिर विष्णु को लगा की कंस शेषनाग अवतार को मार देगा ।
इसी कारण से विष्णुजी ने स्वयं योग माया का प्रयोग करते हुए शेषनाग के अवतार को रोहिणी के गर्भ मे प्रवेश करा दिया । और फिर विष्णु जी स्वयं देवकी के गर्भ मे 8 वी संतान के रूप मे प्रवेश कर चुके थे ।
रोहिणी के गर्भ मे शेषनाग का अवतार पल रहा था और इनका जन्म हल षष्ठी के दिन हुआ था । उस समय से ही इनका जन्म दिन हल षष्ठी को मनाया जाता है । इस तरह से बलरामजी का जन्म हुआ ।
बलराम श्री कृष्ण के बडे भाई के रूप मे जाने जाते है । साथ ही इन्होने देवकी और रोहिणी दोनो के गर्भ मे प्रवेश किया था । मगर जन्म रोहिणी के गर्भ से हुआ था । बलराम का जन्म देवकी के सातवे पुत्र के रूप मे होने वाला था और वही कृष्ण का जन्म 8 वे पुत्र के रूप मे हुआ था । इसी कारण से बलराम श्री कृष्णजी से बडे थे ।
बलरामजी शेषनाग के अवतार थे जिनमे बहुत ही शक्ति थी और वे इतने अधिक बलवान थे की किसी भी विशाल पर्वत को पल भर में गिरा देते थे । इसी कारण से इन्हे बलदेव के नाम से जाना गया । बलदेव का अर्थ होता है जिसमे बल की कोई कमी न हो यानि बलवान । इस तरह से बलराम जी बलवान थे ।
बलराम श्री कृष्ण से बडे होने के बाद भी श्री कृष्ण की बात मान जाया करते थे । और जब श्री कृष्ण उनसे कुछ कह देते तो वे उसे आसानी से मान लेते थे । इसके अलावा श्री कृष्ण भी बलरामजी की बात मानते थे । जब बलरामजी का जन्म हुआ तो उनका जन्म यशोदा के घर हुआ था ।
क्योकी रोहिणी नंद की बहन थी और उस समय वह नंद के पास ही थी । और वही पर श्री कृष्ण का पालन पोषण हुआ और बलरामजी व श्री कृष्ण का पालन पोषण यशोदा ने ही किया था । मगर दोनो ही उनके बेटे नही थे । इस तरह से श्री कृष्ण और बलराम बचपन से ही एक साथ रहने लगे थे ।
इतने अधिक बलवान होने के साथ साथ बलराम जी हल, गदा को ही अपना अस्त्र चुना क्योकी दोनो को चलाने के लिए काफी ताक्त की जरूरत होती है जो बलरामजी के पास थी । क्योकी एक हल को चलाने के लिए बहुत मेहन्त लगती है मगर बलरामजी के लिए यह आम बात थी ।
वे अपने हल से किसी को भी हरा सकते थे । यहां तक की गदा मे माहिर होने के कारण से कोई भी उनकी गदा से बच नही पाता था । उन्होने कृष्ण के साथ कई असुरो का अंत भी किया था । इस तरह से बलरामजी के अस्त्र हल और गदा थे ।
बलराम बलवान थे और उनका अस्त्र एक गदा भी था । जिनसे उन्होने राक्षसो का अंत भी किया था । मगर बलराम ने अपने दो शिष्य को चुना जो दुर्योधन और भीम थे । दोनो को ही एक समान समझ कर बलराम ने युद्ध कला सिखाई । जिसके कारण से भीम और दुर्योधन बलराम की तरह ही गदा रखने लगे थे ।
महाभारत के युद्ध मे एक तरफ कोरव तो दुसरी तरफ पाण्डव थे । दोनो भाई थे मगर दोनो मे युद्ध हो रहा था । तो दोनो ही श्री कृष्ण से युद्ध में मदद मागने के लिए गए । तब श्री कृष्ण को पाण्डवो ने युद्ध मे साथ देने के लिए चुना तो श्री कृष्ण की सेना को दुर्योयधन ने चुना । इस तरह से श्री कृष्ण एक तरफ तो उसकी सेना एक तरफ थी ।
मगर अब बलराम बचे जो न तो श्री कृष्ण की तरफ हो रहे थे न ही कोरवो की तरफ । जब श्री कृष्ण ने बलराम से इस बारे मे पूछा तो बलराम ने कहा की कोरवो मे दुर्योधन पाण्डवो मे भीम दोनो ही मेरे शिष्य रह चुके है अरग में दुर्योधन की तरफ से लडूगा तो पाण्डवो के साथ सही नही होगा और अगर मे पाण्डवो की तरफ से लडुगा तो दुर्योधन के साथ सही नही होगा ।
इस तरह से बलराम ने कहा की मैं तो धर्मसकट मे फस गया हूं । यही बात थी की बलराम ने न तो पाण्डवो की तरफ से युद्ध किया न ही कोरवो की तरफ से । बल्की युद्ध के समय वे तो तीर्थयात्रा पर चले गए । और यही मुल कारण रहा की महाभारत के युद्ध मे बलराम ने किसी की तरफ से भाग नही लिया ।
कहते है की जो पृथ्वी पर जन्म लेता है उसे एक दिन मरना ही पडता है चाहे फिर भगवान हो या इंसान । इसी तरह से कुछ बलराम के साथ हुआ । क्योकी जब कंस का अंत हो गया तो बलराम और श्री कृष्ण का काम पृथ्वी पर पूरा हो गया था । तभी देवताओ ने वायुदेव को बलराम और श्री कृष्ण के पास भेजा और संदेश दिया की अब आपका काम पृथ्वी पर पूरा हो गया है तो आप अब पृथ्वी लोक से अपने लोक मे आ सकते हो। क्योकी यह संदेश सभी देवो और विष्णु ने दिया था ।
तो बलराम कैसे मना कर सकते थे क्योकी विष्णु ही उनके प्रथम देव थे । संदेश पाने के बाद मे एक दिन बलराम जी ने जंगल के पास नदी के पास बैठ कर अपने शरीर को त्यागने की प्रक्रिया शुरू कर दी । इस बारे मे श्री कृष्ण को पता नही था । मगर जब बलराम ने अपना शरीर त्यागा तो वे शेषनाग के रूप मे आ गए और उसी नदी मे चले गए । इस तरह से बलराम ने अपना शरीर त्याग दिया ।
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