बवासीर स्थूल मल निस्तारण अंग ( गुदा ) में होने वाला रोग है। जो मुख्य रूप से गुदा की वलियो में पाया जाता है। जिसमे पायी जाने वाली रक्तशिराओं में खून का जमाव होने से, इसमें मांस के मस्से बनने लगते है। जिनको बवासीर का लक्षण कहा जाता है। जिनमे मल त्याग और कपडे आदि की रगड़ लगने से भीषण दर्द होता है। जिसके कारण रोगी उठने – बैठने, चलने – फिरने और दिशा मैदान आदि में तकलीफ का अनुभव करता है।
मानव गुदा के भीतर गुद नलिका पायी जाती है। जिसमे रक्त शिराए लम्बाई की ओर फैली रहती है। इसमें मल को एकत्रित करने और बाहर निकालने के लिए तीन वलिया पायी जाती है। जिनको आजकल की भाषा में पेशी कहा जाता है। लेकिन जब स्वाभाविक देहगत दोषो में संतुलन बिगड़ जाता है। तब इन वलियो में गड़बड़ी आ जाती है। जिसके फलस्वरूप मलबद्धता, ग्रहणी और अतिसार जैसे रोगो से हम घिर जाते है।
इन परिस्थितियों में दो स्थितियां उत्पन्न होती है। पहला जिसमे सहसा मल का वेग नहीं आता। दूसरा यदि आता भी है तो बहुत मरोड़ के साथ, बार – बार शीघ्रता से आता है। लेकिन दोनों में ही मल को बाहर निकालने के लिए जोर लगाकर काँखना पड़ता है। तब जाकर मल बाहर निकलता है। जिसके परिणाम स्वरूप काँखते समय गुद वलियो की शिराओ में, गया हुआ खून वापस नहीं आ पाता। ऐसा बार होते रहने से रक्त शिराए खून से भरकर, फूलती – फूलती मस्सों का रूप धारण कर लेती है। जिनमे खूनी अथवा बादी बवासीर के लक्षण हो सकते है।
गुदा मलाशय का सबसे निचला भाग होता है। जिसमे सवंरणी, प्रवाहणी और विसर्जनी नामक तीन वलिया पायी जाती है। जो काले – काले रंग की एक अंगुल टेढ़ी, उभरी एवं शंख जैसा आकार लिए होती है। यह डेढ़ – डेढ़ अंगुल के अंतर पर, एक के ऊपर एक पाई जाती है। जिनकी कुल लम्बाई लगभग चार अंगुल होती है।
जिसमे संवरणी वली गुदा के सबसे पास और मलाशय से सबसे दूर होती है। जबकि प्रवाहणी वली मलाशय के निकट और गुदा से सबसे अधिक दूरी पर होती है। जिसमे कांखने के समय जाने वाला खून शिराओ में ही रुका रहता है। जिसके कारण इन्ही वलियो की शिराए फूलकर, विभिन्न आकार के अंकुरों में बदलने लगती है। जिन्हे बवासीर के मस्सों के नाम से जाना जाता है।
आयुर्वेदादी शास्त्रों में बवासीर के छ भेद बताये गए है। जिनका अंतर्भाव दो प्रकार की बवासीर में हो जाता है। जिसमे दोषो की विलक्षणता पायी जाती है। जिसके कारण बवासीर के मस्सों के आकार, प्रकार और रंग आदि में अंतर देखा जाता है।
बादी बवासीर : यह ऐसी बवासीर है। जिसमे प्रायः खून नहीं निकलता, फिर भी मल द्वार पर आकार में बड़े – सूखे, आपस में उलझे, टेड़े – मेढ़े, चपटे – कड़े, खुरदरे – चिकने, अंकुरों का मुँह अंदर वाले बवासीर के मस्से पाए जाते है। जो आगे बढ़ते हुए गुदाद्वार को ढक लेते है। जिसमे मल त्याग के समय रगड़ लगते रहने से, घाव बन जाया करता है। जिसमे मल त्याग के समय भयंकर चुभन का दर्द हुआ करता है। इन मस्सों में जलन कम लेकिन खुजली अधिक होती है।
खूनी बवासीर : इसके मस्से छोटे किन्तु फटे हुए होते है। जिनसे हमेशा कुछ न कुछ खून मिला स्राव निकलता रहता है। जिसके कारण हर वक्त गुदा पर गीलेपन का एहसास होता रहता है। जिसमे अधिकतर खून मिला स्राव निकला करता है। जिसके कारण इसे स्रावी और खूनी बवासीर के नाम से जाना जाता है।
बवासीर आहार – विहार, दिनचर्या आदि की गड़बड़ी होने से होने वाली बीमारी है। जो प्रतिदिन हमारी क्रियाकलाप का हिस्सा है। जैसे –
जिन बवासिरो में पित्त दोषो की अनुगति होती है। उनमे ही स्राव निकलता है। जिसको खूनी बवासीर का मुख्य लक्षण कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें निम्न लक्षण भी पाए जा सकते है –
आयुर्वेद दोष प्रधान चिकित्सा पद्धति है। जिसमे असंतुलन होने से रोगानुगति होना तय माना गया है। जिससे पार पाने का एक मात्र उपाय, देहगत दोषो में संतुलन स्थापित करना है। जिसमे उपयोग होने वाले उपायों को ही, चिकित्सा कहा जाता है। फिर चाहे वह सामान्य रोग हो या दुर्दांत रोग हो।
परन्तु आधुनिक चिकित्साविद इसे जीवनशैली का रोग मानते है। जिसका मुख्य कारण आहार – विहार, दिनचर्या आदि में व्यवधान होने से देह गत दोषो में विषमता का पाया जाना है। जिसमे सुधार लाये बिना, देहगत दोषो को संतुलित नहीं किया जा सकता। इसकारण सभी तरह के बवासीर के उपचार और बचाव में, दिनचर्या आदि की विसंगति को सुधारना आवश्यक है।
जबकि बवासीर में पाए जाने वाले मस्सों के आधार पर, अलग प्रकार की चिकित्सा विधिया अपनाई जाती है। जैसे – ऐसे मस्से जो प्रायः नए एवं अल्पदोष, लक्षण और उपद्रव वाले हो। उनके लिए औषधि चिकित्सा अपनाई जाती है। जो कोमल, फैले हुए, गहराई में होने वाले और ऊपर की ओर उभरे हुए बवासीर के मस्सों का उपचार क्षार साध्य होता है। जो खुरदरे, स्थिर, कड़े और मोटे बवासीर के मस्सों में अग्नि चिकित्सा अपनाई जाती है। जो पतली जड़ वाले, ऊपर उभरे हुए और चिपचिपे होते है। उनके लिए शास्त्र चिकित्सा की बात कही गई है।
परन्तु इसमें भी औषध साध्य और दिखाई न पड़ने वाली, बवासीर की चिकित्सा के लिए औषधि चिकित्सा को स्वीकारा गया है। जिसके कारण सभी तरह की चिकित्सा का उपचार, उपयुक्त औषधियों के द्वारा आसानी से हो जाता है। जिसमे कुल तीन प्रकार के खूनी बवासीर है, जिनसे कुछ न कुछ स्राव निकला करता है।
एकल दोषज : यह केवल और केवल एक दोष से होने वाली बवासीर है। जिसमे पित्त दोष का उपद्रव और लक्षण पाया जाता है। जो प्रायः नवीन हुआ करती है। जिसका उपचार आयुर्वेदिक औषधियों द्वारा, सुगमता पूर्वक हो जाया करता है।
द्वन्दज या द्विदोषज : यह दो दोषो के अनुबंध से होने वाली बवासीर है। जिसके मूल में पित्त दोष पाया जाता है। लेकिन जब यह वात अथवा कफ दोषो से अनुबंधित हो जाता है। तब द्वन्दज खूनी बवासीर के लक्षणों को प्रदर्शित करता है। जो दो प्रकार के होते है –
सन्निपातिक या त्रिदोषज : यह त्रिदोषज होने से तीनो दोषो को अपने में समाहित कर लेती है। जिसके कारण इसमें तीनो दोषो से मेल खाते हुए लक्षण पाए जाते है। इसमें पित्त की प्रधानता होने से बवासीर के मस्से खून से भरे हुए एवं फटे होते है। वही वात और कफ के मिल जाने से बवासीर के मस्से आकार में बड़े, कुछ काला – हरा – पीला रंग लिया हुआ। रक्त का स्राव करता हुआ, जलन और चुभन का दर्द पैदा करता है।
बवासीर रोग में पाए जाने वाले लक्षणों के आधार पर, दोषो की पहचान की जाती है। जिसमे सूक्ष्मता लाकर दोषो के अनुबंध को परखा जाता है। तब जाकर बवासीर के मस्सों को सुखाने के उपाय निर्धारित किये जाते है। जिसका शीघ्रता से देश, काल, रोग की तीव्रता और रोगी के बलाबल को ध्यान में रखकर उपयोग किया जाता है।
हालांकि बवासीर के मस्से सुखाने की आयुर्वेदिक दवा, बवासीर में होने वाली असुविधाओं को दूर करती है। इनको अपनाने से स्राव उत्सर्जित करने वाले बवासीर के मस्से भी सूखने लगते है। जिसके कुछ उपाय निम्नलिखित है –
बवासीर जैसे भीषण और कष्टकारी रोग में, बवासीर के घरेलू उपाय अत्यंत कारगर है। जिसके कारण कोई और उपाय अपनाने से पूर्व, इनकों अजमाया जाता है। यह आयुर्वेद शास्त्रों में वर्णित होने से, रोगो की तकलीफो को घटाने और मिटाने में माहिर है। जिसके कारण आज भी कोई रोग होने पर, इनको ही पहले याद किया जाता है।
यह नुस्खे रोग की प्रारम्भिक अवस्था में शीघ्र फलदायी होते है। जबकि रोग के जीर्ण हो जाने पर, कुछ अधिक समय लेते है। जिनका धैर्य पूर्वक पालन करने से, जीर्ण रोगो को भी मिटाने की क्षमता रखते है। इतना ही नहीं बवासीर के कुछ ऐसे घरेलू उपाय है। जो बवासीर का इलाज 3 दिन में करने वाले है। बवासीर के मस्से को सुखाने वाले घरेलू उपाय निम्नलिखित है –
आज हमारी जीवनशैली चरमरा सी गई है। जिसका सर्वाधिक असर, हमारे स्वास्थ पर देखा जा सकता है। जिसमे कोई भी रोग होने पर, रोग के शुरुआत में उस पर काम के आगे ध्यान नहीं दे पाते। जिससे रोग धीरे – धीरे बढ़ता हुआ, हमें अपने आगोश में ले लेता है। जिसमे बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय अत्यंत प्रभावशाली है।
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