बेटी के घर का खाना खाना चाहिए या फिर नहीं ? beti ke ghar khana kyon nahin khana chahie इसके बारे मे अलग अलग लोगों की अलग अलग राय हो सकती है। लेकिन मुझे लगता है , कि आज के समय के अंदर इस तरह की मान्यताएं काफी कम ही देखने को मिलती हैं। क्योंकि आजकल बेटी को बेटों के बराबर माना जाता है। और जिन लोगों को बेटा नहीं होता है , वे अपनी बेटी की कमाई ही खाते हैं। और उनकी बेटी ही उनका ख्याल रखती है। कुछ दिनों पहले ही न्यूज के अंदर देखा था , कि एक पिता के 7 बेटी थी। बेटा नहीं था , तो बेटी ने पिता को कंधा दिया। कहने का मतलब यही है , कि अधिकतर लोग इस मान्यता को महत्व नहीं देते हैं। मगर कहीं ना कहीं पुरूष प्रधान समाज के अंदर यह मान्यता आज भी मौजूद है। और आपको कई जगह पर देखने को मिलती है।
बेटी के घर का क्यों नहीं खाना चाहिए ? इसके बारे मे अलग अलग तरह की मान्यताएं और कारण हो सकते हैं। मगर हम यहां पर आपको कुछ बातें बताने का प्रयास करेंगे । जिससे कि आपको पता चलेगा कि बेटी के घर का खाना क्यों नहीं खाना चाहिए ।
पिता और माता को बेटी के घर का खाना पानी क्यों नहीं खाना चाहिए । इसके पीछे कुछ मान्यताएं मौजूद होती हैं। हालांकि यह कितना सच है ? और कितना झूठ है , इसका फैसला आपको अपने विवेक से करना चाहिए । बाकि हमारा काम तो बस आपको जानकारी प्रदान करना ही है।
दोस्तों कुछ जगहों पर यह लिखा मिलता है , कि बेटी के घर यदि माता पिता खाना खाते हैं। या फिर पानी पीते हैं , तो उनको पाप लगता है। उनको ऐसा कभी भी नहीं करना चाहिए । और कुछ लोग यह सोचते हैं , कि वे ऐसा करके बेवजह पाप के भागी बन रहे हैं। इसलिए बेटी के घर खाना नहीं खाते हैं।
माना जाता है कि यदि माता और पिता अपनी बेटी के घर का दाना पानी खाते हैं। तो उनकी प्रतिष्ठा के अंदर कमी आती है। इसके चलते कुछ माता पिता अपनी बेटी के यहां पर किसी भी तरह का खाना नहीं खाते हैं। हालांकि यह सब चीजें सच हैं या नहीं इसका तो पता नहीं है।
बेटी के घर जाकर खाना खाने के बारे मे एक चीज और भी प्रचलित है। जोकि मुझे कुछ हद तक सही लगती है। और वह यही है कि बेटी के घर खाना खाने से बेटी और दामाद के रिलेशन मे खटास पैदा हो सकती है। इसके पीछे का एक लॉजिक यह कहता है कि अक्सर लड़की के माता पिता अपने दामाद के घर आकर रहने लगते हैं। और उसके घर के मामलों मे इंटर फेर करते हैं। इन सब चीजों के होने की वजह से बेटी और दामाद के रिश्तों के अंदर खटास होने लग जाता है। तो यह सब चीजें आपको अब रियल मे भी दिखाई देती हैं।
इसके अलावा एक मान्यता यह भी प्रचलित है , कि यदि आप बेटी के घर का खाना खाते हैं । तो आपकी बेटी के घर मे सुख और समृद्धि की कमी आ जाती है। हालांकि यह मान्यता कितनी अधिक सच है ? इसके बारे मे हम कुछ भी नहीं कह सकते हैं।
बेटी के घर का अन्न और जल इसकी वजह से भी नहीं किया जाता है। क्योंकि माता पिता कन्यादान करते हैं। मतलब कन्या को उसके पति को सौंप देते हैं। और दान की जाने वाली कन्या के उपर माता पिता का बाद मे कोई अधिकार नहीं होती है। ऐसी स्थिति के अंदर बेटी के घर का अन्न और जल ग्रहण करना अशुभ माना जाता है।कहा जाता है , कि जब तक बेटी को कोई संतान नहीं होती है। तब तक उसके घर का अन्न और जल का सेवन नहीं करना चाहिए । जब बेटी को संतान हो जाती है , तो फिर माता पिता उसके यहां पर अन्न जल ग्रहण कर लेते हैं। तब यह माना जाता है , कि दामाद ने उनकी बेटी को स्वीकार कर लिया है। और पित्रऋण से उनका दामाद मुक्त होने के लिए यह किया है।
आपको बतादें कि कन्यादान को महादान माना जाता है। अब यदि माता पिता कन्या का दान कर देते हैं। तो उसके बाद उसके घर जाकर खाना वैगरह खाने का कोई हक नहीं बनता है। तो इसकी वजह से माता पिता अपने वचन की लाज को रखने के लिए यह सब करते हैं। हालांकि आजकल वो वचन देने वाले ही नहीं रहे जो एक बार बोल देने के बाद उसको मरते दम तक पूरा करें। और जो पूरा नहीं करना चाहते हैं , उनको वचन देना ही नहीं चाहिए । कहने का मतलब यही है कि यदि आप एक बार अपनी कन्या को अपने दामाद को सौंप देते हैं। उसका दान कर देते हैं , तो उसके बाद आपको उससे मोह नहीं रखना चाहिए । तभी ही सच्चा दान होता है।
तो उपर कुछ वजह दी गई हैं जिसकी वजह से माता पिता अपनी बेटी के घर तो जाते हैं। लेकिन उसके यहां पर खाना पीना नहीं करते हैं। हालांकि वर्तमान मे यह सब काफी कम ही हो चुका है। मगर कुछ लोग हैं , जोकि आज भी इस तरह की परम्पराओं का पालन करते हैं।
जरूरी नहीं है , कि आप कन्या का दान करें । यदि आप इस प्रथा का पालन कर रहे हैं , तो आप अपने वचन का पालन कर रहे हैं। पहले यह सब चीजें होती थी। कि जो बोल देता था , उसको पूरा करता था । और वचन के लिए लोग अपनी गर्दन तक कटवा लेते थे । असली तो वही इंसान थे । आज जब सारे वचन टूट रहे हैं , तो बहन भी भाई से शादी कर रहा है। लोगों की संकल्प शक्ति नष्ट हो चुकी है। यदि आप कन्या का दान करते हैं , तो उसके घर पर अपना अधिकार जमाने और वहां जाकर भोजन करने का हक समाप्त हो जाता है। धर्म यही है। मगर यदि आप दान नहीं करते हैं , तो फिर यह रहता है।
अब आपके मन मे यह सवाल भी आएगा , कि कन्यादान को महादान क्यों कहा गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि माता पिता अपनी बेटी को बड़े ही लाड़ प्यार से पालते हैं। और उसको सिर्फ किसी पुरूष को सौंपने के लिए और जब वह बड़ी हो जाती है , तो उसको उस पुरूष को सौंप देते हैं। यह सब करना इतना आसान नहीं होता है। लेकिन नैचर के भी कुछ उसूल होते हैं। अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर माता पिता को यह सब करना होता है। इसलिए इसको महादान के नाम से जाना जाता है।
देखिए यह सब अपनी सोच और विचारधारा पर निर्भर करता है। यदि आप एक इस तरह के इंसान हैं , जिनके लिए अपने वचनों का पालन करना काफी अधिक महत्वपूर्ण है ,तो फिर आपको इस नियम का पालन करना होगा । और यदि आपके लिए वचनों का कोई भी महत्व नहीं है , तो फिर आप अपनी बेटी के घर जा सकते हैं । और खाना भी खा सकते हैं। और वहां पर रह सकते हैं।
आजकल यह काफी अधिक कॉमन हो गया है। आजकल माता पिता अपनी बेटी के घर पर जाते हैं। और रहते भी हैं। कुछ चीजों को देखकर यह लगता है कि पुरानी पम्पराओं मे दम तो है। जैसे कि अधिकतर माता पिता अपनी बेटी के घर मे इंटरफेर करने का काम करते हैं। जिसकी वजह से बेटियों का घर बरबाद हो जाता है।
इसके अलावा एक न्यूज के अंदर एक बाप अपनी बेटी को तलाक होने पर इस तरह से डीजे के साथ घर लेकर आया जैसे की बेटी ने कोई महान काम कर दिया हो । तो इस तरह की चीजें जब होगी तो फिर कन्यादान जैसी चीजों का कोई महत्व नहीं रह जाएगा । माना कि यदि पति पत्नी पर अत्याचार करता है , तो फिर उसको घर लेकर आना चाहिए । मगर इसके अंदर कोई फायदे की या खुशी की बात नहीं है। बल्कि यह दुख की बात है। एक तरह से गलत चीजों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
आज के समय के अंदर इस तरह की गलत चीजों को बढ़ावा देने की वजह से सब कुछ बरबाद हो रहा है। महिला की शादी हो चुकी है। और वह अपने यार के साथ घूम रही है। तो यह सब चीजें समाज के अंदर आधुनिकता नहीं वरन घटिया मानसिकता का प्रतीक हैं।
बहुत से लोग कहते हैं , कि महिलाओं पर अत्याचार होता है। इसलिए यह सब करना पड़ता है। मगर यह भी सच है कि पुरूषों के साथ भी कुछ महिलाएं बुरा करती हैं। उनका कुछ नहीं होता है। अत्याचार चाहे किसी पर भी हो उसको रोका जाना जरूरी होता है। और कई बार तो पति को बेचारे को झूठे देहज केस के अंदर फंसा दिया जाता है। यह सब लड़की के माता पिता की मर्जी से ही होता है। तो इस तरह के कार्य करने वाले लोग कन्यादान के महत्व को कभी भी नहीं समझ पाएंगे।
बेटी के घर खाना क्यों नहीं खाना चाहिए ? लेख आपको पसंद आया होगा । यदि आपके मन मे इससे जुड़ा कोई सवाल है , तो आप हमें बता सकते हैं। हम आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे । और आपको यह भी कमेंट के अंदर बताना होगा कि क्या आप इस तरह की परम्पराओं को मानते हैं। यदि मानते हैं तो क्यों और नहीं मानते हैं तो भी क्यों?
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