भीतर का विलोम शब्द क्या है Bhitar ka vilom shabd kya hai ?

भीतर का विलोम शब्द या भीतर का विलोम , भीतर का उल्टा क्या होता है ? Bhitar ka vilom shabd

शब्दविलोम शब्द
भीतरबाहर
BhitarBahar

‌‌‌भीतर का विलोम शब्द और अर्थ

‌‌‌भीतर का विलोम शब्द और अर्थ

दोस्तों भीतर का विलोम शब्द बाहर होता है।भीतर शब्द का मतलब अंदर होता है। जैसे कि मकान के अंदर शरीर के अंदर गाड़ी के अंदर मतलब कहीं भी अंदर की स्थिति के लिए भीतर शब्द का प्रयोग किया जाता है। ‌‌‌यदि कोई हमसे पूछे कि कपड़ों की भीतर क्या है ? तो हम कहेंगे कि शरीर है और शरीर के भीतर हांड मांस है उनके भीतर पानी है। खैर योगी लोग यह बताते थे कि हमारे भीतर सारा बह्रमांड है । सब कुछ जो बाहर घटित हुआ है वह अंदर भी हुआ है। लेकिन हमको ना तो इन चीजों के बारे मे यकीन करते हैं और ना ही पता है  ‌‌‌और ना ही इनको जानने की औकात रखते हैं तो तो फिर हम यही कहेंगे कि झूठ है। योगी लोगों ने अनुभव किया है वे डंके की चोट पर यह सब कहते हैं लेकिन वे भी मूर्खों से बहस करने से बचते हैं। हालांकि अब समय जा चुका है। अब तो समय भोग विलास का आ चुका है। भीतर झांकने का समय अब नहीं रहा है।

‌‌‌एक समय ऐसा हुआ करता था कि भारत मे धर्म के कई मठ प्रचलित थे और धर्म कर्म होता था लोग अपनी आत्मा को उंचा उठाने के लिए भीतर की शैयर करते थे । हालांकि इसके लिए वे कठिन से कठिन नियमों का पालन करते थे ।

‌‌‌लेकिन आजकल तो अमीर लोग बाहर की यात्रा करना पसंद करते हैं। हालांकि उनको यह पता नहीं है कि वे करोड़ों साल से यही पर घूम रहे हैं। और यही सच है कि हम करोड़ों साल से यही पर घूम रहे हैं। बार बार पैदा होते हैं उसके बाद फिर मर जाते हैं। ‌‌‌यदि आप यह किसी बुद्धिमान और ज्ञानी इंसान को यह बताओगे तो काफी अजीब लगेगा लेकिन क्या किया जा सकता है। पर वह ज्ञानी इंसान इस चक्र को तोड़ने के लिए अपने भीतर की यात्रा करेगा ।

‌‌‌अक्सर हम लोग इस दुनिया मे आते हैं और कुछ यादें अपने भीतर लेकर चले जाते हैं और उन यादो या वासनाओं को पूरा करने के लिए भीर जन्म लेते हैं और उसके बाद किसी दूसरी तरह की वासना पाल लेते हैं फिर आते हैं फिर मर जाते हैं बस इसी क्रम मे चलते रहते हैं। हम कहीं पर भी नहीं पहुंच पाते हैं क्योंकि हम ‌‌‌ एक चक्र मे घूम रहे हैं।भीतर की दुनिया काफी निराली है।

लेकिन इसकी शैर करने की औकात काफी कम लोगों मे ही होती है। माना जाता है कि एक बार यदि कोई इसकी शैयर कर लेता है तो उसके बाद वह कभी भी उसको भूल नहीं पाता है क्योंकि ‌‌‌इस दुनिया का नशा ही कुछ ऐसा होता है कि इंसान उसके प्रभाव से बच नहीं पाता है। खैर इसके लिए आपको गुरू की आवश्यकता होती है। ढोंगी गुरू की नहीं असली वाले गुरू की आवश्यकता होती है जो सत्यवादी होता है।‌‌‌यदि आपको असली वाला गुरू मिल जाता है तो आपका बेड़ा पार हो सकता है।नहीं तो गुरू और चेला नरक मे ठेलम ठेला ।

‌‌‌बाहर का अर्थ और मतलब

‌‌‌बाहर का मतलब बाहरी दुनिया आप जो दुनिया एक तरह से आंखों से देख रहे हैं वह बाहरी दुनिया के अंदर ही आती है।आप जो कुछ अपनी आंखों से देख रहे हैं वह आपके बाहरी ही होता है। आप अपने घर को और अपने परिवार को देख रहे हैं वह सब बाहरी होता है।‌‌‌समय के साथ हम लोग अधिक बाहरी होते जा रहे हैं।मतलब यह है कि समय के साथ हम अपनी वासना को बढ़ाते ही जा रहे हैं। पहले यह सब नहीं था लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। आज हमको दूसरों की देखा देखनी करनी होती है। हमारा पड़ोसी करोड़ों कमा रहा है तो हम उसकी चका चौंध को देखकर जलने लग जाते हैं। भले ही हमारे अंदर ‌‌‌कमाने की औकात नहीं है लेकिन उसके बाद भी हम यह सोचते हैं कि उसको किसी तरह से नीचे गिरा दें ।और उसको नीचे गिराने के लिए अपना दिमाग खपाना शूरू कर देते हैं और येन केन प्रकरण हम उसको नुकसान पहुंचाते हैं।

‌‌‌वैसे आपको तो पता ही है कि बाहरी दुनिया की चका चौंध ही ऐसी है कि उसकी चमक के  अंदर फंसे बिना हर कोई नहीं रह सकता है। लेकिन क्या करें आज माया मे फंसने के अनेक साधन आ चुके हैं तो इंसान का क्या दोष वह तो फंसेगा ही ।

‌‌‌और हम धीरे धीरे अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। और दूसरों की संस्कृति को काफी तेजी से अपनाते जा रहे हैं इसका परिणाम आप समझ ही रहे हैं कि क्या हो रहा है।

‌‌‌अंग पर्दशन करना यह सब करना हमारी संस्कृति का विषय नहीं रहा है।लेकिन उसके बाद भी हम सब यही करते जा रहे हैं। आइए  इस संबंध मे मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं ।

प्राचीन काल की बात है । एक सुखदेव नाम का राजा रहता था। राजा काफी बुद्विमान था। उसके बाद अच्छी खासी धन दौलत थी और कई रानियां थी ।‌‌‌लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी उसको शांति नहीं मिलती थी।वह शांति की तलास मे अक्सर वन मे आया करता था । हालांकि वन मे भी उसे महल और राज कार्य की चिंता रहती थी। एक बार वह जब वन मे आया तो उसने एक साधु को देखा वह उस साधु के पास गया और पैरों मे पड़कर बोला महाराज ‌‌‌ मेरे पास सब कुछ होते हुए मे मेरा मन शांत नहीं रहता है।जबकि आपके पास कुछ भी नहीं है फिर भी आपका मन शांत है और आपको किसी तरह की चिंता नहीं है। बस आप को किसी का डर भय नहीं है।

‌‌‌उसके बाद साधु ने कहा ……… हे राजन किसने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है। असल मे मेरे पास सब कुछ है। तुम से भी अधिक मेरे पास है।

……..लेकिन महाराज मैं समझा नहीं ?

…..राजन आत्मा से ही सब पैदा होता है और आत्मा मे ही विलिन हो जाता है जो आत्मा को जान लेता है उसे फिर किसी दूसरी चीज ‌‌‌ की आवश्यकता नहीं होती है।तुम इसलिए अशांत हो क्योंकि तुम्हारा जुड़ाव अपनी आत्मा से नहीं है । तुम जिस शांति की बात कर रहे हो वह बाहर मिल ही नहीं सकती है। शांति तुम्हारे अंदर है। तुम्हे धन स्त्री किसी चीज की जरूरत नहीं है राजन तुम सदा पूर्ण ही हो और सदा पूर्ण ही रहोगे । यह अधूरी ‌‌‌ इच्छाएं तो माया से उत्पन्न हुई हैं ।माया का त्याग करो राजन और अपने आप को जानों । सब कुछ शांत हो जाएगा । और उसके बाद शांति ही शांति होगी ।

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