दोस्तो इस लेख मे हम जानेगे की गणेश का पर्यायवाची शब्द ganesh ka paryayvachi shabd अथवा गणेश जी के समानार्थी शब्द ganesh ji ke samanarthi shabd क्या होते है साथ ही इस लेख से जानकारी मिलेगी की गणेश कौन थे और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई थी । इसके अलावा गणेश के बारे मे बहुत कुछ जानकारी हासिल करने को मिलेगी ।
शब्द {shabd} शब्द {shabd} | पर्यायवाची शब्द {paryayvachi shabd / samanarthi shabd} |
गणेश | विघ्नेश, गजानन, हस्तिमुख, लम्बोदर, हेम्बर, विघ्नेश्वर, दैमातुर, गजवदन, एकदन्त, शंकरसुवन, मूषकवाहन, गजबदन, अंबिकेय, गौरीनंदन, गणपति, गणनायक , शिवसुत, विनायक, महाकाय, गजास्य, विघ्नराज, वक्रतुंड, वक्रतुण्ड, मूषकवाहन, उमासुत, मोददाता, शूर्पकर्ण, द्वैमातुर, ढुंढिराज, गजवक्त्र, बालगणपति, यशस्कर, गणाध्यक्ष, महाबल, सर्वदेवात्मन,एकाक्षर, सर्वसिद्धांत, ओमकार, गणाध्यक्षिण, लम्बकर्ण, यज्ञकाय, बुद्धिप्रिय, महेश्वर, गजवक्र, द्वैमातुर, विकट, लम्बकर्ण, अवनीश, महागणपति, चतुर्भुज, लम्बोदर, प्रमोद, कृपाकर, वीरगणपति, मृत्युंजय, बुद्धिप्रिय, बुद्धिनाथ, कपिल, गजकर्ण, उमापुत्र, देवेन्द्राशिक, गणपति, प्रथमेश्वर , निदीश्वरम, वक्रतुण्ड, शूपकर्ण, कृष्णपिंगाश, रुद्रप्रिय, गदाधर, गौरीसुत, भुवनपति, सिद्दिविनायक |
Ganesh | Vignesh, Gajanan, Hastimukh, Lambodar, Hember, Vigneshwar, Daimatur, Gajvadan, Ekadanta, Shankarsuvan, Mousekavahana, Gajabadan, Ambikeya, Gaurinandan, Ganapati, Countnayak, Shivsut, Vinayaka, Mahakaya, Gajasya, Vighna, Vakrutva, Vakratunda, Moddata, Shoorpakarna, Dvaimatur, Dhundhiraj, Gajavaktra, Balaganpati, Yashaskar, Ganadhyaksha, Mahabal, Sarvadevatman, Monoakshara, Sarvasiddhant, Omkar, Ganadhyakshain, Lambakarna, Yajnakaya, Intellectual, Maheshwar, Gajvakra, Dvaimatur, Vikata, Lambakarna, Avneesh, Mahaganpati, Chaturbhuj, Lambodar, Kripakar, Pranabhuj, Lambodar, Mrityunjaya, Buddhipriya, Budhinath, Kapila, Gajkarna, Umaputra, Devendrashik, Ganapati, Prathameshwar, Nidiswaram, Vakratunda, Shupakarna, Krishnapingash, Rudrapriya, Gadadhara, Gaurisut, Bhuvanapati, Siddivinayak. |
Ganesh in English | vignesh, Gajanan, Handsome, vigneshwar, Daimatura, Gajavadan, Ekadanta, Shankarsuvan , Mousekavahan, Gajabadan, Ambike, Gauri Nandan, Ganapati, Ganayak, Shivasut, Vinayaka, Mahakaya, Gajasya, Vighnaraj, Vakratunda, Vakratunda, Mousekavahana, Umasutam, Moddata, Shurpakarna, Dvaimatur, Dhundhiraj, Gajavaktra, Balaganpati, Yashaskar, Ganadhyaksha, Mahabal, Sarvadevatman, Monoakshara, Sarvasiddhant, Omkar, Ganadhyakshain, Lambakarna, Yajnakaya, Intellectual, Maheshwar, Gajvakra, Dvaimatur, Vikata, Lambakarna, Avneesh, Mahaganpati, Chaturbhuj, Lambodar, Kripakar, Pranabhuj, Lambodar, Mrityunjaya, Buddhipriya, Budhinath, Kapila, Gajkarna, Umaputra, Devendrashik, Ganapati, Prathameshwar, Nidiswaram, Vakratunda, Shupakarna, Krishnapingash, Rudrapriya, Gadadhara, Gaurisut, Bhuvanapati, Siddivinayak . |
1. विघ्नेश (Vighnesh)
2. गजानन (Gajanan)
3. हस्तिमुख (Hastimukh)
4. लम्बोदर (Lambodar)
5. हेम्बर (Hembar)
6. विघ्नेश्वर (Vighneshwar)
7. दैमातुर (Daimatur)
8. गजवदन (Gajavadan)
9. एकदन्त (Ekadant)
10. शंकरसुवन (Shankarsuvan)
11. मूषकवाहन (Mooshakvahan)
12. अंबिकेय (Ambikey)
13. गौरीनंदन (Gaurinandan)
14. गणपति (Ganapati)
15. गणनायक (Gannayak)
16. शिवसुत (Shivsut)
17. विनायक (Vinayak)
18. महाकाय (Mahakay)
19. गजास्य (Gajasya)
20. विघ्नराज (Vighnaraj)
21. वक्रतुंड (Vakratund)
22. मूषकवाहन (Mooshakvahan)
23. उमासुत (Umasut)
24. मोददाता (Modadata)
25. शूर्पकर्ण (Shurpakarn)
26. द्वैमातुर (Dvaimatur)
27. ढुंढिराज (Dhundhiraj)
28. गजवक्त्र (Gajavaktra)
29. बालगणपति (Balaganpati)
30. यशस्कर (Yashaskar)
31. गणाध्यक्ष (Ganadhyaksh)
32. महाबल (Mahabal)
33. सर्वदेवात्मन (Sarvadevatman)
34. एकाक्षर (Ekakshar)
35. सर्वसिद्धांत (Sarvasiddhant)
36. ओमकार (Omkaar)
37. गणाध्यक्षिण (Ganadhyakshin)
38. लम्बकर्ण (Lambakarn)
39. यज्ञकाय (Yajnakay)
40. बुद्धिप्रिय (Buddhipriya)
41. महेश्वर (Maheshwar)
42. गजवक्र (Gajvakra)
43. द्वैमातुर (Dvaimatur)
44. विकट (Vikat)
45. लम्बकर्ण (Lambakarn)
46. अवनीश (Avanish)
47. महागणपति (Mahaganpati)
48. चतुर्भुज (Chaturbhuj)
49. लम्बोदर (Lambodar)
50. प्रमोद (Pramod)
51. कृपाकर (Kripakar)
52. वीरगणपति (Veerganpati)
53. मृत्युंजय (Mrityunjay)
54. बुद्धिप्रिय (Buddhipriya)
55. बुद्धिनाथ (Buddhinath)
56. कपिल (Kapil)
57. गजकर्ण (Gajakarn)
58. उमापुत्र (Umaputra)
59. देवेन्द्राशिक (Devaendrashik)
60. गणपति (Ganapati)
61. प्रथमेश्वर (Prathameshwar)
62. निदीश्वरम (Nideeshwaram)
63. वक्रतुण्ड (Vakratund)
64. शूपकर्ण (Shupakarn)
65. कृष्णपिंगाश (Krishnapingash)
66. रुद्रप्रिय (Rudrapriya)
67. गदाधर (Gadadhar)
68. गौरीसुत (Gaurisut)
69. भुवनपति (Bhuvanpati)
70. सिद्दिविनायक (Siddhivinayak)
71. देवेन्द्राशिक (Devaendrashik)
गणेश जी को गजानन्द के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है की जिसका मुख गज का हो । यह गजानन्द भगवान शिव के पुत्र के रूप मे जाने जाते है । ऐसा इस कारण से है क्योकी माता पार्वती ने ही गणेश को जन्म दिया था तो शिव के गणेश पुत्र हुए । इसी तरह से शिव का एक पुत्र और था जिसका नाम कार्तिक्य था । और गणेश उसका भाई था ।
इसके अलावा गणेश वे है जीनकी पृथ्वी पर प्रथम पुजा होती है उसके बाद मे ही किसी अन्य देव की पूजा होती है । पृथ्वी पर गणेश को गणपति के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ है गणो का राजा यानि गणो का स्वामी । गणेश का हाथी का शिर होने के कारण से उसके लंबे कान है जो किसी भी अच्छी बात को जल्दी सुनने के लिए होते है ।
गणेश के जन्म के बारे मे अनेक कथाए सुनने को मिलती है । जिसमे अलग अलग कथा के रूप मे गणेश की उत्पत्ति कारण माता पार्वती को ही बताया जाता है । किसी कथा मे कुछ अलग तरह से तो किसी मे किसी अलग तरीके से गणेश की उत्पत्ति होती है मगर सत्य है की गणेश की उत्पत्ति तो हुई है और वह भी माता पार्वती के कारण ।
शिवपुराण कहता है की माता पार्वती एक बार स्नान करने के लिए जा रही थी । क्योकी माता पार्वती हमेशा ही घोर तप करती रहती थी जिसके कारण से उन्हे कई महिने बित जाते मगर वे स्नान नही कर पाती थी । उस दिन भी कुछ ऐसा ही थी माता पार्वती कोई बहुत समय बित गया मगर स्नान नही कर पाई थी । और अब माता पार्वती जब स्नान करने के लिए जा रही थी तो उसने सबसे पहले अपने शरीर का मेल उतार दिया ।
अब मेल बहुत ही अधिक था जीसे देख कर माता पार्वती को लगा की जब मैं स्नान करने के लिए जाउगी तो द्वार पर कोन रहेगा ताकी कोई भी अंदर नही आ सकेगा । तभी उसने सोचा की अब तो शिव भी यहां नही है । ऐसा सोचते सोचते उन्होने गणेश के लिए उस मेल का पुतला बना दिया । और फिर उस पुतले मे प्राण डाल दिए थे ।
प्राण डाल sदेने के कारण से पुतला एक साधारण बच्चे की तरह दिखने लगा था मगर वह अपने बचपन से कुछ बढा था उसे ज्ञान की बात मालूम थी । तब माता पार्वती ने उसे समझाया की मैंने तुम्हारा जन्म किया है इस कारण से मैं तुम्हारी माता हूं और तुम्हे मेरी आज्ञा माननी है ।
बच्चा बडा ही समझदार था इस कारण से उसने माता पार्वती की बात मान ली और वह द्वार पर बैठ गया और मात पार्वती स्नान करने के लिए चली गई थी । उस समय माता पार्वती ने उस बालक का नाम गणेश रखा था । इस तरह से माता पार्वती ने अपने मेल से गणेश को बनाया था ।
कहते है की पार्वती के कोई भी पुत्र नही था और शिव जो थे वे ज्यादातर अपने ध्यान या भग्तो मे लगे रहते थे । जिसके कारण से पार्वती अपने आप को अकेला महसुस करती थी । तब माता पार्वती ने एक बालक की इच्छा जताई । यह सोचते ही वह तप करने के लिए बैठ गई । और उसने घोर तप करना शुरू कर दिया था ।
तप इतना अधिक था की उन्हे गणेश के जन्म का वरदान मिला । मगर यह बालक गणेश उनके गर्भ से नही होगा बल्की ऐसे ही उत्पन्न होगा जो साधारण रूप से बडा होगा और उसे ज्ञान होगा । यह सुन कर माता पार्वती प्रसन्न हो गई । क्योकी उसे इस तरह का बालक ही चाहिए था जो उसकी बात मान कर उसकी बात समझ कर कार्य कर सके। इस वरदान के बाद मे माता पार्वती के घर में भगवान गणेश का जन्म हुआ था।
गणेश पुराण में बताया गया है की एक बार क्रोंच नाम का एक गंधर्व हुआ करता था । वह बहुत ही शरारती थी और हर किसी के साथ शरारत करता रहता था । उसकी इस शरारत के कारण से हर कोई परेशान था । मगर कोई उसका कुछ नही कर पा रहे थे । इसी तरह से एक बार मुनि वामदेव और क्रोंच दोनो के अलावा और भी बहुत से देव देवता वहां पर गए हुए थे ।
सभी अपने अपने आसन पर विराजमान थे और मुनी वामदेव भी अपने आसन पर विराजमान थे । तभी अचानक मुनी वामदेव के पेरो पर क्रोंच का पैर लग गया । यह देख कर मुनी क्रोधित होकर क्रोंच को श्राप देकर मुषक में बदल दिया । यह सब देख कर सभी परेशान हो गए । क्योकी मुषक तो मुनी ने बना दिया था मगर वह विशाल था ।
क्योकी अब फिर से श्राप देकर उसे छोटा नही बनाया जा सकता था क्योकी अब उसकी कोई गलती नही थी । मगर अपने विशाल रूप के कारण से क्रोंच अपनी शरारत के कारण से वेसे ही लोगो को तंग करता रहता था । क्रोंच के विशाल होने के कारण से कोई भी उसका कुछ नही बिगाल पा रहे थे । मगर एक बार गणेश ने उसे सबक सिखाने के लिए उसका पिछा करना शुरू कर दिया ।
अब क्रोंच अपने विशाल रूप और अपनी शक्तियो के कारण से गणेश को हराने के लिए भागने लगा था । मगर गणेश हार नही मान रहे थे इसी तरह से बहुत समय के बाद मे क्रोंच ही थक गया मगर गणेश नही थक पाए थे । जिसके कारण से गणेश ने क्रोच को पकड लिया। अब क्रोंच की हालत इतनी अधिक खराब थी की वह गणेश के पैरो मे आ गिरा ।
अब क्रोंच को लगा की गणेश उन्हे मार डालेगे । तो उसने गणेश से अपने किए की माफी मागी और गणेश से प्रथना करने लगा । यह देख कर गणेश उसे माफ कर दिया तब गणेश ने क्रोंच को वरदान देना चाहा मगर क्रोंच को अब भी अपने आप पर घंमड था जिसके कारण से उसने स्वयं तो वरदान लिया नही बल्की गणेश को ही वरदान देने की बात करने लगा ।
गणेश के लंबे कानो के कारण से उसने क्रोंच के मन की बात जान ली और उससे वरदान के रूप मे अपना वाहन बनने को कहा । गणेश की बात सुन कर क्रोंच ने अपने आप को गणेश का वाहन बनने का वरदान दे दिया । इस तरह से गणेश का वाहन क्रोंच नाम का मुषक था। जो की श्राप के कारण से मुषक बना था ।
जी हां, बहुत से ऐसे कारण होते है जिनके आधार पर यह कहना गलत नही हो सकता है की भगवान गणेश जो है वह मानव के लिए जरूरी है ।
दरसल हमारे पूराणे जो ग्रंथ ओर पुराण है उनके अंदर हमे भगवान गणेश के बारे में काफी कुछ बताया गया है । इनके ज्ञान के बारे में भीबताया गया है और बहुत कुछ इनके बारे में जानने को मिल जाता है ।
वैसे जो कुछ हमने आपको उपर जानकारी दी है उनके आधार पर भी आप यह कह सकते है की मानव के लिए भगवान गणेश उपयोगी है ।
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