दोस्तो इस लेख मे हम जानेगे की हनुमान के पर्यायवाची शब्द hanuman ka paryayvachi shabd क्या होते है या हनुमान के सामनार्थी शब्द hanuman ka samanarthi shabd क्या है । इसके अलावा इस लेख मे हनुमान के जीवन के बारे मे भी जानेगे । तो इस लेख को आराम से देखे ।
शब्द { shabd } | पर्यायवाची शब्द या समानार्थी शब्द {paryayvachi shabd / samanarthi shabd} |
हनुमान | मारुति, पवनसुत, अज्जनीकुमार, महावीर, विक्रम, बजरंगबली, बजरंगी, कपिकेशरी, कपीश, जितेन्दि्रय, वातत्मज, पवनकुमार, रामदूत, वरिष्ठ, प्रमंजनजात, मारूति, अक्षहन्त, रामभग्त, भग्तराज, कपीश्वर, वानर यूथपति, पंचमुखी हनुमान, वानराय, वानरेश्वर, ब्रह्मचारी, |
hanuman | Maruti, Pawansut, Ajnikumar, Mahavir, Vikram, Bajrangbali, Bajrangi, Kapikeshari, Kapish, Jitendriya, Vattmaj, Pawankumar, Ramdoot, Senior, Pramanjat, Maruti, Akshahant, Rambhagat, Bhagtraj, Kapishwar, Vanar Yuthpati, Panchmukhi Hanuman, Panchmukhi Hanuman, brahmachari. |
hanuman | Maruti, Pawansut, Ajnikumar, Mahavir, Vikram, Bajrangbali, Bajrangi, Kapikeshari, Kapish, Jitendriya, Vattmaj, Pawankumar, Ramdoot, Senior, Pramanjat, Maruti, Akshahant, Rambhagat, Bhagtraj, Kapishwar, Vanar Yuthpati, Panchmukhi Hanuman, Panchmukhi Hanuman, celibate. |
1. मारुति (Maruti)
2. पवनसुत (Pavanasut)
3. अज्जनीकुमार (Ajjanikumara)
4. महावीर (Mahaveer)
5. विक्रम (Vikram)
6. बजरंगबली (Bajrangbali)
7. बजरंगी (Bajrangi)
8. कपिकेशरी (Kapikeshari)
9. कपीश (Kapish)
10. जितेन्द्रिय (Jitendriya)
11. वातत्मज (Vatamaja)
12. पवनकुमार (Pavanakumara)
13. रामदूत (Ramadoot)
14. वरिष्ठ (Varishtha)
15. प्रमंजनजात (Pramanjana-jata)
16. मारूति (Maruti)
17. अक्षहन्त (Akshahanta)
18. रामभग्त (Ramabhakta)
19. भग्तराज (Bhaktaraj)
20. कपीश्वर (Kapishwara)
21. वानर यूथपति (Vanar Yuvapati)
22. पंचमुखी हनुमान (Panchamukhi Hanuman)
23. वानराय (Vanaraya)
24. वानरेश्वर (Vanarendra)
25. ब्रह्मचारी (Brahmachari)
हनुमान शब्द मे हनु का अर्थ ठुड्डी से होता है । क्योकी ठुड्डी को संस्कृत मे हनु कहा जाता है । एक बार हनुमान जी सूर्य के फल समझ कर खाने जा रहे थे तब उनकी यह हनु टूट गई थी क्योकी इंद्र ने हनुमान को रोकने के लिए प्रहार किया उस समय ही उनकी यह हनु टूट गई । उसी दिन हनुमान का यह नाम हनुमान रखा गया जिसका अर्थ होता है जीसकी हनु या ठुड्डी टूटी हुई हो । मगर इसके अलावा कुछ अलग अर्थ भी होते है जैसे –
हनुमान को जन्म देवने वाली माता अंजनी थी और उनका पति कैसरी था जो एक वानर था । बताया जाता है की माता अंजना को श्राप मिला था जिसके कारण से उन्हे हनुमान प्राप्त हुआ साथ ही बताया जाता है की कैसरी को वरदान मिला था । यानि हनुमान के जन्म के पिछे के दो कारण है मगर तीन घटनाओ से मिलकर इनका जन्म हुआ था ।
माता अंजना से पहले जन्म में वह एक अप्सरा थी । उस जन्म मे माता अंजना का नाम पुंजिकस्थली था और वह इंद्र लोक मे रहा करती थी । इंद्रलोक मे हर समय सभा का आयोजन होता है जिसके कारण से अनेक देव और कुछ ऋषि भी वहां पर आ जाते है । इसी तरह से एक बार इंद्र लोक मे इंद्र देव के पास ऋषि दुर्वासा आए हुए थे । इस तरह से इंद्र और ऋषि दुर्वासा बैठे बाते कर रहे थे । मगर तभी ऋषि दुर्वासा ने देखा की पुंजिकस्थली बार बार उनके सामने से जाती है ।
क्योकी ऋषी को यह अच्छा नही लगता की वे किसी स्त्री को देखे । यह बात पुंजिकस्थली को भी पता थी । मगर फिर भी ऋषि दुर्वासा के सामने पुंजिकस्थली आती जा रही थी । इस तरह से जब बहुत बार हुआ तो ऋषि दुर्वासा को क्रोध आ गया और उन्होने क्रोध के रूप मे पुंजिकस्थली को श्राप दिया की तुम्हारा विवाह अगले जन्म मे एक वानर के साथ होगा साथ ही कहा की तुम्हारे गर्भ से प्राप्त होने वाला बच्चा भी एक वानर होगा ।
यह सुन कर पुंजिकस्थली डर गई । तब पुंजिकस्थली ने ऋषि दुर्वासा से माफी मागी और कहा की हे ऋषि मैं आपको परेशान करने के लिए ऐसा नही कर रही थी । दुर्वासा शांत हो गए जिसके कारण से उन्होने कहा की कोई बात नही तुम्हारे गर्भ से जन्म लेने वाला कोई साधारण बालक नही होगा बल्की वह तो स्वयं पवन देव का पुत्र होगा । यानि जो पवनदेव से ही बडकर होगा ।
यह सुन कर पुंजिकस्थली शांत हो गई । इसी के चलते पुंजिकस्थली का अगला जन्म एक स्त्री के रूप मे पृथ्वी पर हुआ । और अब उसका नाम अंजना रखा गया था । मगर अंजना शिव की बडी भग्त थी जिसके कारण से वह शिव का तप करती थी । इसी तप के कारण से शिव उस पर प्रसन्न हो गए और उसे श्राप के चलते हुए स्वयं ही अवतार के रूप मे पवन देव की साहयता से अंजना के गर्भ में प्रवेश कर गए । इसी कारण से माता अंजना ने इतने बलशाली शिव के अवतार को जन्म दिया । इस तरह से हनुमान का जन्म हुआ ।
दुर्वासा के श्राप के कारण से अंजना का विवाह कैसरी से हुआ था जो वानरराज थे । और कैसरी ने भी एक बार कुछ ऋषियो की मदद की थी जिसके कारण से उन्हे भी मारूती जैसा पूत्र प्राप्ती का वरदान मिला था । कथा के अनुसार एक बार बहुत से ऋषि जंगल के किनारे पर पूजा कर रहे थे और वही से वानरराज जा रहे थे मगर वे एक पहाडी से ऋषियो को यह सब करते देख रहे थे तभी अचानक वानरराज कैसरी ने देखा की ऋषियो के पास एक हाथी आ गया है जो उनकी पूजा मे विघन डालने का काम कर रहा है ।
यह देखकर वानरराज कैसरी ने ऋषियो की मदद करने की सोची और उनके पास चला गया । तब वानरराज कैसरी ने देखा की हाथी ऋषियो को बहुत अधिक परेशान कर रहा है । इसी कारण से कैसरी ने उस हाथी को मार गिराया । जिसके कारण से ऋषि खुश होकर उन्हे बलवान पुत्र प्राप्ती का वरदान दे दिया । इस बारे मे कही और नही बल्की रामचरितमानस मे ही बताया गया है ।
एक कथा यह भी सुनने को मिलती है की एक बार कैसरी अपनी पत्नी अंजना के साथ शिव की तपस्या के लिन हो गए थे । क्योकी अंजना शिव की भग्त थी और कैसरी और अंजना को पुत्र प्राप्ती का वरदान चाहिए था । इस तपस्या के कारण से शिव प्रसन्न होकर अंजना और कैसरी के सामने आ गए । और कहा की अंजना और कैसरी मैं आप दोनो की तपस्या से प्रसन्न हुआ आपको क्या वरदान चाहिए । तब अंजना ने कहा की भगवन हमे एक ऐसा पुत्र चाहिए जो स्वयं बलवान हो । यह सुन कर शिव ने कहा की मैं आपको ऐसे पुत्र प्राप्ती का वरदान देता हूं । फिर पुत्र जन्म के रूप मे हनुमान का जन्म हुआ ।
यह कथा हनुमान के जीवन की सबसे बडी कथा है । क्योकी इस कथा के अनुसार ही हनुमान को यह नाम प्राप्त हुआ था । इस घटना से पहले हनुमान का नाम मारूती था । घटना यह थी एक बार मारूती को अंजना अकेले ही महल मे छोड कर वन मे चली गई और मारूती को खाने के लिए कुछ सेव दिए थे । जब मारूती को भूख लगी तो वह सेव खाने लगा था मगर उन सेव से उसका पेट नही भरा था । तभी मारूती की नजर सूर्य पर पडी तो मारूती को लगा की वह बडा सेव है क्योकी सूर्य और सेव का रंग लाल था ।
इस कारण से मारूती सूर्य को फल समझ कर खाने के लिए आकाश मे चले गए । आकाश की और जाते समय वायु का तेजप्रवाह हो गया था । मगर वायुदेव मारूती के पिता होने के कारण से वायु उन्हे नही रोका पाई । तब मारूती सूर्य के पास पहुंच गया था । सूर्य के पास जाने पर वही राहू था जो सूर्य को घ्रहण लगाने के लिए आया था । मगर राहु से पहले मारूती वहां पर पहुंच गया ।
जिसे देख कर राहु ने मारूती को रोकने की कोशिश की और कहा की मैं राहू हु ओर सूर्य को केवल मैं ही घ्रहण लगा सकता हूं । मगर राहु मारूती को रोक नही पाए बल्की वे हार कर इंद्र के पास शिकायत लेकर पहुंचे । जब इंद्र को राहु ने यह सारी बात बताई तो इंद्र भी मारूती को रोकने के लिए चले गए और उन्हे रोकने गले । मगर मारूति उनकी बात भी नही सुन रहा था ।
तब वे जब मारूति नही रूका तो इंद्र ने मारूति पर वज्र से प्रहार कर दिया । जिससे मारूति मुर्झीत होकर निचे की और गिरने लगे थे । मगर वायु देव ने उन्हे बचा लिया । इस तरह से इंद्र के वज्र प्रहार के कारण से मारूति मुर्झीत हो गए थे । मगर इस घटना मे उनका बहुत फायदा हुआ और नुकसान केवल यह था की उनकी हनु जरा बिगड गई थी जिसके कारण से उन्हे हनुमान नाम मिला । मगर फायदा उन्हे बहुत सी शक्तियो के रूप मे हुआ । इस तरह से हनुमान बलवान और ज्ञानी बन गए थे ।
दोस्तो भगवान हनुमानजी के बारे में हम सभी को पता है । और पुराणो में कहा गया है साथ ही रामायण में भी लिखा गया है की हनुमानजी जो होते है वे मानव के जीवन में होने वाले कष्टो को दूर करने का काम करता है ।
तो इसका मतलब है की हनुमानजी महाराजा मानव के लिए उपयोगी होते है । और जो जीवन में हमारी मदद करते है ओर इस शरीर को दूखो और कष्टो से दूर करते है वे मानव के लिए उपयोगी ही होते है ।
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