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Karm  ka vilom shabd कर्म का विलोम शब्द ?

कर्म का विलोम शब्द, ‌‌‌आलोचना कर्म का विपरीतार्थक शब्द है, कर्म का उल्टा Karm  ka vilom shabd

शब्द (word) विलोम (vilom)
कर्म‌‌‌अकर्म
Karm Akarm, Karmheen, Nishkarm Akarm, Karmheen, Nishkarm

Karm ka vilom shabd कर्म का विलोम शब्द

‌‌‌कर्म का विलोम शब्द होता है अकर्म । दोस्तों कर्म बारे मे आप अच्छी तरह से जानते ही हैं। कर्म का मतलब होता है जो आप कर रहे हैं वही कर्म होता है। कर्म के बारे मे गीता के अंदर बहुत ही अच्छे तरीके से बताया गया है।कर्म दो प्रकार के होते हैं एक होता है अच्छा कर्म और दूसरा होता है बुरा कर्म । ‌‌‌दोस्तों अच्छे कर्म के बारे मे आप अच्छी तरह से जानते ही हैं। अच्छे कर्म का मतलब होता है यदि आप किसी के फायदे के लिए या फिर आप किसी की भलाई के लिए काम करते हैं तो उसे हम अच्छे कर्म के नाम से जानते हैं। जैसे ‌‌‌किसी देश के अंदर भूकंप आ गया और इसकी वजह से वहां पर भूखमरी की स्थिति फैल गई । अब यदि आप उस स्थान से अलग रहते हैं तो यदि आप अच्छे कर्म करने वाले इंसान हैं तो उसके बाद आप वहां पर रहने वाले लोगों की मदद कर सकते हैं इसके लिए आप रोटी कपड़ा और  खाने पीने का अन्य सामान भैंट कर सकते हैं। यह आपके ‌‌‌अच्छे कर्म के अंदर गिना जाएगा । इसी तरीके से यदि आपका पड़ोंसी किसी मुश्बित के अंदर है और आप उसकी मदद करते हैं। तो यह आपका अच्छा कर्म ही कलाएगा । दोस्तों अच्छा कर्म अधिकतर वे लोग करते हैं जिनका कर्म संस्कार अच्छा होता है। और जिनके मन मे अच्छाई करने की भवना होती है।

‌‌‌वैसे आपको बतादें कि अच्छा कर्म करने वाले लोग इस दुनिया के अंदर बहुत ही कम बचे हैं। कारण यह है कि आजकल अच्छे लोगों की जीत कहां पर होती है। हर जगह पर बुरे लोग भरे पड़े हैं और वे अच्छे लोगों को जीने ही नहीं देते हैं। ऐसी स्थिति के अंदर बचे हुए अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं आप इस बात को ‌‌‌अच्छी तरह से समझ सकते हैं। लेकिन अच्छा कर्म हमेशा आपके लिए फायदे का सौदा होता है। यदि आप दूसरों के साथ अच्छा करते हैं तो आपके साथ भी अच्छा ही होता है। लेकिन यदि आप दूसरों के साथ बुरा करते हैं तो आपके साथ ही बुरा होता है।

‌‌‌अब यदि हम बात करें बुरे कर्म की तो बुरे कर्म का मतलब होता है जब आप किसी को नुकसान पहुंचाते हैं। जैसे कि आप किसी गरीब का हक मारते हैं या अपने से कमजोर जीव की हत्या कर देते हैं तो यह आपका बुरा कर्म कहलाता है।

‌‌‌दोस्तों यदि आप एक बुरे इंसान हैं तो आपको अच्छा इंसान बनने की कोशिश करनी चाहिए । यही आपके लिए सही होगा । यदि आप बुरे इंसान हैं तो आपका अंत भी बुरा ही होता है। आप कितने अपराधी और माफियाओं का हृस देखते हैं जो बिना वजह ही दूसरों को तड़पाते हैं तो अंत मे इस तरह के लोग ‌‌‌पुलिस की गोली से एक ना एक दिन मारे जाते हैं आप इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि बुरे इंसान का कभी भी भला नहीं हो सकता है। आपको सदैव अच्छा इंसान बनने का प्रयास करना चाहिए । और यदि कोई आपके सामने बुरा करता है तो उसे रोकने की कोशिश करनी चाहिए ।

‌‌‌अकर्म का अर्थ और मतलब

दोस्तो अकर्म के बारे मे आपने अच्छी तरह से सुना ही होगा अर्कम का मतलब होता है बिना किसी के फल की इच्छा से जो कर्म किया जाता है वह अर्कम होता है। आप यदि किसी काम को फल कि इच्छा के बिना करते हैं तो यह अकर्म होता है। एक तरह से देखा जाए तो यही सबसे बेस्ट कर्म होता है ‌‌‌असल मे यह कर्म के होते हुए भी कर्म का नहीं होना होता है। क्योंकि आप जो कर्म करते हैं उसकी छाप आपके मन के उपर नहीं पड़ती है। और इसकी वजह से इस तरह के कर्म का फल आपको भोगना नहीं पड़ता है। इस वजह से इसको अर्कम के तौर पर माना जाता है।

‌‌‌अब रही बात अकर्म कि तो क्या आपको पता है कि अकर्म कौन लोग करते हैं ? तो आपकी जानकारी के लिए बतादें कि अकर्म को वे ही लोग करते हैं जोकि इसके रहस्य को जानते हैं। इसके रहस्य को नहीं जानने वाले लोग अकर्म को नहीं करते हैं। एक अज्ञानी इंसान इसको कभी भी नहीं कर सकता है।

‌‌‌अब आपके दिमाग मे यह भी आता होगा कि अकर्म का रहस्य क्या है ? तो आपको बतादें कि अकर्म एक बहुत ही सुंदर चीज होता है। जब आप अकर्म करते हैं तो बस आप सब चीजों को अपना कर्त्तव्य समझ कर ही करते हैं।आपकों यह पता होना चाहिए कि आपका दिमाग एक एक मैमोरी की तरह डेटा को स्टोर करता है।

‌‌‌जब आप कर्म करते हैं तो आपका दिमाग उससे या तो प्लस लेता है या फिर माइनस लेता है। और जब आप अकर्म करते हैं तो उससे आपका दिमाग ना तो प्लस लेता है और ना ही माइनस लेता है। और उसके बाद आपको यह प्रभावित नहीं करता है। इसका मतलब यह हुआ कि जो अकर्म करने वाला होता है वह अपने या फिर किसी दूसरे के कर्म ‌‌‌ से प्रभावित नहीं होता है। कारण यह है कि वह खुद को कर्ता मानता ही नहीं है। और यही सच्चाई है। जिस शक्ति से शरीर चल रहा है। वह शक्ति आत्मा होती है। आत्मा के आवरण के तौर पर मन होता है। मन का होना ही हम खुद का होना समझते हैं। एक इंसान को यही लगता है कि वह अमुक नाम का है। लेकिन इसके अंदर ‌‌‌किसी भी तरह की सच्चाई नहीं होती है। क्योंकि आत्मा का नाम कुछ भी नहीं होता है। असल मे जो नाम होता है वह शरीर का होता है। और उसे शरीर तक ही समझना चाहिए । यदि आप मन को अपना समझते हैं तो भी आप गलत कर रहे हैं। क्योंकि आपका मन एक तरह से एकत्रित की गई सूचनाओं से अधिक कुछ भी नहीं है।

‌‌‌जब आप खुद कर्तापन का भाव का त्याग कर देते हैं तो उसके बाद आप उसके प्रभावों से बच जाते हैं। यदि कोई यह सोचता है कि उसने किसी को मार दिया तो फिर उसे इसकी सजा भुगतनी होती है। यही नैचर का नियम है। आपको बतादें कि आपकी सोच आपके अंदर समाहित होने से सब कुछ होता है।

‌‌‌आपको अकर्म की दशा तक पहुंचने के लिए काफी अधिक मेहनत करनी होती है। ऐसे ही आप अकर्म की दशा तक नहीं पहुंच सकते हैं। इसके लिए आपको बहुत अधिक प्रयास करना होगा । यदि आप प्रयास करते हैं तोही आप अकर्म को कर पाएंगे । वरना कर्मबंधन के अंदर बंधना तो यह ही है।

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