लालच का विलोम शब्द ,लालची का विलोम शब्द ,लालच का उल्टा ,lalach ka vilom shabd ,
शब्द (word) | विलोम (vilom) |
लालच | संतोष |
lalach | santosh |
लालची | संतोषी |
लालच का मतलब है जो संतोष नहीं करता हो । या जो और की इच्छा करता हो या एक ऐसा इंसान जिसकी तृष्ण बढ़ती ही रहती हो उसे हम लालची इंसान कहेंगे। लालच का मतलब है जो असीमित प्राप्त करना चाहता हो । या जिसकी सीमा लंबी हो ।
आज से 10000 साल पीछे यदि आप जाते हैं तो आप देखेंगे कि इंसान इतना अधिक लालची नहीं था। क्योंकि उसे कुछ अधिक पता ही नहीं था। सोना कहीं भी आप गिरा दें । उसे कोई नहीं चुरा सकता था । क्योंकि तब यह उनके लिए एक पत्थर के समान था । लेकिन आप आज सोना गिराना तो दूर की बात 10 का नोट गिरा दिजिए वह भी आपको नहीं मिलेगा । इंसानों के अंदर इतना लालच बढ़ने का कारण यह है कि संसाधन कम होते जा रहे हैं और आने वाले दिनों मे तो लालच बहुत अधिक बढ़ ही जाएगा ।
पहले जमीन ऐसे ही पड़ी रहती थी उनकी कोई भी बॉवडरी नहीं होती थी लेकिन आज आप देख रहे हैं कि लोग जमीन के छोटे से छोटे टुकड़े के लिए लड़ रहे हैं।यह सिर्फ इंसानों के साथ ही नहीं हो रहा है । वरन जानवरों मे तो यह बहुत पहले से ही होता आ रहा है।
यदि 500 साल के अंदर लोग इतने लालची हो चुके हैं तो आने वाले 500 साल बाद क्या होने वाला है ? वैसे तो तब तक आपस मे ही लड़कर इंसान खत्म हो ही जाएगा नहीं तो लड़ रहा होगा ।तों एक तरह से लालच भी एक प्राकृतिक परिणाम ही होता है।फिर भी ऐसा नहीं है कि सारे लोग ही लालची हैं बहुत से लोग आज भी ऐसे हैं जो लालची नहीं हैं और संतोष करने पर भरोशा करते हैं।
संतोष का दूसरा नाम होता है तृप्ति । जैसे आपने पानी पिया और आपका पेट भर गया अब आपके अंदर पानी पीने की इच्छा नहीं है तो वह संतोष है। इस प्रकार से संतोष वह है जो किसी चीज के आवश्यकता से अधिक संग्रह पर रोक लगाता है। संतोष का मतलब है मांग का पूर्ण हो जाना । या मांग के एक खास स्तर पर ही खुद को सीमित कर देना ।
प्राचीन काल की बात है। एक गांव के अंदर लालच और संतोष दो भाई रहा करते थे दोनों ही भाई जंगल के अंदर लकड़ी काटने का काम करते थे । नाम के अनुसार ही उनका स्वाभाव भी था। लालच जहां काफी लालची था तो संतोष नाम के अनुसार संतोंषी था। लालच पूरे दिन अधिक पैसा कमाने के सपने देखता था तो संतोषी ईश्वर से यह प्रार्थना करता था कि उसे उतना मिल जाए कि उसका पेट भर सके । एक दिन वो जंगल के अंदर लकड़ी काटने के लिए गए ।तो दोनो ऐेसे ही घूमते हुए दूर निकल गए । संतोष ने अपने भाई से कहा …….भाई आगे नहीं जाना चाहिए यहीं से लकड़ी काट लेते हैं । आगे जंगल के अंदर जाना सही नहीं होगा । वहां खतरा है।और उसके बाद संतोष तो वहीं पर लकड़ी काटने लगा। लेकिन लालच कहां मानने वाला था वह बोला ……..सुना है आगे जंगल के अंदर किसी लूटैरे ने सोना छिपा दिया था। और यह भी सुना है कि आगे चंदन के पेड़ हैं। आज हम क्यों ना चंदन की लकड़ी काट के लाते हैं
…….नहीं भइया अब अंधेरा होने वाला है। यह सही नहीं होगा । कल हम कई अन्य दोस्तों के साथ आएंगे तब ही घने जंगल मे जाएंगे । संतोष ने कहा था।
…….कल तक कौन वेट करेगा यार । मैं तो आज ही अच्छा पैसा कमाना चाहता हूं । तुझे चलना है तो चल नहीं तो मत चल । और उसके बाद लालच अंधेरे के अंदर गुम हो गया । संतोष ने उसको आवाज लगाई लेकिन वह नहीं माना और ।कुछ देर संतोष ने उसका इंतजार किया और फिर सोचा उसका कोई पता नहीं है। मैं तो घर चलता हूं । और वह घर आ गया । पूरी रात भाई का इंतजार किया लेकिन वह घर नहीं लौटा तो जैसे ही सुबह हुई ।
संतोष ने कुछ लोगों को अपने साथ लिया और घने जंगल के अंदर अपने भाई की तलास करने के लिए निकल पड़ा । घने जंगल मे जाने के बाद उनको एक कुल्हाड़ी पड़ी दिखी जोकि लालच की ही थी । लोगों ने उस कुल्हाड़ी को लिया और संतोष को दिखाया । संतोष ने उसको पहचान लिया और बोला …….यह मेरे ही भाई की कुल्हाड़ी है। लेकिन भाई आस पास नजर नहीं आ रहा है।उसके बाद वे कुछ दूर आगे चले तो वहां पर देखा कि एक हाथ बाहर की तरफ निकला है और हिल भी रहा है।लोगों ने जल्दी से लालच को बाहर निकाला लेकिन वह बेहोश था। उसे किसी तरह से होश मे लाया गया तो बोला ……..बहुत बुरा हुआ मेरे भाई संतोष जब मैं कल जंगल के अंदर यहां तक आया तो किसी जंगली जानवर की आवाज को सुनकर डर गया था तो जल्दी से भागा कुल्हाड़ी वहीं गिर गई और इस गढ्ढे के अंदर आ गिरा । शुक्र है भगवान का कि कोई जानवर नहीं आया नहीं तो वह मुझे मार ही देता है।
…….लालच मैं जानता था कि तू लालची है।और इसी लालच की वजह से आज तू अपने जीवन से हाथ धो बैठता क्योंकि लालच ही तो पतन का कारण है। यदि तूने सब्र रखा होता तो सब हाश्लि कर लेता है। अच्छा रहा कि तू बच गया क्योंकि किसी जन्म के अंदर तेरे पुण्य अच्छे रहे होंगे । वरना इस घने जंगल के अंदर रात को यदि कोई रूक जाता है तो उसे मौत मिलती है।
……..भइया अब मैं लालच नहीं करूंगा क्योंकि लालच ही तो पतन का कारण है। यदि आज मैंने लालच नहीं छोड़ा ते कल यह मुझे फिर किसी मुश्बित के अंदर डाल देगा ।
और उसके बाद सभी लोगों ने मिलकर चंदन की लकड़ी काटी और वापस अपने घर आ गए । इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि इंसान को कभी भी लालची नहीं होना चाहिए ।
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