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माया का विलोम शब्द क्या है maya ka vilom shabd kya hai ?

माया का विलोम शब्द या माया का विलोम , माया का क्या होता है ? maya  ka vilom shabd , maya  ka vilom shabd kya hai

शब्दविलोम शब्द
माया‌‌‌अमाया या वैराग्य
Mayaveragye

‌‌‌माया का विलोम शब्द और अर्थ maya  ka vilom shabd kya hai

दोस्तों माया का मतलब भ्रम होता है। एक तरह से माया एक जाल की तरह होता है। जो कुछ भी आपको दिखाई दे रहा है भौतिक जगत के अंदर वह माया ही है। माया का विलोम वैराग्य होता है।

‌‌‌दोस्तों माया एक तरह से जाल की तरह होती है।आपने उस मकड़ी को तो देखा ही होगा कि जो कि जाल को फैलाती है ताकि उसके अंदर कीट और पतंगे आकर फंस जाएं और वह उनको खा सके । बेचारे कीट पंतगे खाने के चक्कर मे आते हैं और उस जाल मे फंस कर ही रह जाते हैं। यही स्थिति माया के अंदर फंसे हुए इंसान की होती है।

‌‌‌ कोई विरला ही होता है जोकि माया के अंदर नहीं फंसा हुआ है।वरना आप और हम सब माया के अंदर फंसे हुए हैं। जब जन्म लेते हैं तो हमारा लक्ष्य इस जन्म और मरण के चक्र से आजाद होना होता है लेकिन बाद मे हम माया के अंदर फंस जाते हैं और जिस उदेश्य को लेकर आए थे उस उदेश्य को ही भूल जाते हैं।

‌‌‌यदि आप पूर्व जन्म के अंदर विश्वास करते हैं तो आपने इस बारे मे कई तरह की रियल घटनाएं भी देखी होंगी । कई घनाएं ऐसी हमारे जीवन के अंदर भी घटित होती हैं जोकि हम नहीं जानते हैं उनको पूर्व जन्म से गहरा संबंध होता है। दोस्तों माया को सदा ही त्याग करने के बारे मे कहा गया है। 

‌‌‌लेकिन माया का त्याग करना इतना आसान नहीं होता है जितना आसान की इसको समझा जाता है।यदि आप  यह सोच रहे हैं कि आपकी इच्छा मात्र से ही माया का परित्याग हो जाएगा तो आप गलत सोच रहे हैं। माया का त्याग करने के लिए आपको काफी मेहनत करनी होगी ।

‌‌‌आपने देखा होगा कि अनेक साधु संयासी को जोकि जंगलों के अंदर रहते हुए कठोर तप करते रहते हैं । वे इसी लिए तप करते रहते हैं कि माया से उनका पीछा छूटे । माया ही है जो सब दुखों का कारण होती है। माया ही आपको दुख देने वाली होती है। यदि आपका मन माया से अलग हो जाता है तो उसके बाद आप सदा ही शांति को ‌‌‌ प्राप्त करते हैं।

‌‌‌जो इंसान मोक्ष के बारे मे जानते हैं वे सदा इसको प्राप्त करने का प्रयास करते रहते हैं हालांकि माया से छूटना इतना आसान नहीं होता है। इसके लिए कई जन्म लग जाते हैं। तब किसी जन्म मे जाकर कल्याण होता है। हालांकि अब ऐसे गुरू पैदा हो चुके हैं जोकि आपको सीधा परलोक का सर्टिविकेट देते हैं।

‌‌‌और शिष्य भी उन गुरू के जैसे होते हैं। वे चाहते ही ऐसा हैं कि कोई उनको ऐसा गुरू मिल जाए जोकि उनको बस सर्टिविकेट देदे कि बस पे पार हो गए ।

‌‌‌खैर माया के अनेक रूप होते हैं।माया के रूप को समझना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। लेकिन जो योगी होते हैं वे माया के स्वरूप को बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं। और इसलिए वे माया को त्याग देते हैं।

‌‌‌अब आप माया के बारे मे समझ ही चुके हैं।माया काफी भयंकर है और इससे छूटकारा पाना इतना आसान नहीं है लेकिन यदि आप निरंतर अभियास करते हैं तो सब कुछ संभव हो सकता है।

वैराग्य का अर्थ और मतलब

दोस्तों वैराग्य का अर्थ होता है। किसी भी भौतिक आकर्षण का ना रहना । हम कहते हैं कि उसका माया मोह खत्म हो गया है तो वह संयासी बन चुका है। दोस्तों माया का उल्टा वैराग्य होता है। जिस इंसान को वैराग्य हो जाता है। उसके बाद उसके सामने सुंदर से सुंदर स्त्री आए या फिर उसके ‌‌‌सामने कितना भी धन दौलत क्यों ना आ जाए लेकिन उसका मन विचलित नहीं होता है इसका कारण यह है कि उसे अपनी आत्मा से प्रेम हो जाता है भगवान से प्रेम हो जाता है। और जो भगवान से प्रेम करता है। उसे यह पता चल जाता है कि इन सब भौतिक संसाधनों के अंदर कुछ भी नहीं रखा है । सब कुछ एक दिन नष्ट हो ही  ‌‌‌ जाएगा । इसलिए भगवान से प्रेम करना चाहिए । भगवान ही हैं जोकि नैया को पार लगा सकते हैं । और वे इस भय सागर से पार कर सकते हैं। इस संसार के अंदर दुख ही दुख है। आपको यहां पर कहीं पर भी सुख नहीं दिखेगा । जो सुख दिखता है उसके अंदर भी दुख छिपा हुआ है।

‌‌‌ जो ज्ञानी लोग होते हैं वो इस संसार के रहस्य को देख लेते हैं।और काफी अच्छी तरह से जान भी लेते हैं। इस तरह के लोग काफी दुर्लभ होते हैं जो सिर्फ शास्त्रों के पढ़ने पर ही यकीन नहीं करते हैं वरन शास़्त्रों को अपने अनुभव कर लेते हैं। इसके प्रकार के वैरागी दुर्लभ होते हैं। वरना कलयुग के अंदर ‌‌‌ढोगियों की कमी नहीं है।आज आप देखेंगे कि आपको कई लोग अब इसको एक बिजनेस बना चुके हैं इसकी मदद से काफी अच्छा पैसा कमाते हैं। बहुत से लोगो आशो को पसंद करते थे। बहुत सी बातें आशो ने लोगों को अच्छी बताई थी। लेकिन ओशो ने जन कल्याण के लिए कोई कार्य नहीं किया । उसने अच्छे पैसे कमाए और कई सारी ‌‌‌ गाड़ियां खरीदी । वे अपनी मेहनत की काफी अधिक कीमत वसूलते थे । खैर  ‌‌‌ओशो के अलावा भी बहुत से लोग हुए जिन्होंने सादा जीवन जिया और काफी अच्छी चीजें कहा लेकिन उनका मकसद पैसा कमाना या अधिक से अधिक एकत्रित कर लेना नहीं था। उनका मकसद अपने शिष्यों का कल्याण करना था। हालांकि ओशे एक वैरागी हो सकते हैं लेकिन यह उनका एक नकारात्मक पक्ष भी है।

‌‌‌खैर वैरागी का होना और अधिक धन का होना दोनो सीधे कनेक्सन मे नहीं है। यदि आप वैरागी हो जाते हैं तो इसका मतलब यह है कि आप मन से वैरागी होते हैं। उसके बाद आप शरीर से कुछ भी करते हैं तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

‌‌‌लेकिन ऐसा करने के लिए आपको बहुत ही लंबा अभियास करना होता है। तभी यह सब संभव हो सकता है।इतना आसान नहीं है। यह करना लंबे समय के अभियास से ही सही हो सकता है।

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