पाप का विलोम शब्द, पाप शब्द का विपरीतार्थक शब्द है, पाप का उल्टा Paap ka vilom shabd
शब्द (word) | विलोम (vilom) |
पाप | पुण्य, निष्पाप |
Paap | Puny, Nishpap |
दोस्तों पाप नाम के बारे मे हमने अच्छी तरह से सुना ही होगा ।पाप का मतलब होता है कोई भी कार्य जो दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए होता है वह पाप कर्म है। इसके अलावा अनैतिक कार्य भी पाप कर्म होता है। धर्म मे यह कहा जाता है कि इंसान को उसके कर्मों का हिसाब देना होता है।यह अवधारणा इसलिए चलाई गई है ताकि लोग अच्छा कर्म करें लेकिन आपको बतादें कि कुछ महामूर्खों के मन मे यह संशय होता है कि ईश्वर तो है नहीं तो वे जो कुछ भी पाप करेंगे उसका हिसाब उन्हें नहीं देना होगा ।
उसके बाद वे पाप कर्म मे लिप्त हो जाते हैं। फिर क्या है इतने अधिक लिप्त हो जाते हैं कि उनको सुध ही नहीं होता है। अब उनके यह पाप कर्म उनके भेजे मे स्टोर होते रहते हैं। और उनकी बुद्धि भी मलिन कार्य करने से मलिन हो जाती है।
इस प्रकार के पापी लोग जब मरते हैं तो उनके विचार मरने के बाद कई गुना शक्तिशाली हो जाते हैं और उसके बाद खुद उन्हीं को परेशान करने लग जाते हैं। यह किसी भगवान का नहीं नैचर का इंसाफ होता है। जैसे किसी पापी ने जीवन भर स्त्री को भोगने मे ही बिता दिया तो इस प्रकार का पापी मरता है तो फिर उसके मन मे स्त्री को भोगने के विचार बहुत अधिक ताकतवर हो जाते हैं।
और उसके पास शरीर होता नहीं है।ऐसी स्थिति के अंदर उसका कुछ नहीं होता है। उसे शांति नहीं मिल पाती है। इस प्रकार के पापी लोग प्रेत बनकर भटकते हैं। और कोई उनकी मदद भी नहीं कर पाता है। कई बार तो यह पापी स्त्री के शरीर मे घुस जाते हैं।
इस प्रकार से आप जोभी पापकर्म करते हैं।उसकी स्मृति आपके पास मौजूद होती हैं। यह स्मृति ही तो आपके लिए परेशानी का सबब बनती हैं। यदि आप उस पाप कर्म से मुक्त रहना चाहते हैं तो आपको सावधानी से कर्म करना होगी । इसमे कोई शक नहीं है।
हम एक इंसान हैं और सिर्फ इंसानों के अंदर ही यह क्षमता है कि वे जागरूक होकर कर्म कर सकते हैं। बाकि किसी भी जीव मे यह क्षमता नहीं है कि वह जागरूक होकर कर्म कर सके । लेकिन उसके बाद भी इंसान जागरूक होकर कर्म नहीं करते हैं।वे अधिकतर सोते हुए ही कर्म करते हैं। जिसका परिणाम अच्छा नहीं होता है। आप जो अपने चारो ओर सोते हुए इंसानों के रूप मे जानवर देख रहे हैं। तभी इस धरती पर पाप बढ़ता ही जा रहा है।
पाप कर्म किसी भी प्रकार का क्योंना हो असल मे वह आपके लिए नुकसानदायी ही होता है। उससे किसी का कोई फायदा नहीं होता है। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप पाप कर्म करने से बचें । हालांकि पूरी तरह से पाप कर्म करने से बचना कठिन है लेकिन उसके प्रति जो भावना आप अपने मन मे रखते हैं उसको सही रखेंगे तो पाप कर्म का दोष आपको नहीं लगेगा ।
दोस्तों पुण्य का नाम तो आपने बहुत बार सुना ही होगा ।पुण्य का मतलब होता है किसी की भलाई करना । यदि आप किसी की भलाई कर रहे हैं तो वह पुण्य है। लेकिन यदि आप अपने स्वार्थ के लिए किसी की भलाई कर रहे हैं तो वह पुण्य का कार्य नहीं माना जाता है।
एक समय ऐसा था कि लोग पुण्य के लिए तरसते थे ।हर कोई चाहता था कि वह कुछ भला करके पुण्य कमा लें । लेकिन अब इसका समय बीत चुका है। अब तो हर कोई पाप कमाने मे लगा हुआ है। क्योंकि कुछ लोगों को छोड़कर किसी को भी पुण्य का महत्व समझ नहीं आता है।
यदि आप पुण्य करते हैं तो उसके अनेक फायदे होते हैं।सबसे पहला फायदा तो यह होता है कि आप वैचारिक रूप से शुद्ध हो जाते हैं आपके अंदर आपके मन मे जो कचरा भरा हुआ है वह निकल जाता है। और उसके बाद आपके विचार क्लीन हो जाते हैं। जो आपको परम शांति की ओर लेकर जाते हैं।
इसके अलावा पुण्य करने का दूसरा फायदा यह भी होता है कि इससे किसी इंसान का भला हो जाता है। आजकल जो दिखावा करने का फैसन बन चुका है वह बहुत अधिक घातक सिद्ध हो रहा है। असल मे मुझे दिखावा करना कभी भी पसंद नहीं था।क्योंकि मेरा मानना यही है कि इंसान को अपनी औकात मे ही रहना चाहिए । उसी के अंदर फायदा होता है। यदि आप धरातल पर चलते हैं तो आपको कभी भी नीचे गिरने की जरूरत नहीं होगी ।और जो लोग अक्सर पुण्य करते हैं वे दिखावे पर यकीन नहीं करते हैं।जैसा कि बताया गया है। इस दुनिया मे दो ही तरह के लोग पुण्य करते हैं। एक बस अपने फायदे के लिए पुण्य करते हैं और दूसरे लोग पुण्य करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। दूसरे प्रकार के लोग सबसे श्रेष्ठ होते हैं।
क्योंकि यह पुण्य करके वे अधिक से अधिक फायदा पहुंचाना चाहते हैं। क्योंकि जानते हैं कि वे इस शरीर के अंदर बहुत ही कम समय के लिए हैं। और इतने समय मे उनके पास फालतू की चीजें करने के लिए समय नहीं है वे बस कुछ अच्छा करना चाहते हैं।
इसके लिए वे पुण्य करते हैं।लेकिन बताया तो यहां तक जाता है कि पुण्य भी बंधन है तो पाप भी बंधन है लेकिन जो खुदको पुण्य और पाप से अलग कर लेता है वह बंधन मुक्त है। लेकिन ऐसें ही आप खुद को पुण्य और पाप से अलग नहीं कर पाएंगे । इसके लिए आपको कुछ करना होगा ।
आपको मेहनत करनी होगी ।बस खुद को एक कर्ता के भाव से काम करना होगा तभी कुछ हो सकता है। लेकिन अक्सर लोगों की यह समस्या होती है कि वे इस उदेश्य से पुण्य करते हैं कि उनको इससे फायदा मिलेगा तो फायदा भी उनको मिलता ही है।
इसलिए पुण्य को भी सही तरीके से करना आपको आना चाहिए ।यदि आपको पुण्य भी सही तरीके से करना नहीं आता है तो यह भी बंधन ही पैदा करता है तो पुण्य को सही तरीके से करने के बारे मे अच्छी तरह से जानें।पुण्य और पाप कर्म तो हमेशा चलते ही रहते हैं और इंसानों के संस्कार के अनुसार सब कुछ होता रहता है।
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