पवित्र का विलोम शब्द क्या होगा Pavitra ka vilom shabd
पवित्र का विलोम शब्द के बारे मे Pavitra ka vilom shabd, पवित्र का उल्टा आइए जानते हैं पवित्र के विलोम शब्द के बारे मे ।
आइए जानते हैं तरल शब्द और इससे जुड़े अर्थ के बारे मे ।
शब्द (word) | विलोम (vilom) |
पवित्र | अपवित्र |
Pavitra | Apavitra |
पवित्र का विलोम शब्द और अर्थ (Holy)
पवित्र वर्ड तो आपने बहुत बार सुना है।पवित्र का मतलब होता है एक तरह से शुद्ध । या जो अच्छा है वही पवित्र होता है। जैसे की पूजा करने से पहले शरीर को धोना पड़ता है। ताकि उसके उपर मौजूद किसी भी प्रकार की गंदगी को साफ किया जा सके और शरीर पवित्र हो सके ।
इस प्रकार से पवित्र का मतलब होता है जिसकी सारी गंदगी को साफ कर दिया गया हो ।एक तो शरीर की गंदगी होती है जिसको आप धोकर साफ कर सकते हैं और दूसरी होती है मन की गंदगी । मन की पवित्रता का मतलब होता है मन के अंदर किसी भी प्रकार के खराब विचारों का ना होना ।यदि आपके मन के अंदर खराब विचार हैं तो इसका मतलब यह है कि आपका मन पवित्र नहीं है और आपको उसे साफ करने की जरूरत है। इसी प्रकार से यदि मन के अंदर मौजूद सभी प्रकार के विचारों को आपने निकाल दिया है तो अब आपका मन पूरी तरह से पवित्र है।
और आपको यह भी पता होना चाहिए कि पवित्रता अलग अलग संदर्भ मे अलग अलग तरह से परिभाषित होती है। जैसे कि सोने की पवित्रता या शुद्धता का मतलब होता है कि उसके अंदर किसी भी अन्य मात्रा को नहीं मिलाया गया है। सोने को जब खान से निकाला जाता है तो वह अशुद्ध होता है। सोने के अंदर कुछ मिलावट भी की जाती है ताकि वह उपयोग मे लाने योग्य हो सके ।
अपवित्र का अर्थ Meaning of impure
दोस्तो अपवित्र का मतलब होता है जो मानकों के अनुकूल नहीं है। या जो अशुद्ध हो उसे अपवित्र कहते हैं। यदि हम बिना नहाए पूजा करते हैं तो हम अपवित्र कहलाते हैं।अपवित्र चीज का उपयोग करना कठिन होता है। एक तरह से अपवित्र चीज को कई बार अशुभ भी माना जाता है। और कुछ चीजों को पूरी तरह से अपवित्र माना जाता है।घर को पवित्र करने के लिए कई बार घर मे भी पानी और जल व होम वैगरह करवाएं जाते हैं। इसके अलावा जिस घर के अंदर नगेटिव ताकतों का वास होता है वहां पर भी अपवित्र कार्य होते हैं।
मन की पवित्रता का कमाल
प्राचीन काल की बात है। एक गांव के अंदर 5 दोस्त रहा करते थे । वे पांचों काफी अच्छे दोस्त थे और शाम को एक साथ ही खेलते थे । और एक साथ ही स्कूल भी जाते थे। लेकिन उसके बाद भी उनकी विचारधारा के अंदर काफी अंतर था। इस अंतर का कारण उनकी परवरिस भी थी। और कुछ पूर्व जन्म के संस्कार भी थी।
एक दिन गुरू ने उन पांचों को बुलाया और कहा …….अब तुम्हारी शिक्षा पूरी हो चुकी है।अब मैं तुम पांचों को एक काम सौंपता हूं । यदि तुम उस काम को सही तरीके से पूरा कर पाऐ तो मैं समझूंगा कि तुमको अब शिक्षा की जरूरत नहीं है। लेकिन यदि नहीं कर पाए तो अभी तुमको सीखना बाकी है।
………तुम पांचो जाओ और रस्ते के अंदर जो भी पहली बार दिखे उसका सर काट कर मेरे चरणों के अंदर अर्पित करो ।अभी मुझ से कोई भी सवाल नहीं करेगा । मैं तुमको 7 दिन का समय देता हूं । 7 दिन बाद ही आप मुझे इसका उत्तर देंगे ।
गुरू की बात सुनकर पांचों शिष्य अलग अलग दिशा के अंदर चले गए । सबसे पहले सोहन ने देखा कि उसके सामने एक हिरण आ रहा है तो उसने अपने पास से एक खंजर निकाला और उसका सर काट कर अपने पास रख लिया ।
उसके बाद दूसरे शिष्य का नाम मोहन था। उसको मार्ग के अंदर सबसे पहले एक सांप दिखा । तो वह सांप का सर काटने के लिए दौड़ा लेकिन सांप बिल के अंदर घुस गया तो वह वहीं बैठकर बिल को खोदने लगा । कुछ दिन बाद उसने किसी तरह से उस सांप को तलास लिया और उसके सर को काट कर अपने पास रख लिया ।
अब अगला शिष्य रोहन था।उसे सबसे पहले अपनी ही मां मिल गई । उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या मां का सर काटना उचित है ? या फिर गुरू की आज्ञा का पालन करना ? तो उसने यह निर्णय लिया कि मां को छोड़ देते हैं । फिर उसे दूसरी बार जो इंसान मिला उसका सर काट कर अपने पास रख लिया ।
चौथे शिष्य का नाम गोहन था। वह काफी पवित्र इंसान था। वह जब रस्ते के अंदर गया तो उसे सबसे पहले एक घायल हिरण मिला । लेकिन वह उसका सर नहीं काट सकता था क्योंकि यह इंसानियत के खिलाफ था। यही उसके गुरू ने भी उसे सीखाया था। उसने उसका ईलाज किया और जाने दिया।
कुछ दूरी पर उसे एक मोर मिला । लेकिन गोहन उसका सर नहीं काट पाया । उसके बाद गोहन ने सर काटने का विचार त्याग दिया और वापस चला आया ।
उसके बाद एक अंतिम शिष्य जिसका नाम पोहन था। उसे सबसे पहले एक कुत्ता मिला कुत्ता का सर काटने की उसने जैसे ही कोशिश की कुत्ता ने उसको काट लिया और वह बुरी तरह से घायल हो गया। किसी का सर नहीं काट पाया ।
ठीक 7 वे दिन जब सभी दोस्त गुरू के सामने उपस्थिति हुए तो गुरू ने उनकी बातों को सुन अपना माथा पकड़ लिया । लेकिन शिष्य काफी खुश हो रहे थे । लेकिन अचानक से एक तरफ खड़े गोहन की तरफ गुरू की नजर पड़ी तो पूछा क्या तुम किसी का सर नहीं लाए
——— नहीं बिना किसी वजह के सिर्फ गुरू के आदेश या गुरू के हठ के लिए पाप करना महापाप है। आपने इसका प्रयोजन नहीं बताया तो यह पाप मैं कैसे कर सकता था ? यदि कोई उचित प्रयोजन बताएं तो मैं यह करता ।
शिष्य की बात सुनकर गृरू काफी खुश हुए और बोले ………..गोहन तुमने सही मायने मे शिक्षा को ग्रहण किया है। शिक्षा जो इंसान को इंसानियत ना सीखा सके तो बेकार है। तुम्हारे दोस्त अभी तक इंसानियत भी नहीं सीख पाए । इनको अभी और अधिक पढ़ने की जरूरत है। क्योंकि तभी यह एक अच्छे इंसान बन पाएंगे ।
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