पृथ्वी का पर्यायवाची शब्द या पृथ्वी का पर्यायवाची शब्द (prithvi ka paryayvachi shabd / prithvi ka samanarthi shabd) के बारे में इस लेख में जानेगे, इसके साथ ही पृथ्वी की उत्पत्ति जैसी महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में भी चर्चा करेगे तो लेख को देखे ,
शब्द (shabd) | पर्यायवाची शब्द / पर्यायवाची शब्द (paryayvachi shabd / samanarthi shabd) |
पृथ्वी è | भू, भूमि, अचला, अनन्ता, रसा, विश्वम्भरा, वसुन्धरा, गोत्रा, कु, धारयित्री, सहा, अचलकीला, गौ, द्विरा, इड़ा, ‘इड़िका, इला, इलिका, उदधिवस्त्रा, इरा, आदिमा, वरा, स्थिरा, बरा, धरित्री धरणी, क्षोणी, ज्या, काश्यपी, सर्वसहा, वसुमती, वसुधा, उर्वी, उर्वरा, देहिनी, पारा, विपुला, धरणीधरा, धारणी, महाकान्ता, जगद्वहा, खण्डनी, गन्धवती, यात्री, गिरि कर्णिका, आद्या, क्ष्मा, अवनि, रत्नवती, जगती, पृथु, श्यामा, क्रीड़ाकान्ता, खगवती, अदिति, वीजप्रसू, पृथवी, पहुमि, भुइँ, उरा, मेदिनी, मही, रत्नगर्भा, सागराम्बरा, अब्धिमेखला, भूतधात्री, सारँग, असुर, पृथिवी |
पृथ्वी in Hindi | Bhu, Bhumi, Achala, Ananta, Rasa, Vishwambhara, Vasundhara, Gotra, Dharayitri, Saha, Achalkila, Dwira, Ida, ‘Idika, Ila, Illika, Uddhivastra, Ira, Adima, Vara, Sthira, Bara, Dharitri Dharani, Ksoni, Jya, Kashyapi, Sarvasaha, Vasumati, Vasudha, Urvi, Urvara, Dehini, Para, Vipula, Dharnidhara, Dharani, Mahakanta, Jagdvaha, Khandani, Gandhavati, Traveler, Giri, Karnika, Aadya, Prithvi, Kshma, Avni, Ratnavati, Jagti, Prithu, Shyama, Kridakanta, Khagvati, Aditi , Prithvi, Pahumi, Bhuin, Ura, Medini, Mahi, Ratnagarbha, Sagarambara, Abdhimekhala, Bhutadhatri, Sarang, Asura, Prithvi. |
पृथ्वी in English | Earth, ground, land, globe, terra, marl, dirt, terrestrial globe. |
हिंदी भाषा कें अंदर पृथ्वी शब्द का अर्थ सौरमण्डल का एक ग्रह है से होता है जिस पर आज तरह तरह के जीव रहते है । जिनमें से मनुष्य भी एक है । यानि वह ग्रह जीस पर हम लोग रहते है वह पृथ्वी है । पृथ्वी और इसके जैसे बाकी ग्रहो की व्याख्या दूरी के आधार पर की जाती है और इस तरह से यह तीसरा ग्रह है । एक शब्द में कहे तो पृथ्वी शब्द के अर्थ है –
अगर संक्षिप्त में बात करे तो पृथ्वी शब्द के वही अर्थ होते है जो इसके पर्यायवाची है ।
सौरमण्डल के ग्रहो मे से पृथ्वी भी एक है और इसे सूर्य की दूरी के आधार पर देखा जाता है । और बताया जाता है की यह तीन नम्बर का ग्रह है । इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है की एक ऐसा ग्रह जीस पर कुल 29 प्रतिशत भाग ही भूमी का है और बाकी पानी का बना हुआ है । यानि पृथ्वी पर 71 प्रतिशत पानी रहता है।
पृथ्वी की भूमी के अलग अलग भाग होते है जो की अलग अलग तरीके से बने हुए है ।यानि पृथ्वी के उपर का भाग ज्यादा कठोर नही होता है इस पर मिट्टी भी बहुत महिन रहती है । इस भूमी में खेती की जाती है । इसके बाद में पृथ्वी के बिच का भाग होता है जिसमे पानी रहता है और इसमे धूल के कण तेरते रहते है ।
इसके बाद मे अंतिम जो परत होती है यह अधिक कठोर होती है । क्योकी इस परत में चटानो के छोटे छोटे टूकडे रहते है । इस तरह से पृथ्वी एक प्रकार का ग्रह होता है साथ ही इसमें मानव का जीवन भी रहता है । संक्षिप्त मे कहे तो पृथ्वी एक ऐसा स्थाना है जहां पर मानव अभी रह रहा है ।
पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ यह एक महत्वपूर्ण प्रशन है और इसका उत्तर देना बहुत ही कठिन होता है । मगर फिर भी विभिन्न तरह के सिद्धांतो के आधार पर पृथ्वी के जन्म के बारे मे बताया गया है । हालाकी अलग अलग सिद्धात कुछ अलग ही बात करते है । मगर इसमे कोमन यह है की पृथ्वी जलती थी और काफी समय बित जाने के बाद में ठंडी हुई थी ।
इस परिकल्पना के आधार पर बताया जाता है की पृथ्वी का जन्म सौरमंडल के बाद में हुआ है और पृथ्वी के निर्माण से पहले विभिन्नत प्रकार की गैसे मोजूद थी । जिनमे से ही एक हाइड्रोजन गैस थी और इस गैस के बादल बने रहते थे । इसके साथ ही धूल के कण भी इसमें काफी मात्रा मे मोजूद रहते थे ।
इसके बाद मे समय के साथ गुरुत्वाकर्षण बल का जन्म हुआ । मगर उस समय यह देखने को मिला था की गुरुत्वाकर्षण बल सभी स्थानो पर एक समान नही है यानि अलग अलग स्थानो पर गुरुत्वाकर्षण बल भी अलग अलग रूप मे मोजूद है ।
इस तरह से गुरुत्वाकर्षण बल का अलग अलग जगहो पर अलग अलग रूप मे होने के कारण से जो धूल और गैसे के बादल थे उनके साथ विभिन्न प्रकार की चटानो को आपस मे जुडना शुरू हुआ होगा । यानि गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण से आपस मे जुडे होगे । और इसी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण से बडी बडी चटाने अलग अलग स्थानो पर एकत्रित हो गई ।
इसके बाद में ये चटनो आपस मे गुरुत्वाकर्षण बल के कारण से नजदिक आई होगी । इस तरह से नजदिक आने के कारण से चटानो के मध्य बडी उर्जा का विकाश हुआ जिसके कारण से चटाने तपने लगी थी । और इसके साथ ही ये चटाने सूर्य के समान तेज गर्म हो गई होगी । अब इन चटानो को ठंडी होने में भी काफी समय लगा था ।
जब पृथ्वी पूरी तरह से ठंडी हुई थी तब भी चारो और धूल के कण उडते रहते थे और अंधेरा ही अंधेरा था । इसी के बिच मे आकाश गंगा मे विभिन्न तरह के ग्रहो का निर्माण हो गया होगा ।
इस तरह से सौर नेबुला परिकल्पना के अनुसार स्वयं ही पृथ्वी का निर्माण हुआ था ।
बताया जाता है की आज के 5 बिलियन वर्षों पहले पृथ्वी का नामुनिसान नही था और यहां तक की चारो और तरह तरह की गैसे थी और उडती हुई धूल थी। मगर तभी एक बडा धमका हुआ जिसके कारण से चारो तरफ अधिक मात्रा मे धुल उडने लगी थी । इसके साथ ही गुरुत्वाकर्षण शक्ति का जन्म हो गया जिसके कारण से जो धूल के कण थे वह विभिन्न प्रकार की गैसो के साथ क्रिया करती हुई चटाने बनती गई और हर एक चटान एक दूसरे से जुडने लगी थी ।
क्योकी जब कोई चिज आपस मे तेजी से आकर जुडती है या टकाराती है तो बडा धमाका होता है जिसके साथ ही वे चिज आपस में गर्म हो जाती है जिसकी तरह ही ये चटाने गर्म होने लगी थी । काफी समय बित जाने के बादमें ये चटाने बहुत अधिक मात्रा मे बड गई और अब पृथ्वी का जन्म शुरू हो गया था ।
मगर अभी पृथ्वी एक जलती हुई आग मे समान तप रही थी जिसे ठंडा होने में भी लगभग 4.61 बिलियन वर्ष से भी अधिक समय बित गया था । वेज्ञानिको की गणना के अनुसार माने तो 4.54 बिलियन वर्ष के पूर्व 1200 डिग्री सेलसियस के आसपास था । इस तरह से एक घटना के कारण से पृथ्वी का जन्म हुआ और इसे ठंडी होने में भी काफी अधिक समय लगा था ।
दोस्तो आपने यह सुना होगा की हमारी जो पृथ्वी है वह सूर्य के चारो और चक्कर लगाने का काम करती है । यह सत्य है और यह कार्य करने के लिए पृथ्वी दो तरह के चक्कर एक साथ लगाती है जिसमे से एक घूर्णन और दूसरा परिक्रमण होता है । इन दोनो चक्करो पर एक साथ कार्य करने के कारण से ही पृथ्वी का एक चक्कर सूर्य के चारो और होता है ।
दोस्तो यह वह चक्कर होता है जिस पर पृथ्वी अपने अक्ष पर ही घूमती रहती है । यानि अपने अक्ष पर घूमती हुई आगे बढती रहती है । इस तरह के चक्कर को घूर्णन चक्कर कहा जाता है ।
यह वह चक्कर होता है जिसमे पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई सूर्य के चारो और निश्चित दूरी पर एक चक्कर लगा लेती है । यानि इस चक्कर मे पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई आगे बढती है । इस तरह से घूर्णन चक्करो की सख्या अधिक होती है ।
इस तरह से चक्कर लागती हुई पृथ्वी दिन और रात के अंतर को बाट देती है साथ ही एक वर्ष के अंतर को भी इसी तरह से बाटा जाता है । जहां पर एक दिन और रात के समय की बात करे तो यह 24 घंटे का होता है यानि यह 24 घंटे वही होते है जो पृथ्वी का एक घूर्णन चक्कर लगाने मे समय लगता है ।
इसके साथ ही जब पृथ्वी सूर्य के चारो और चक्कर लगा लेती है तो इसमे कुल 365 दिनो का समय लग जाता है इसके अलावा 6 घंटे भी अधिक लगते है । हालाकी यह 6 घंटे वर्ष मे नही मिलाए जाते है और चार वर्ष मे कुल 24 घंटे मिला कर एक वर्ष का एक दिन अधिक कर दिया जाता है । इस तरह से यह सब पृथ्वी का सूर्य के चारो और चक्कर लगाने का ही कारण रहता है ।
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