दोस्तो आपको इस लेंख मे राक्षस का पर्यायवाची शब्द या राक्षस का समानाथी शब्द के बारे मे जानकारी मिलेगी साथ ही लेख मे राक्षस के बारे मे बहुत कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जाएगी तो लेख को आराम से देखे । {raksha ka paryayvachi shabd kya hai, raksha ka paryayvachi shabd kya hoga, raksha ka paryayvachi shabd hindi mein, raksha ka paryayvachi in hindi, raksha ka paryayvachi word}
शब्द {shabd} | पर्यायवाची शब्द या समानार्थी शब्द {paryayvachi shabd / samanarthi shabd} |
राक्षस | दानव, रात्रिचर, पिशाच, प्रेत, कौणप, निशिचर, निशाचर, पुण्यजन, शतुघन, क्रव्याद, मनुजाद, अस्त्रप, आशर, निकषात्मज, रजनीचर, अदेव, कर्बुर, यातु, रक्ष, क्षपाट, सन्घ्याबल, कीलाप, नृचश, पलाश पलाशी, भूत, नीलाम्बर, कलमषा, कटप्रू, अगिर, कीलालय, नरघिष्मण, असुर, औघड़ । |
raakshas | Raatrichar, daanav, pishaach, pret, Kaunap, Nishichar, Nishachar, punyjan, Shatughan, Kravyad, Manujad, Astrap, Ashar, Nikashatmaj, Rajnichar, Adev, Karbur, Yatu, Rakshasa, Kshapat, Sangyabal, Keelap, Nrichash, Plash, Plashi, bhoot, Nilambaru, Kalasha, Agir, Keelaya, Narghishman, Asura. |
Demon | Virtuous, scrathc, cannibal , ogre, rabbitfish, giant, monster, devil, beelzebub, his sable majesty, vampire, ghoul, boggard, bogle, eidolon, ghost , hellhound, sprite, Belial, Beelzebub, goblin, dickens, skipper, spook, apparition, Old Nick, old scratch, nocturnal, noctivagant, noctivagous, Oghad, sea-urchin, pooka, phantom, Manitou, kobold, been, waff, Evil, spirit. |
1. दानव (Danav)
2. रात्रिचर (Ratrichar)
3. पिशाच (Pishach)
4. प्रेत (Pret)
5. कौणप (Kaunap)
6. निशिचर (Nishichar)
7. निशाचर (Nishachar)
8. पुण्यजन (Punyajan)
9. शतुघन (Shatughan)
10. क्रव्याद (Kravyad)
11. मनुजाद (Manujad)
12. अस्त्रप (Astrap)
13. आशर (Ashar)
14. निकषात्मज (Nikshatmaj)
15. रजनीचर (Ranjichar)
16. अदेव (Adev)
17. कर्बुर (Karbur)
18. यातु (Yatu)
19. रक्ष (Raksh)
20. क्षपाट (Kshapata)
21. सन्घ्याबल (Sanghyabal)
22. कीलाप (Kilap)
23. नृचश (Nrishash)
24. पलाश (Palash)
25. पलाशी (Palashi)
26. भूत (Bhoot)
27. नीलाम्बर (Neelambar)
28. कलमषा (Kalmasha)
29. कटप्रू (Katpru)
30. अगिर (Agir)
31. कीलालय (Kilalay)
32. नरघिष्मण (Narghishman)
33. असुर (Asur)
34. औघड़ (Aughad)
राक्षस एक प्रजाति का नाम होता है जो प्राचीन समय मे थी इस जाति के लोग हमेशा ही हडप कर खाने की भावना रखते थे । ये राक्षस विधान और मैत्री में विश्वास नहीं रखता है । इनका धर्म रक्ष धर्म था जिन्हे यह बहुत मानते थे । साथ ही इन्हे बदसूरत और भयानक रूप मे जाना जाता है ।
राक्षस का अर्थ वही होते है जो इसके पर्यायवाची होते है मगर इन्हे सही तरह से समझाया जाता है तो समझ में आ जाते है जैसे
राक्षसो की उत्पत्ति के दो कारण माने जाते है जो यह बताते है की राक्षसो की उत्पत्ति इन्होने ही की है । मगर फिर भी दोनो कारणो मे सबसे पहले वाला कारण सबसे ज्यादा माना जाता है जिसका कारण यह है की उसने ही बाकी सभी सक्तियो का जन्म दिया है ।
प्राचीन काल मे कई प्रकार की जाती पाई जाती थी जो अपने आप में एक विचित्र जाती थी । उन जातियों को देखकर यह नही कहा जा कसता था की यह वर्तमान की मानव जाती से मिलती है । इस तरह की जातियों मे असुर, दानव और राक्षस जाती भी सामिल थी । जिनकी उत्पत्ति एक ही पिता की पत्नीयों से हुई थी । यह पिता स्वयं राक्षस जाती का न था बल्की यह तो एक ऋषि था जिसे आप कश्यप ऋषि के नाम से जानते है ।
कश्यप ऋषि की एक पत्नी का नाम सुरसा था । जो स्वयं राक्षस स्वभाव की थी जब इसके गर्भ से बच्चो को जन्म हुआ तो वे भी समय के साथ साथ अपने माता से भी बढ कर दुष्ट होने लगे । क्योकी उनमें इतनी ताक्त थी की वे आराम से किसी को भी मार सकते थे । मगर यह ताक्त उन्होने अच्छे के लिए उपयोग मे नही लाई बल्की बुरे काम के लिए लेकर आए थे ।
यह बात कश्यप ऋषि को अपने बेटो के बचपन मे ही दिखाई दे दिया था । मगर हो क्या सकता था जब बच्चे बडे हुए तो वे सभी बहुत ही क्रुर स्वभाव और देखने में भयानक दिखाई देने लगे । और जब वे प्राणियो को कष्ट देने लगे तो उसने राक्षस कहा जाने लगा और इन राक्षसो की मात का नाम सुरसा था जिसके कारण से सुरसा और कश्यप ऋषि से राक्षसो का जन्म माना जाने लगा ।
ब्रह्मपुराण जैसे कुछ पुराणो मे यह सुनने को भी मिलता है की इन राक्षसो की उत्पत्ति स्वयं ब्रह्मा ने की थी । कथा के अनुसार बताया जाता है की ब्रह्माजी को एक बार प्राणियो के जीवन की चिंता होने लगी । जिनकी रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने इधर उधर ध्यान किया तो इन प्राणियो की रक्षा करने वाला उन्हे कोई नजर नही आया था । तब ब्रह्मा जी ने अनेक जाती की उत्पत्ति कर दी । जिनमें से कुछ ने समुंद्र के जीवो के लिए रक्षा की और कुछ को अन्य किसी की रक्षा का कार्य दिया ।
उन्ही जाती में से किसी एक को प्राणियो की रक्षा का कार्य ब्रहमा जी ने सोपा था । जिनको आज राक्षस के नाम से जानते है। यही कारण है की रक्ष और यक्ष दो नाम की प्रजाती पहले सुनने को मिली थी । रक्ष वे ही राक्षस थे जो रक्षा करने का काम करते थे । इस कथा के अनुसार राक्षसो की उत्पत्ति स्वयं ब्रह्माजी ने की थी ।
जब राक्षसो की उत्पत्ति हुई तो वे इतने अधिक भायनक न थे बल्की इन्हे दो जाती में बाटा गया जो है रक्ष और यक्ष । इन दोनो ही जातियों को रक्षा का काम सोपा गया था । मगर रक्ष जाती प्राणियो की रक्षा करने का काम करती थी जिसके कारण से धिरे धिरे उन्होने लोगो की रक्षा न कर कर उन्हे कष्ट देने लगे । इस तरह से कष्ट देने के कारण से इन्हे राक्षसो के नाम से जाना जाने लगा ।
अब राक्षसो का जीवन बडा ही भयानक बन गया था । वे हर समय मारकाट की भावना रखने लगे थे । अब वे लोगो की रक्षा न करते थे । राक्षस स्वयं ही बडे भयानक जीवन जीते थे वे देखने मे इतने भयानक और विशाल थे की आज के समय मे उन्हे देखने पर भयभित होते देर नही लगती है । मगर आखिरकार उनका अंत हो गया और नई जाती का विकाश हुआ ।
रामायण में बताया गया है की रावण और कुबेर नाम के दो भाई थे । यह रावण वही है जसने राम से युद्ध किया था और कुबेर वही है जो धन के देवता है । इन दोनो भाईयो में से कुबेर को साफ साफ शब्दो में बताया जाता है की यक्ष जाती के राजा कुबेर को बनाया गया था । अब बचे राक्षस तो उनका भी राजा था जो बहुत बलशाली रावण था ।
इस बारे में यह भी बातया जाता है की जब युद्ध हुआ यानि राम और रावण के बिच में युद्ध हुआ तो रावण ने अपने राक्षसो को बुलकार युद्ध किया था । क्योकी रावण उनका राजा था जिसके कारण से उनकी बात वे जरूर मानकर आते थे । इस बात से समझ में आ जाता है की रावण राक्षसो का एक बलशाली राजा था ।
राक्षस प्रजाती प्राणियो को कष्ट पहुंचाने का काम करती थी इसके अलावा वे अपने आप को बलशाली समझ कर अनेक युद्ध में भाग भी लेती थी । इन युद्ध के कारण से ही अनेक राक्षसो का वध हो गया था ।
कुबरे और राक्षस दोनो भाई थे मगर दोनो में बहुत ही अधिक भिन्नता थी । क्योकी कुबरे यक्षो का राजा था जो की कोई राक्षस न थे बल्की वे एक बलशाली प्रजाती थी। इनके पास शक्तियां या माया न थी । बल्की इसके विपरीत रावण और उसकी सेना थी । क्योकी रावण राक्षसो का राजा था जिसके पास स्वयं बहुत अधिक शक्ति मोजुद थी ।
अपनी शक्तियो के कारण से रावण ने देवताओ पर भी हमला किया और देवताओ को हिला कर रख दिया । जब यह सब कुबेर ने देखा तो उन्होने रावण को समझाने के लिए अपने एकदुत को भेजना चाहा और सही समय को देख कर कुबेर ने अपने दूत को समझा दिया की तुम्हे रावण को यह सब करने से मना करने का संदेश देना है ।
दूत को जैसा कहा गया वैसा का वैसा ही उसने रावण को कहा जीसे सुन कर रावण ने दूत से कहा वह मेरा कुछ नही बिगाड सकता और वह मुझे समझाने के लिए अपना दूत भेज रहा है । यह सून कर दूत को वहा से चला जाना चाहिए था मगर वह न जाकर रावण को फिर समझाने लगा । जिस पर रावण क्रोधित हो गया और दूत को पकड कर नष्ट करने का आदेश अपने राक्षसो को दे दिया ।
जिसके कारण से राक्षसो ने रावण की अज्ञा का पालन करते हुए उस दुत को नष्ट कर दिया । इसी बात को लेकर रावण और कुबेर में युद्ध हुआ । क्योकी दोनो बलशाली थी मगर रावण और राक्षस दोनो ही माया के खेल खलते थे जिसके कारण से उन्होने यक्षो को नष्ट कर दिया । यक्ष बलशाली थे जिसके कारण से उन्होने भी कई राक्षसो का वध किया । इस युद्ध में यक्षो का खात्मा हुआ तो राक्षसो का भी अंत हुआ था ।
रामायण मे श्री राम जी देखने में एक साधारण से लगते थे मगर उन्हे युद्ध कला बडी अच्छी तरह से आती थी । जिसके कारण से जब रावण ने माता सीता का हरण किया और राम माता को छुटवाने के लिए गए तो एक भयकर युद्ध हुआ था जिसमें बहुत संख्या में राक्षसो का वध हुआ था ।
युद्ध में श्री हनुमानजी का भी वर्णन मिलता है जिन्होने अनेक राक्षसो का वध अपनी गधा से किया था । इसके अलावा श्री लक्ष्मण भी कम नही थे उन्होने अपने तीर कमान से अनेक राक्षसो का वध कर दिया । इस तरह से युद्ध कें अत तक राक्षसो की लगभग प्रजाती नष्ट हो गई थी यहां तक की राक्षसो का राजा यानि रावण का अंत भी श्री राम ने कर दिया था ।
नही, राक्षस जो होते है वे मानव के लिए कभी भी उपयोगी न तो हुए है और न ही होगे ।
क्योकी आपने जैसा की लेख में पढा था की राक्षसो ने ही रामायण में युद्ध लड़ा था जो की रावण की और थे तो आपको उससे समझ जाना चाहिए की जो राक्षस होते है वे मारकाट की भावनाओ को अपने अंदर रखते है ।
दोस्तो आपको बता दे की पहले के समय में राक्षस को लोगो पर कष्ट करने वाले, और देवो को परेशान करने वाले के रूप में जाना जाता है
और आज भी इस धरती पर जो लोगो को बेवजह परेशान करता है उसे राक्षस कहा जाता है । तो आप ही समझे की क्या यह जरूरी है तो अंदर से उत्तर आएगा नही ।
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