स्वार्थ का विलोम शब्द Swarth ka vilom shabd kya hai ?
स्वार्थ का विलोम शब्द या स्वार्थ का विलोम , स्वार्थ का उल्टा क्या होता है ? Swarth ka vilom shabd
शब्द | विलोम शब्द |
स्वार्थ | परमार्थ |
Swarth | Parmarth |
स्वार्थ का विलोम शब्द और अर्थ
दोस्तों स्वार्थ का मतलब होता है जो इंसान खुद के लिए काम करता है। वह स्वार्थी होता है खास कर जब वह दूसरों के हक को नष्ट करता है। स्वार्थ का विलोम निस्वार्थ होता है। वैसे आज की दुनिया मे हम सभी लोग बस अपने ही फायदे की बात करते हैं। हालांकि अपने फायदे की बात करना बुरा नहीं है लेकिन यदि आप अपने फायदे के लिए दूसरों का नुकसान करते हैं तो वह बुरा है। जैसे कि आप एक दुकानदार हैं और कस्टमर से हद से अधिक कीमत वसूल कर रहे हैं तो फिर यह एक बुरी बात होगी ।
और आप स्वार्थी होंगे।वैसे लोगों के अंदर स्वार्थ तो इस कद्र बढ़ता ही जा रहा है। और यदि इसी प्रकार से स्वार्थ बढ़ता रहा तो यह स्वार्थ भी मानव सभ्यता को डूबो देगा । वैसे भी किसी भी चीज की अति बहुत ही खतरनाक होती है।
खैर बहुत से लोग यह मानते हैं कि स्वार्थ इंसान खुद जनरेट करता है लेकिन असल मे यह आंशिक सत्य है। स्वार्थ इंसान खुद जनरेट नहीं करता है अपने आप ही हो जाता है। जब प्रकृति पर संसाधनों की तेजी से कमी होती जाति है तो उसके बाद इंसान धीरे धीरे स्वार्थी होता चला जाता है।
ऐसी बात नहीं है कि स्वार्थी लोग प्राचीन काल के अंदर नहीं होते थे ।प्राचीन काल मे भी लोग काफी स्वार्थी होते थे लेकिन आज के जितने स्वार्थी नहीं होते थे । इसका कारण यह था कि वे अधिक मात्रा मे नहीं थे और दूर दूर तक बसे थे । उनके पास सारे संसाधन भी मौजूद थे तो आज के जैसे स्वार्थी नहीं हो सकते थे ।
दोस्तों ऐसा नहीं है कि स्वार्थ मात्र बुरा ही होता है। असल मे स्वार्थ कई बार काफी फायदेमंद भी साबित होता है। जिस इंसान की आपको जरूरत सबसे अधिक होती है तो उसके साथ कोई समस्या आने पर आप उसकी अच्छी देखभाल करते हैं जिससे वह इंसान बहुत ही जल्दी ठीक हो जाता है। यहां पर स्वार्थ काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।
जहां तक हमारा मानना है स्वार्थ एक सीमा तक फायदेमंद हो सकता है। लेकिन यदि आप अधिक स्वार्थी हो जाते हैं तो फिर यह समस्या पैदा करने लग जाता है। असल मे स्वार्थी लोगों की यह आदत होती है कि वे किसी भी तरह के लफड़े मे नहीं फंसना चाहते हैं। इस वजह से यदि किसी की उनको जरूरत नहीं है तो उसे ऐसे ही छोड़कर चले जाते हैं। इसलिए कभी भी इंसान को हद से ज्यादा स्वार्थी नहीं होना चाहिए । स्वार्थीपन का त्याग करके अपने जीवन को कल्याण के अंदर लगाना चाहिए । यही सबसे बेहतर तरीका है जीवन को जीने का ।
यदि आप खुद स्वार्थी हैं तो फिर दूसरों से आप अच्छाई की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। लेकिन समस्या यह है कि जो इंसान स्वार्थी होते हैं वे दूसरों से भी अच्छाई की उम्मीद करते हैं। वे चाहते हैं कि दूसरे उनके साथ अच्छा बर्ताव करें । तो दोस्तों हम सभी को अपने स्वार्थपन का त्याग करना होगा और उसके अलावा हमारे अंदर अच्छाइयों को भरना होगा तभी कुछ संभव हो सकता है अच्छा होना ।
निस्वार्थ का अर्थ और मतलब
दोस्तों निस्वार्थ का नाम तो आपने सुना ही होगा । निस्वार्थ का मतलब होता है। बिना किसी अपने फायदे के लिए किया गया काम निस्वार्थ कहलाता है।निस्वार्थ भावना से किये जाने वाले काम बहुत ही कम होते हैं। आपको बतादें कि निस्वार्थ भावना से हर कोई काम कर ही नहीं सकता है। यह सब वही अपना सकता है जोकि ज्ञानी और जीवन के रहस्य को जानता है। वह जानता है कि भला भी एक बंधन है और बुरा भी एक बंधन है।
आपने देखा होगा कि आजकल पश्चिम संस्कृति ने सबको भौतिकवादी बना दिया है। और जबकि सभी इंसान प्रपंच मे जीते हैं। कोई सत्य को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं।और जब सत्य समाने आ जाता है तो फिर उसे सामना करने की हिम्मत नहीं होती है। जो बहुत ही बेकार स्थिति है।
अक्सर आप लोगों यह चिल्लाते हुए सुना होगा कि निस्वार्थ भावना से काम करों तो काफी फायदा होगा । अब यदि आप निस्वार्थ भावना से काम करते हैं तो क्या फायदा होगा यह जानना बेहद ही जरूरी होगा ।
अक्सर दोस्तों हम लोगों ने एक आदत बनाली है कि हम जो कुछ भी करते हैं अच्छा करते हैं। हम चाहते हैं कि उसके बदले मे हमे अच्छा मिलें ।
इस प्रकार से हम एक बंधन बना लेते हैं। बंधन का मतलब यही है कि हम अच्छे की उम्मीद करते हैं लेकिन जो लोग निस्वार्थ भावना से काम करते हैं वे ऐसी उम्मीद नहीं करते हैं। उनका मानना होता है कि जो कुछ भी करो लेकिन उम्मीद कुछ मत रखों क्योंकि कर्म प्रकृति करवाती है । यदि आप अच्छे के फल की उम्मीद करोगे तो आप एक बंधन क्रियट करोगे और यही बंधन आपके लिए दूसरे जन्म का कारण बनेगा ।
जिस इंसान ने आपके लिए कुछ भी नहीं किया यदि आप उसके लिए कुछ करते हैं तोफिर यह सबसे बड़ी निस्वार्थ भावना का उदाहरण होगा । अक्सर हम यह देखते हैं कि अमुक इंसान ने हमारे लिए यह किया तो हम उसके लिए यह कर देते हैं। जिससे बदला उतर जाएगा ।
लेकिन अक्सर जो लोग निस्वार्थ भावना से काम करत हैं।वे नेकी कर और कुए मे डाल वाले सिद्धांत पर काम करते हैं। यदि वे एक बार किसी का भला कर देते हैं तो उसके बारे मे अधिक नहीं सोचते हैं और फिर यही मानते हैं कि उन्होंने किसी का भला किया ही नहीं है।
हालांकि निस्वार्थ भावना से काम करना इतना आसान नहीं है।सब कुछ जो हमारे मन मे विचारधारा होती है उसको बदलना होता है। यह सब करना इतना आसान कार्य नहीं होता है। इसमे आपको काफी समय लग सकता है।
निस्वार्थ भावना के लिए आपको अपनी पूरी विचारधारा को ही बदलना पड़ता है। और इसको बदलने के लिए काफी समय लगता है। ऐसा नहीं होता है कि आपने सोचा और निस्वार्थ भावना के साथ काम होने लगा । आपको खुद को बदलने मे समय लगाना होता है।
एक तरह से यह खुद की लड़ाई होती है जोकि खुद के लिए ही होती है। आपको खुद के लिए लड़ना होगा।लेकिन जो पहले से निस्वार्थ स्थिति तक पहुंच चुके हैं। उनके लिए कोई भी समस्या नहीं है। वे सब कुछ आराम से कर सकते हैं।