दोस्तो आपको इस लेख के अंदर तारा का पर्यायवाची शब्द tara ka paryayvachi shabd या तारा का समानार्थी शब्द tara ka samanarthi shabd के बारे मे जानकारी मिलेगी । साथ ही लेख कें अंदर तारा के बारे मे बहुत कुछ बताया गया है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है ।
शब्द [shabd] | पर्यायवाची शब्द और समानार्थी शब्द [paryayvachi shabd / samanarthi shabd] |
तारा | सितारा, नक्षत्र, तारक, ग्रह, तारीक, भाग्य, किस्मत, उडु, स्टार, दीप्ति, नक्षत्रीय, तारकीय , नाक्षत्रिकं, उल्का, उद्धारक, चमक, प्रकाश । |
tara | sitara nakshatr, Tarak, grah, tarik, bhagy, kismet, deepti, nakshtriy, ulka, uddharak, chamak, prakash. |
star | Fate, fortune, planet, spangle, star, asterism, constellation, astral, savior, protector, deliverer, saviour, fate, luck, fortune, destiny, astral, meteor, shooting star, savior. |
रात्री के समय आकाश मे चमकते हुए छोटे छोटे बिंदू से जो टिमटिमाते रहते है तारा कहलाते है । यह एक खगोलीय पिंड होते है । जो स्वयं प्रकाशित होते है । साथ ही इनमे उष्ण वाति की द्रव्यमात्रा भी मोजुद होती है ।
तारा भ्रमाण्ड मे चमकने वाला एक प्रकार का खगोलीय पिंड है । जिसका जन्म धूल के कण और एक गैस से मिलने से होता है । यह गैस अंतर्वर्ती गैस होती है । आकाश मे गैस के बादल बने होते है जो सामन्यत उदासनी अस्वस्था मे पाए जाते है। और ये गैस के बादल गतिशील भी होते है । मगर इन गैस के बादल को गतिशील करने के लिए ऐसे तारे इसके समिप आते है जो स्वयं बहुत अधिक उष्ण तारा हो । जिसके कारण से उष्ण तारा इन गैस के बादलो पर क्रिया कर कर इसमे नाभिक पैदा कर देता है ।
अब क्योकी अभी भी इस गैस के बादल और तारे के पास बहुत अधिक मात्रा मे गैस व धूल मोजूद होती है । जो की नाभिक की और खिचती जाती है । जिसके कारण से गैस व धूल नाभिक मे जमा हो जाती है । इस तरह से बार बार क्रिया होती रहती है जिसके कारण से नाभिक का आकार बढ जाता है और आकर बढ जाने के कारण से इसकी ऊर्जा भी अधिक होती जाती है ।
साथ ही इस समय एक अभिक्रिया शुरू होती है जिसे नाभिकीय अभिक्रिया के नाम से जाना जाता है । नाभिकीय अभिक्रिया के कारण से इस नाभिक से प्रकाश का उत्सर्जन होना शुरू हो जाता है जो समय के साथ बढता जाता है क्योकी नाभिक मे गैस और धूल के कण भी बढते जाते है जिससे अभिक्रिया भी बढती जाती है । इस तरह से फिर प्रकाश ऊर्जा भी बढ जाती है । अब जिस आकार से प्रकाश ऊर्जा निकलती है उसे ही तारा कहा जाता है ।
यानि तारे का जन्म इसी तरह हुआ । अब जो तारा जितना विशाल होगा और जिसमे जितना अधिक ताप होगा वह तारा उतना ही अधिक प्रकाश का उत्सर्जन करता रहेगा । यानि तारे का प्रकाश उत्सर्जन करना उसके आकार और उसके ताप पर निर्भकर करता है । मगर समय के साथ जब ये तारे ठंडे होने लग जाते है तो उनका आकार भी छोटा हो जाता है जिसके कारण से इसमे ताप की कमी आ जाती है । और यह स्वयंप्रकाश बहुत कम फैलाते है ।
तारो का जीवन बडा ही विचित्र है क्योकी वे पृथ्वी से इतनी दूरी पर होने के बाद भी पृथ्वी पर रोशनी पहुचाते ही रहते है । हालाकी इनकी रोशनी इतनी अधिक शक्तिशाली नही होती है जिसके कारण से ये हमे दिन में दिखाई नही देते है । मगर इसके विपरित सूर्य जो तारो के मुकाबले पृथ्वी के सबसे निकट पाया जाता है । जिसके कारण से इसकी रोशनी पृथ्वी पर आसानी से पहुंच जाती है । मगर इसकी रोशनी तारो के मुकाबले बहुत कम होती है ।
अब तारो की रोशनी इतनी दूरी तय कर कर पृथ्वी पर आती है तो जाहिर होगा की भ्रमाण्ड मे अन्य मोजुद कणो से उसकी रोशनी टकरा कर नष्ट हुई होगी । जिससे तारो की रोशनी बहुत ही कम बचती है । इसके अलावा भ्रमाण्ड मे चलने वाली सौर हवाए और इसके अलावा बहुत सी गैसे व बहुत प्रकार की क्रिया होती रहती है । जिसे पार कर कर तारो की रोशनी हमारे पास पहुंचती है ।
अब जब पृथ्वी मे तारो की रोशनी पहुंच जाती है तो वह फिर वायुमंडल की परतो से गुजरती है । जिनका तापमान भी अलग होता है । साथ ही वायुमंडल मे अनेक धुल के कण भी पाए जाते है । जिनसे होकर तारो की रोशनी को पृथ्वी पर हमारे तक पहुचना होता है । मगर इस बिच मे तारो का प्रकाश वायुमंडल की परत और धुल के कणो के कारण से विवर्तन हो जाता है । यही कारण है की तारे टिमटिमाते हुए नजर आते है ।
असल मे तारे टिमटिमाते नही है यह इस बात से समझ मे आ जाता है । जिसके कारण से जहां पर तारा होता है वह स्थिती हमे नजर नही आती बल्की जिस स्थान पर तारा होता ही नही है वह स्थिती हमे नजर आती है और हम समझते है की तारा वही है ।
दोस्तो रात्री के समय जब पूरा आकाश तारो से जगमगाता रहता है तो आसमान बडा ही अच्छा लगता है । इसी के बिच कभी कभी ऐसा देखने को मिलता है की तारा चलता हुआ आगे बढता रहता है और कुछ दूर तय करने के बाद मे वह दिखाई नही देता है । अब इस घटना को तारा टूटना कहा जाता है । मगर ऐसा नही है क्योकी कोई भी तारा टूटता नही है ।
क्योकी तारा हमारी पृथ्वी से काफी दूरी पर रहता है और उससे पहले सूर्य हमारी पृथ्वी के नजदिक होता है । क्योकी आपको पता है की तारा सूर्य से भी बडा होता है तो उसका टूटना कितनी बडी घातक हो सकता है यह तो कोई सोच भी नही सकता है । क्योकी तारा जो होता है वह सूर्य से भी अधिक विशाल और ऊर्जा से भरपूर होता है । जब एक सूर्य का ताप ही पृथ्वी पर अधिक हो रहा है तो तारो का ताप कितना होगा वह सहन कैसे होता है । इस कारण से कहा जा सकता है तारा टूटता नही है ।
अब जो तारे के जैसी रोशनी दिखाई देती है तो वह कोई तारा नही होता बल्की वह उल्कापिंड या गैस के गोले होते है । अब जब उल्कापिंड भ्रमण करते हुए पृथ्वी की और आते है तो वे हमे गति करते हुए दिखाई देते है । मगर पृथ्वी का वायुमंडल को वे गैस के गोल या उल्कापिंड पार नही कर सकते है । और जब उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल से टकराते है तो जल कर नष्ट हो जाते है ।
जिसके कारण से हमे वे दिखाई देना बंद हो जाते है । इस तरह की घटना अक्सर आकाश मे होती रहती है जो हमे नंगी आंखो से साफ दिखाई नही देती है और हमे लगता है की तारा टूटा है । मगर फिर भी जब यह घटना होती है तो कुछ लोग इसका शुभ बताते है तो कुछ अशुभ बताते है ।
इसी शुभ अवधारणा के कारण से जब भी किसी को तारा टूटता हुआ दिखाई देता है तो वह अपनी आंख मिच कर अपनी इच्छा पूरी करने की मांग करता है । इसके साथ ही अशुभ मे जब मनुष्य टूटता तारा दिखता है उस पर संकट आता है ऐसा माना जाता है । मगर यह केवल अवधारणा है इसका वेज्ञानिक कोई महत्व नही है ।
तारा क्या है इस बारे में और इसके पर्यायवाची शब्दो के बारे में तो आपको इस लेख में हमने अच्छी तरह से समझाने की कोशिश की है ।
दोस्तो वैसे आपको बता दे की तारा जो होता है उसके बारे में आप बहुत ही अच्छी तरह से जानते है । क्योकी आप जैसे ही रात होती है तो इनको देखने लग जाते है तो यह तो जरूर पता है की तारा क्या है ।
वैसे यह जो तारा होता है उससे जुड़ी कुछ ऐसी बाते होती है जो की आपको शायद ही पता होगी और इनके बारे में भी हमने आपको अच्छी जानकारी दी है ।
अगर अब तारा के पर्यायवाची शब्दो के बारे में कुछ पूछना है तो कमेंट कर देना ।
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