उपासना का पर्यायवाची शब्द और उपासना का समानार्थी शब्द (upasana ka paryayvachi shabd / upasana ka samanarthi shabd) के बारे में इस लेंख में हम जानेगे । साथ ही जानेगे की उपासना होती क्या है इसके अलावा यहां पर उपासना के बारे मे बहुत कुछ है तो लेख को आराम से देखे ।
उपासना | उपासना का पर्यायवाची शब्द और उपासना का समानार्थी शब्द (upasana ka paryayvachi shabd / upasana ka samanarthi shabd) |
उपासना | आराधना, अर्चना, सेवा, चिंतन, भक्ति, परिचर्या, पूजा–पाठ, ध्यान भक्ति, पूजन, ध्यान पूजन, आरती, ध्यान करना, ध्यान मग्न, इबादत, विनती, वंदना, अधिग्रहण, अभिवादन, प्रशंसा में खो जाना, श्रद्धा, श्रद्धांजलि, अभ्यास सेवा, भक्ति के साथ दोहराना, |
उपासना in Hindi | aradhana, archana, seva, chintan, bhakti, paricharya, pooja-paath, dhyan bhakti, poojan, dhyan poojan, aarti, dhyan karana, dhyan magan, ibadat, vinati, vandana, adhigrahan, abhivaadan, prashansa mein kho jaana, shraddha, shraddhaanjali, abhyaas seva, bhakti ke saath doharaana. |
उपासना in English | worship, worship, service, contemplation, devotion, care, Worship, meditation devotion, worship, meditation worship, aarti, meditating, meditating, prayer, prayer, Acquisition, Greeting, Lost in praise, Reverence, Tribute, Practice service, Repeat with devotion. |
उपासना शब्द का अर्थ होता है की अपने इष्ट देवता को याद करने के लिए उनके समीप बैठना और उनकी भग्ति मे खो जाना या इसे इस तरह से भी कह सकते है की परमात्मा की प्राप्ती के लिए उनके ध्यान में मगन हो जाना । इसे ही उपासाना कहा जाता है ।
शिव पुराण के अनुसार उपासना उसे कहते है जिसके कारण से मनुष्य शिव को पाने के लिए अपनी बुद्धि को तेज बना कर और अपने अंतर मन को शुन्य कर कर उनके समीप पहुंचना उपासना कहा जाता है ।
उपासना एक ऐसी क्रिया होती है जिसके कारण से मनुष्य अपने आराध्य देव को याद करता रहे और नियमित समय पर उनके पास रह कर उनके ध्यान मे मगन होता है । इसे ही उपासना कहा जाता है ।
अगर कोई व्यक्ति अपने भगवान की आराधना करता है तो उसे उपासना कहा जाता है इसके अर्थ को कुछ इस तरह से भी समझा जा सकता है –
उपासना का अर्थ अपने इस्टतम देव को याद करने के लिए उनके ध्यान मे मग्न होना होता है । उपासना का जन्म बहुत ही पहले से माना जाता है और बताया जाता है की जब शिव और ब्रहमा व विष्णु ने सृष्टि की रचना की तो जीव जन्तुओ की संख्या काफी अधिक हो गई थी । जिसके कारण से जीवो को भी एक दुसरे से हानी होने लगी थी और सभी को अपने कष्टो को दूर करने का कोई उपाय नही दिख रहा था ।
अंत मे जीव जन्तु और मनुष्यो ने अपने भगवान को याद किया जिसने उन्हे बनाया था । यानि ब्रहमा को याद करते हुए दुखो को कम करने की बात कही । जिसके कारण से ब्रहमा भग्ति को देख कर प्रशन्न हो गए और अपने भग्तो के दुख कम कर दिए थे । यह देख कर ही अन्य मनुष्यो ने भी उपासना की । मगर अब कुछ शिव की उपासना करते तो कुछ विष्णु की इस तरह से उपासना का जन्म हो गया ।
हिंदु धर्म की बात करे तो बताया जाता है की उपासना एक ऐसा मार्ग जीससे होकर मोक्ष को पाया जा सकता है । यानि प्रमापत्मा प्राप्ती के लिए उपासना की जाती है । इसी तरह से शिव पुराण मे बताया गया है की जो भी शिव की पूजा करेगा यानि जो भी शिव की उपासना करेगा मरने के बाद मे वह शिव के पास चला जाएगा ।
ऐसा ही गीता मे श्री कृष्ण का कहा गया है की अंत समय तक जो मेरी आराधना या उपासना करेगा वह अंत मे मेरे पास आ जाएगा । यानि उसे मोक्ष प्राप्त हो जाएगा । मोक्ष का अर्थ मरने और जीवन जीने से दूर का होता है । क्योकी मनुष्य अपने जीवन के दुखो के कारण से थक जाता है और इस जीवन से हमेशा के लिए पिछा छुटाने का प्रयत्न करता है ।
इसी प्रयत्न को सफल बनाने के लिए ही किसी भी भगवान की उपासना की जाती है । क्योकी भगवान की उपासना करकर यह मार्ग हासील करना आसान होता है । इसमे भगवान पर पूरा भरोषा किया जाता है । क्योकी शिव एक भगवान है और उनकी पूजा पूरा का पूरा भारत करता आ रहा है । और कुछ तो इस तरह के लोग भी है जो दिन रात उठते बैठते शिव शिव जपते रहते है ।
इन दोनो की पूजा भग्ति को ही उपासना कहा जाता है । मनुष्य अपने जीवन मे कभी न कभी किसी भगवान की पूजा करता ही है। मगर जीनको प्रामात्मा प्राप्ती करनी है वे उपासान बहुत कठोर करते है और जीनको प्रामात्मा प्राप्ती से लेना देना नही है बल्की वे अपने इस जीवन मे उपासना करते है तो उनके दुख कम होते है । इस तरह का भगवान कृष्ण ने गीता मे कहा है ।
उपासना मे एक आधार होता है जिसकी उपासना की जाती है । क्योकी हिंदू धर्म मे अनेक प्रकार के देव होते है जीनकी अलग अलग पुजा होती है । जीसके कारण से उनकी पूजा करने का तरीका भी अलग अलग होता है । अगर शिव की बात करे तो उनकी उपासना करने के लिए पूजा अरचना की जरूरत नही होती बल्की उनका नाम जप लिया जाए वह काफी होता है ।
मगर कठोर तप तो वही होता है जिसमे शिव का नाम दिन रात जपा जाए । तो इस तरह से दिन रात उठते बैठते जब किसी की पूजा होती है तो इसे उपासना करना तो कहा जाता है मगर यह कठोर उपासना होती है । जिसे हर कोई नही कर पाता था ।
उदाहरण के लिए माता सती ने कई बार भगवान शिव की उपासना की थी । और फिर प्रमज्ञानी बन गई । पार्वती ने भी शिव की उपासना की । इसके अलावा नारायण की उपासना का उदहाण नारद जी है । जो हर समय नारायण नारायण का जाप जपते है । इस तरह से नाम का जाप करने को भी उपासना कहा जाता है ।
मगर पृथ्वी पर ऐसा कम होता है क्योकी दिन के समय अपने प्रिय भगवान के कुछ भजन कर लिए जाए और रात के समय में भी कुछ भजन कर लिए जाए तो यह उपासना हो जाती है । क्योकी उपासना का अर्थ ही पूजन से होता है यानि जो पूजता हो भजन करता हो ।
इस तरह से उपासना करने का सही तरीका यही होता है की अपने भगवान के आगे बैठ कर उनके ध्यान मे मगन हो जाए । हालाकी पृथ्वी जो पूजा होती है वह भी एक उपासना है । और यह तरीका भी सही होता है । क्योकी जैसे मेने उपर बताया की श्री कृष्ण ने कहा की अंत समय तक मेरा जो ध्यान करेगा वह मुझ मे समा जाएगा ।
तो इसका अर्थ होता है की जब मनुष्य मरने की हालत मे होता है अगर उस समय भी कोई कृष्ण या किसी भगवान का नाम जपता रहता है यानि उपासना करता है तो उसे मोक्ष प्राप्ती से कोई नही रोक सकता है ।
मनुष्य को अपने दूखो को कम करने के लिए महान ऋषि मुनियो के द्वारा उपनाए गए तरीको को अपनाना और अपने दूखो को कम करने के लिए व्रत किया जाता है । क्योकी ऋषि मुनी भी इन व्रतो को किया करते थे । और व्रत की परिभाषा होती है की मनुष्य जब अपने दिन भर के भोजन को त्याग कर प्रभु भग्ति मे लिन रहे तो इसे व्रत कहा जाता है ।
क्याकी व्रत मे दिनभर का भोजन त्याग दिया जाता है और प्रभु भग्ति मे लीन रहना होता है क्योकी प्रभु का ध्यान करने को उपासना कहा जाता है तो व्रत के रूप मे उपासाना हो रही है ।
व्रत के साथ साथ उपासना एक अच्छा मार्ग होता है क्योकी इसके जरीय अपने दूखो को तो कम किया जाता है साथ ही प्रभु के निकट भी जाया जा सकता है । हिंदू धर्म के देवो की पूजा करने के लिए यानि व्रत करने के लिए कुल 7 वार बनाए गए है जीस वार का दिन होता है उस दिन उसी की पूजा होती है और उसका ही व्रत किया जाता है ।
इसके अलावा भगवान की जनमाष्टमी के दिन केवल उसी भगवान की पूजा होती है और उनका ही व्रत किया जाता है । जीस तरह से शिवरात्री के दिन शिव का व्रत होता है और उनके ध्याम मे मग्न होकर उपासना हो जाती है । यानि शिवरात्री के दिन शिव की पूजा कर कर उपासना की जाती है ।
इसी तरह से कृष्ण जनमाष्टमी के दिन केवल कृष्ण की पूजा होती है और उनकी उपासना होती है । इसी तरह से अन्य देवी देवताओ की पूजा आरचना की जाती है । जीसे ही उपासना करना कहा जाता है । व्रत के रूप मे उपासना करने का कार्य आज से नही हो रहा बल्की यह तो बाबा भोलेनाथ के समय से हो रहा है और ऋषी भी इस क्रिया को अपनाते थे ।
जीसके कारण से आज भी ऐसा हो रहा है और उपासना की जाती है । कोई आरती करता है तो कोई भजन करता है और कोई अपने ध्यान को प्रभु मे लगाए रहता है । इन सभी कार्यो को उपासना करना ही कहा जाता है ।
अब आप समझ गए होगे की उपासना क्या होती है और इसका पर्यायवाची या समानार्थी शब्द क्या होते है ।
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