विस्तार का विलोम शब्द, विस्तार शब्द का विपरीतार्थक शब्द है, विस्तार का उल्टा Vistar vilom shabd
शब्द (word) | विलोम (vilom) |
विस्तार | संक्षेप |
Vistar | Sankshep |
दोस्तों विस्तार का मतलब होता है।अपनी सीमाओं को बढ़ाना जब हम विस्तार की बात करते हैं तो अपने दायरे के विस्तार की बात करते हैं। दायरे के अंदर किसी भी प्रकार का दायरा आ सकता है। जैसे कि सामाजिक दायरा और आर्थिक दायरा आदि इसके अंदर आते हैं।
वैसे आपको बतादें कि आजकल हर कोई अपने दायरे का विस्तार करने मे लगा है।खास कर पैसों के दायरे को जमीन के दायरे को इंसान बढ़ाने मे लगा है। और इंसान की हमेशा से ही यही सोच रही है कि उसके पास अधिक से अधिक पैसा होना चाहिए । अधिक से अधिक मकान गाड़ी और बंगला होना चाहिए ।
इंसानों के विकास के साथ साथ उनकी सोच के अंदर भी काफी अधिक बदलाव आया है।पहले इंसान जब जंगलों के अंदर रहा करता था तो उसे बस जानवर की तरह एक ही चिंता थी कि उसका पेट भर जाए वह अधिक से अधिक भोजन का विस्तार करना चाहता था।
उसके बाद इंसानों ने अपने समूह बनाने शूरू किये और अधिक भोजन की मांग होने लगी तो इसके लिए जंगली मानव और अधिक विस्तार करने लग गए । इस प्रकार से विस्तार आज भी चल रहा है। उस समय रोटी का विस्तार था तो आज हमे रोटी ही नहीं उससे अधिक विस्तार चाहिए ।
और अब तो इंसान के अंदर विस्तार की लालसा इतनी अधिक हो चुकी है कि वह मात्र थोड़े से संतुष्ट नहीं होता है। उसे बहुत अधिक चाहिए होता है। वह चाहता है कि वह इस धरती का राजा बन जाए और दुनिया के सारे सुख साधन उसके पास होने चाहिए ।
और इंसान इन सुख साधनों को पाने का प्रयास भी करता है। इसके लिए भले ही किसी का गला काटना पड़े आज आप जो देख रहे हैं गलाकाट प्रतियोगिता वह हर जगह मौजूद है। कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहां पर गलाकाट प्रतियोगिता नहीं है।
वैसे भौतिकता के अंदर जैसे जैसे लोगों का विश्वास बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे तनाव और हिंसा भी बढ़ती जाती है। और विस्तारवादी नीति भी बढ़ती जा रही है। असल मे जब हम समझने लगते हैं कि यह जो कुछ दिख रहा है यही हम हैं तो फिर झगड़ा होना सबसे आम बात है।
दोस्तों संक्षेप का मतलब होता है थोड़ा । संक्षेप मे वर्णन करों । कई बार प्रश्न पूछा जाता है कि इतने वर्ड मे संक्षेप मे वर्णन करना है। तो संक्षेप का मतलब थोड़ा भी होता है। असल मे आज कोई भी थोड़े के अंदर संतुष्ट नहीं होना चाहता है वह अधिक से अधिक हाशिल करना चाहता है।और यदि एक इंसान कुछ अधिक हाशिल कर लेता है तो दूसरा भी उसे देखकर अधिक हाशिल करने का प्रयास करता है। यही हमेशा से होता आया है। हर किसी का सपना होता है अधिक से अधिक पैसा कमाना तो इसका परिणाम आप समझ ही सकते हैं।आज आप पूरी दुनिया के अंदर जो अशांति देख रहे हैं व अधिक का परिणाम है।और यह तेजी से बढ़ती जाएगी क्योंकि संक्षेप के अंदर कोई रहना ही नहीं चाहता है।
प्राचीन काल की बात है।चक्रव्रति सम्राट अशोक हुआ करते थे । सम्राट का सपना था कि पूरी धरती पर उनका अधिकार हो । जैसा कि हर किसी का सपना होता है। और उसके बाद अशोक ने आस पास के राज्यों पर आक्रमण करना शूरू कर दिया ।और अशोक के पास काफी पॉवर फुल सेना थी।ऐसी स्थिति के अंदर छोटे छोटे राज्य उनके आगे टिक नहीं पाते थे । और इस प्रकार से एक के बाद एक कई राज्यों को अशोक ने जीत लिया । और अब तो आलम यह हो गया कि उनके नाम से ही बड़े बड़े राजा कांपने लग जाते थे ।
लेकिन अभी भी अशोक के मन मे यह विचार था कि वे एक दिन पूरी धरती के उपर राज करेंगे ।उन्होंने अपना विजय अभियान जारी रखा । लेकिन हर युद्ध के अंदर बहते खून की वजह से अशोक का मन उब गया और उसके बाद वे अपने राजगुरू के पास आए और बोले …….मुझे लगता है कि मैं काफी गलत कर रहा हूं । भले ही आज मेरे पास ताकत है तो खुद को भगवान समझ रहा हूं लेकिन ताकत किसी की सगी नहीं होती है। आज मैं कर रहा हूं । कल कोई और राजा के पास ताकत होगी और वह यहां पर आकर अपना बदला लेगा । मुझे लगता है कि यह सब कार्य मुझे बंद कर देना चाहिए ।
…….ठीक कहा राजन आपने ।बेकार के अंदर खूनखराबा करना सही नहीं होता है। और बेकार मे किये गए खून खराबे का असर दिमाग पर भी पड़ता है और उसके बाद इंसान की बुद्धि भी उसी प्रकार की हो जाती है।
—-ठीक है आज से मैं यह सब बंद करदेता हूं और अपने बचे हुए सारे जीवन को धर्म और कर्म के अंदर संर्पित कर दूंगा ।
कहा जाता है कि राजा अशोक को अपने जीवन का मर्म समझ आ चुका था। अशोक को यह पता चल चुका था कि विस्तार के अंदर कोई भी फायदा नहीं है।इस धरती पर कोई भी राज नहीं कर सकता है।कारण यह है कि इस धरती पर जो भी राज करता है वह अधिक समय नहीं टिक सकता है। क्योंकि यहां पर सब नाशवान इंसान रहते हैं।
उसके बाद अशोक ने अनेक प्रकार के धर्म स्तूप बनाए और धर्म के क्षेत्र मे कई कार्य करवाए।
असल बात यही है लेकिन हम सिर्फ वहीं तक की सोच पाते हैं जोकि आंखों से दिखाई देती हैं। आंखों से जो दिखाई नहीं देता है हम ना तो उसे देखने की चेष्टा ही करते हैं और ना ही जानने का प्रयास और ना ही मानते ही हैं। यही वजह है कि हम जीवन के अंदर काफी उलझ जाते हैं।
आज आप जो विस्तारवादी सिस्टम देख रहे हैं।उनमे से अधिकतम लोग प्रकृति के सिस्टम के अंदर बूरी तरह से उलझ गए हैं। वे खुद अपने आप को वही समझते हैं जो दुनिया ने उनको बताया है। वे खुद की प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं।
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